छगन भुजबल गए थे मीटिंग देखने और खुद मंत्री बन गए. प्रफुल्ल पटेल ने भी धोखा दिया... शरद पवार के इस बयान ने एनसीपी में बगावत की कलई खोल दी. हालांकि, 60 साल तक महाराष्ट्र की राजनीति में धाख रखने वाले सीनियर पवार रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान असहाय दिखे. 25 साल पुरानी एनसीपी में टूट की अटकलें अप्रैल से ही लग रही थी, लेकिन शरद पवार ने इसे रोक रखा था.
5वीं बार महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम बने अजित पवार इस बार सीनियर पवार पर भारी पड़े. अजित ने एनसीपी टूटने की भनक तक चाचा को नहीं लगने दी. इतना ही नहीं, डिप्टी सीएम बनने के बाद पवार की बनाई एनसीपी पर ही अजित ने दावा ठोक दिया.
एनसीपी संविधान के मुताबिक शरद पवार को किसी भी बदलाव के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी, जो फिलहाल उनके पास नहीं है.
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अजित के साथ शरद की बादशाहत खत्म करने में प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल ने बड़ी भूमिका निभाई. दोनों सीनियर नेताओं ने शरद पवार को पहले बीजेपी के साथ जाने की सलाह दी और जब पवार नहीं माने तो उन्हें अंधेरे में रखना शुरू कर दिया.
अजित, छगन और प्रफुल्ल की तिकड़ी ने कैसे शरद पवार को इस बार मात दिया, इसे विस्तार से पढ़ते हैं...
पहले कहानी तीनों नेताओं की...
अजित पवार- सहकारिता के जरिए मुख्य धारा की राजनीति में आने वाले अजित शरद पवार के भाई अनंदराव पवार के बेटे हैं. शुरुआत में अजित बारामती में चाचा शरद के काम को देखते थे, लेकिन 1991 में वे पुणे जिला सहकारी बैंक (पीडीसी) के अध्यक्ष बन गए. इसी साल बारामती से वे सांसद भी बने.
चाचा दिल्ली की पॉलिटिक्स में आए तो अजित को बारामती सीट छोड़नी पड़ी. अजित इसके बाद विधानसभा के लिए चुने गए. 1993 में शरद पवार मुख्यमंत्री बने तो अजित को भी मंत्री बनाया गया. अजित को बिजली और योजना विभाग का राज्य मंत्री बनाया गया.
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1999 में सोनिया गांधी से बगावत के बाद सीनियर पवार ने एनसीपी बनाई. अजित को मराठवाड़ा की कमान सौंपी गई. 1999 के चुनाव में एनसीपी को 58 सीटें मिली. विलासराव कैबिनेट में अजित मंत्री बनाए गए.
अजित का कद इसके बाद बढ़ता गया. 2010 में पृथ्वीराज चव्हाण की सरकार में अजित को डिप्टी सीएम बनाया गया. इसके बाद एनसीपी में चाचा पवार के बाद भतीजा अजित ही सबसे पावरफुल रहे हैं.
अजित के खिलाफ महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक से दिए गए लोन में अनियमितताएं के आरोप है. मामले की जांच ईडी और ईओडब्ल्यू कर रही है. 2019 में महाराष्ट्र सरकार ने केस वापस लेने की बात कही थी, लेकिन कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार नहीं किया था.
छगन भुजबल- शिवसेना से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले भुजबल को बगावत का पुराना अनुभव है. 1991 में भुजबल शिवसेना के 18 विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए. बाला साहेब ठाकरे के लिए यह बड़ा झटका था.
भुजबल 1985 और 1991 में मुंबई के महापौर रह चुके हैं. 1991 में शिवसेना से अलग होने के बाद उन्हें कांग्रेस सरकार में उर्जा मंत्री बनाया गया. 1995 में भुजबल विधायकी हार गए, जिसके बाद वे मुंबई की बजाय नासिक को अपना कर्मक्षेत्र बनाया.
मनोहर जोशी-नारायण राणे की सरकार के दौरान भुजबल मजबूत नेता के तौर पर उभरे. उन्होंने ओबीसी नेता के रूप में खुद की छवि बनाई. 1999 में वे शरद पवार के साथ एनसीपी में चले गए.
विलासराव देशमुख की सरकार में उन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया. उपमुख्यमंत्री बनते ही भुजबल ने बाला साहेब ठाकरे को शिकंजे में ले लिया. फर्जी स्टांप पेपर के आरोपी को शरण देने के मामले में भुजबल की कुर्सी चली गई.
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हालांकि, 2004 में उन्होंने वापसी की और पीडब्ल्यूडी मंत्री बने. 2008 में डिप्टी सीएम भी बनाए गए. 2014 के बाद भुजबल की किस्मत पलटी मारी. नासिक से लोकसभा चुनाव हारने के बाद भुजबल पर कानूनी शिकंजा भी कसा जाने लगा.
उन्हें कई केसों में आरोपी बनाया गया. उन्हें एसीबी ने गिरफ्तार भी किया. बाद में जमानत पर बाहर आए. उद्धव सरकार में भी छगन भुजबल मंत्री बनाए गए थे.
प्रफुल्ल पटेल- 1985 में गोंदिया नगरपालिका में अध्यक्ष बनकर मुख्यधारा की राजनीति में आने वाले प्रफुल्ल पटेल अभी एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. 1991 में पटेल महाराष्ट्र के गोंदिया सीट से लोकसभा सांसद चुने गए. शरद पवार उस वक्त महाराष्ट्र की सत्ता में थे.
