कैसे सोशल मीडिया ने बचाई नवजात शिशु की जान, बच्चे को दी एक नई जिंदगी
विकास और अश्विनी के लिए बच्चे का जन्म एक बुरी खबर में तब्दील हो गया. अश्विनी और विकास के जन्मा पहला बच्चा पैदा होते ही कई बीमारियों से लड़ रहा था.
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मुंबई: मुंबई के गोवंडी इलाके के रहने वाले एक परिवार के बच्चे को सोशल मीडिया की मदद से एक नई जिंदगी मिली. पैसे की तंगी और बच्चे के न बचने की खबर से हताश हुए पिता ने सोशल मीडिया का सहारा लिया. एक NGO और लोगो ने क्राउड फंडिंग के जरिए नवजात बच्चे की जान बचाई.
22 मई को गोवंडी की रहने वाली अश्विनी ने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया. परिवार में पहले बच्चे की किलकारी सुनने के लिए पूरा परिवार बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था. किंतु कुछ ही पल में विकास और अश्विनी के लिए बच्चे का जन्म एक बुरी खबर में तब्दील हो गया. अश्विनी और विकास के जन्मा पहला बच्चा पैदा होते ही कई बीमारियों से लड़ रहा था.
डॉक्टर ने दंपत्ति को बताया के उनके बच्चो को निमोनिया और सांस लेने में तकलीफ हो रही है. उसके बचने की उम्मीद 1 प्रतिशत से भी कम है. बच्चे को जल्द से जल्द वेंटीलेटर के सहारे रखने की ज़रूरत है. इलाज में करीब डेढ़ से दो लाख रुपए लगेंगे. यह सुन माता-पिता दोंनो के हाथ पैर ठंडे पड़ गए. पूरी तरह हताश पिता को समझ नही आ रहा था के वे क्या करें. अपने बच्चे को कैसे बचाएं. बच्चे के इलाज से लिए विकास के पास केवल चालीस हजार रुपए थे. जिसे उन्होंने पेट काटकर जमा किये थे. बच्चे को बचाने की जिद के चलते विकास ने सोशल मीडिया का सहारा लिया.
बच्चे के पिता द्वारा पोस्ट किया गया पोस्ट चेंबूर के रहने वाले शिवराज पंडित जो चेंबूर वेलफेयर ब्रिगेड नाम का एनजीओ चलाते है उन्होंने पढ़ा. पोस्ट पढ़ने के बाद शिवराज ने बच्चे के पिता से संपर्क साधा. वहीं सोशल मीडिया पर यह खबर तेजी से फैलने लगी. अश्विनी और विकास के बच्चे को बचाने के लिए कई लोगों ने मदत का हाथ बढ़ाया.
शिवराज ने विकास से बात की तो उन्हें पता चला के विकास के पत्नी ने 22 तारीख को अपने पहले बच्चे को जन्म दिया. लेकिन बच्चा निमोनिया और मेकोनियम एस्पिरेशन सिंड्रोम से जूझ रहा है. बच्चे का इलाज कराने के लिए डेढ़ से ढाई लाख रुपए की ज़रूरत थी. किन्तु विकास के पास केवल 40 हज़ार रुपए थे.
चेंबूर के रहने वाले सभी नागरिको ने आवश्यक राशि जमा की और बच्चे का इलाज कराया. शिवराज बताते है कि बच्चे को बचाने के लिए हमे डेढ़ से दो लाख रुपए की ज़रूरत थी. बच्चे के बेहतर होने के लिए बच्चे को अस्पताल में रखना भी जरूरी था. अस्पताल का एक दिन का बिल 25 से 30 हज़ार आ रहा था. 27 तारीख को बच्चे के सेहत में सुधार हुआ तो थोड़ी उम्मीद जगी. बच्चे को सांस लेने भी दिक्कत हो रही थी. इसके लिए उसे वेंटीलेटर के सहारे सांस ले रहा था. 7 मई को बच्चा पूरी तरह स्वस्त होने पर उसे डिस्चार्ज किया गया. बच्चा और मां अब पूरी तरह से स्वस्थ्य है. बच्चे के माता पिता दोंनो ही बेहद खुश हैं.
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