Karnataka Chief Minister: कर्नाटक में चार दिनों के सस्पेंस को खत्म करते हुए कांग्रेस ने बुधवार (17 मई) सीएम का नाम फाइनल कर दिया है. सूत्रों के मुताबिक, सिद्धारमैया को ही एक बार फिर से राज्य में सरकार की कमान सौंपने का फैसला हुआ है. एबीपी न्यूज ने एक दिन पहले ही इस बात की पुष्टि कर दी थी कि सीएम की रेस में सिद्धारमैया का दावा ज्यादा मजबूत है और फाइनल नतीजा भी वही हुआ.
हालांकि, औपचारिक ऐलान के लिए शाम को बेंगलुरु में होने वाली कांग्रेस विधायक दल (CLP) की बैठक का इंतजार करना होगा. आइए तब तक जानते हैं कि वो कौन से समीकरण थे, जिनके चलते कांग्रेस के संकटमोचक कहे जाने वाले डीके शिवकुमार पर 76 साल के सिद्धारमैया भारी पड़े.
ज्यादा विधायकों का समर्थन
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 135 सीटों के साथ शानदार जीत दर्ज की थी. इसके बाद रविवार (14 मई) को बेंगलुरु में कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई जिसमें एक प्रस्ताव पारित कर सीएम का फैसला करने का अधिकार कांग्रेस अध्यक्ष को दिया गया. इस दौरान कांग्रेस के पर्यवेक्षकों ने विधायकों की राय जानी. इसके लिए गुप्त मतदान भी कराया गया. कहा जाता है कि गुप्त मतदान का समर्थन सिद्धारमैया ने भी किया था.
अगले दिन सोमवार को कांग्रेस के तीनों पर्यवेक्षक दिल्ली पहुंचे और मल्लिकार्जुन खरगे से मिलकर उन्हें विधायकों की राय के बारे में बताया. सूत्रों के मुताबिक सिद्धारमैया के पक्ष में ज्यादा विधायकों का समर्थन था जो उनके दावे को ज्यादा मजबूत कर गया.
अहिंदा में पकड़
सिद्धारमैया को जिस चीज ने नेता बनाया था वह उनका अहिंदा फॉर्मूला था. अहिंदा (अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़ा) फॉर्मूले की वजह से उनकी एक अलग पहचान बनी. इसके साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग में उनका व्यापक जनाधार रहा है. कुरुबा ओबीसी जाति से आने वाले सिद्धारमैया राज्य के पहले गैर लिंगायत और गैर वोक्कालिगा सीएम थे.
प्रशासन और संगठन का अनुभव
सिद्धारमैया 2013 से 2018 तक राज्य के सीएम रहे, यह अनुभव की उनके पक्ष में गया. पांच साल तक कार्यकाल पूरा करने की वजह से उनकी छवि मजबूत हुई. वह पिछले 45 साल में 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले पहले सीएम बने, तो कर्नाटक में देवराज उर्स के बाद दूसरे सीएम हैं जिसने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया.
9 बार के विधायक होने के साथ ही वह दो बार डिप्टी सीएम रहे. 2009 के बाद से ही वह कांग्रेस विधायक दल के नेता बने हुए हैं.
साफ छवि
सिद्धारमैया का मजबूत पक्ष उनकी साफ छवि है. उनके प्रतिद्वंद्वी डीके शिवकुमार के ऊपर भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं. वह जेल भी जा चुके हैं. कांग्रेस को इस बात का डर है कि अगर डीके शिवकुमार को सीएम बनाया जाता है तो बीजेपी उनके खिलाफ मामलों को खोलकर मुश्किल बढ़ा सकती है. अगर किसी मामले में डीके शिवकुमार को फिर से जेल जाना पड़ा तो यह कांग्रेस के लिए झटका होगा, खासतौर पर जब उसने बीजेपी के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर आक्रामक चुनाव प्रचार चलाया था. ऐसे में सिद्धारमैया ही पार्टी की पसंद बनकर सामने आए.
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