पटेल 1999 में शरद के साथ एनसीपी में आ गए. पार्टी गठन और संविधान बनाने में भी पटेल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 2004 में पटेल को एनसीपी कोटे से मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री बनाया गया. 2011 में उनका प्रमोशन भी हुआ.
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2014 में पटेल चुनाव हार गए तो शरद पवार ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया. 2019 में उद्धव सरकार बनाने में पटेल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 2022 में शरद पवार ने पटेल को एनसीपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया.
हाल ही में पवार ने पटेल को सुप्रिया सुले के साथ कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था. कथित एविशन घोटाले और पीएनबी स्कैम केस में सेंट्रल एजेंसी प्रफुल्ल पटेल की भूमिका की जांच कर रही है.
तीनों ने कैसे लिखी बगावत की पटकथा...
मीटिंग- 1: पहले पवार को भी साथ लेने की कोशिश की
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट ने सूत्रों के हवाले से अप्रैल में बताया कि प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल और अजित पवार ने एक मीटिंग में शरद पवार को भी बीजेपी के साथ चलने के लिए कहा, जिसे शरद पवार ने खारिज कर दिया.
इन सीनियर नेताओं का कहना था कि बुढ़ापे में हम सेंट्रल एजेंसी के दफ्तर का चक्कर नहीं लगा सकते हैं. इसलिए बीजेपी से गठबंधन कर लेना चाहिए. सीनियर पवार ने सभी नेताओं से इंतजार करने के लिए कह मांग को दबा दिया.
शरद पवार इस मीटिंग के कुछ दिन बाद इस्तीफा का दांव खेल दिया, जिसके बाद एनसीपी में बड़ा उलटफेर हुआ. पवार पटना में विपक्षी एकता की मीटिंग में भी शामिल हुए, जिसके बाद तीनों नेताओं की यह समझ में आ गई कि पवार बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे.
मीटिंग-2 बीजेपी नेताओं के साथ समीकरण तैयार हुआ
अजित पवार दिल्ली में बीजेपी के एक बड़े नेता के साथ अप्रैल में मीटिंग की. इसके बाद उन्होंने एनसीपी विधायकों से एक सादे कागज पर हस्ताक्षर भी कराए. बवाल हुआ तो मीडिया में आकर सफाई भी दी.
जानकार बताते हैं कि हमेशा एनसीपी में रहने की बात कहने वाले अजित कुछ महीने से लगातार देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी के बड़े नेताओं के संपर्क में थे.
विधायकों को साधने के लिए अजित ने कांग्रेस को ढाल बनाया.
बीजेपी से समीकरण तय होने और बड़े आश्वासन मिलने के बाद उन्होंने विधायक दल की मीटिंग बुला ली. इधर, चुपचाप राजभवन में शपथ-ग्रहण की तैयारी भी चल रही थी. शुरुआत में शपथ ग्रहण की भनक शरद पवार को नहीं लग पाई.
मीटिंग-3 अजित के घर बैठक से पवार को अंधेरे में रखा
एक तरफ अजित बीजेपी के साथ जाने की तैयारी कर रहे थे, तो दूसरी तरफ छगन भुजबल और प्रफुल्ल पटेल शरद पवार को लागातार आश्वासन दे रहे थे. दोनों का तर्क था कि अजित बीजेपी में नहीं जाएंगे.
अजित 30 जून को शिंदे-फडणवीस सरकार के खिलाफ मराठी अखबार सकाल में एक लेख लिखा और इसे अपयश सरकार बताया. अजित ने बीजेपी की जोड़-तोड़ पॉलिटिक्स पर भी सवाल उठाया.
(Source- Sakal)
इधर, छगन भुजबल और प्रफुल्ल पटेल लगातार पवार के साथ बने रहे. रविवार को जब मीडिया में अजित के घर मीटिंग और विधायकों के बागी होने की खबर आई तो शरद ने भुजबल से संपर्क साधा. भुजबल ने मामले से खुद को अनजान बताया.
पवार ने फिर प्रफुल्ल पटेल से मीटिंग के बारे में पूछा. उन्होंने भी इसके बारे में जानकारी होने से इनकार कर दिया. शरद के कहने पर दोनों अजित के घर गए और फिर राजभवन. शरद पवार के मुताबिक मंत्री बनने के बाद भुजबल ने उन्हें फोन किया.
पावर पॉलिटिक्स के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं पवार
1978: 38 साल के शरद पवार ने विधायकों के साथ जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना ली. उनके जोड़-तोड़ की पॉलिटिक्स से दिल्ली हिल गई.
1988: कद्दावर नेता शंकर राव चव्हाण की जगह शरद पवार को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाया. गांधी परिवार के करीबी होने का उन्हें फायदा मिला.
1991: शरद पवार प्रधानमंत्री पद की रेस में सबसे आगे थे, लेकिन एक अखबार में नाम छपने की वजह से उनकी कुर्सी खतरे में पड़ गई.
1993: पीवी नरसिम्हा राव ने शरद पवार को दिल्ली से महाराष्ट्र भेजा. बताया जाता है कि सोनिया गांधी को साधकर सीनियर पवार पीएम बनना चाहते थे.
1999: सोनिया गांधी कांग्रेस में आई तो पवार को अपना भविष्य खतरे में नजर आया. कांग्रेस से निकाले जाने के बाद खुद की पार्टी बनाई.
2004: कांग्रेस से अधिक विधायक होने के बाद भी शरद पवार ने सीएम की कुर्सी नहीं ली. वजह उनकी पार्टी में इस पद के कई दावेदार थे.
2019: अजित पवार बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी, लेकिन पवार ने विधायकों को जोड़कर सरकार गिरा दी.