बिना बैठक कैसे खत्म होगा सरकार और किसानों के बीच चल रहा गतिरोध? किसानों को है उस 'फोन कॉल' का इंतजार
सवाल ये उठता है कि जब खुद प्रधानमंत्री की तरफ से आंदोलनकारी किसानों को बातचीत का न्योता दिया गया है तो किसान नेताओं और सरकार के बीच बातचीत हो क्यों नहीं रही...
नई दिल्लीः राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों जगह धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए तीनों कृषि कानूनों को किसानों का हित का बताया था. पीएम ने इसके साथ ही किसानों से अपील की है कि वह अपने आंदोलन को खत्म करें और उनके कृषि कानूनों को लेकर जो भी सुझाव है उनको लेकर सरकार से बातचीत करें. पीएम ने कहा कि सरकार उनसे एक फोन कॉल की दूरी पर है. वहीं किसान संगठनों का कहना है कि वह बातचीत को तैयार है लेकिन बातचीत करनी कब है और किससे करनी है इस बारे में जब तक उनके पास कोई जानकारी नहीं होगी वह क्या कर सकते हैं? ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर दोनों ही पक्ष बातचीत को तैयार है तो फिर 22 जनवरी के बाद से लेकर अब तक किसानों और सरकार के मंत्रियों के बीच बैठक हुई क्यों नहीं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों Bगशब्दों में तीनों कृषि कानूनों के फायदे बताते हुए विपक्ष पर ही आरोप लगाया कि वह किसानों को गुमराह करने का काम कर रहा है प्रधानमंत्री ने कहा कि लगातार इस कानून को काला कानून बताया जाता है लेकिन इसमें काला क्या है इसको लेकर कोई कुछ नहीं बताना चाहता यहां तक कि राज्यसभा और लोकसभा में भी इस पर चर्चा के दौरान कुछ नहीं कहा गया.
किसानों को लेना है अंतिम फैसला
प्रधानमंत्री ने इसके साथ ही इस दौरान आंदोलनजीवी शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहा कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका काम ही किसी भी आंदोलन में शरीक होकर उस आंदोलन को लंबा खिंचवाने का होता है. प्रधानमंत्री ने इसके साथ ही तीनों कृषि कानूनों को लेकर किसानों को गुमराह करने की बात भी कही थी. इस दौरान प्रधानमंत्री ने दोनों सदनों में बोलते हुए आंदोलनकारी किसानों को सरकार से बातचीत का न्योता भी दिया था.
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सरकार का मानना है कि उन्होंने पिछली बैठक यानी 22 जनवरी को हुई बैठक के दौरान किसानों के सामने जो सुझाव रखा है उस पर अब किसानों को ही अंतिम फैसला लेना है. क्योंकि सरकार ने उस बैठक में तीनों कृषि कानूनों को डेढ़ साल के लिए लंबित रखने की बात कही थी लेकिन तब किसानों ने उस पर कोई जवाब नहीं दिया था.
वो टेलीफोन किसको करना है?
सूत्रों के मुताबिक अब सरकार पहले किसानों के रुख का इंतजार कर रही है. अगर किसान सरकार के उस सुझाव से सहमत होंगे तो फिर बात आगे बढ़ेगी. वहीं सूत्रों के मुताबिक किसान संगठनों का कहना है कि सरकार ने पिछली बैठक के दौरान अगली बैठक की कोई तारीख तय नहीं की है. ऐसे में भले ही प्रधानमंत्री ने कहा हो कि सरकार एक टेलीफोन की दूरी पर है लेकिन वो टेलीफोन किसको करना है या कहां से आएगा इस बारे में कुछ नहीं पता. किसानों का कहना है कि जब तक सरकार अगली बैठक की तारीख तय नहीं करती तब तक किसान अपनी मर्जी से बैठक में शामिल होने नहीं जा सकते.
इस सब के बीच विपक्षी दलों के सांसदों ने भी सवाल उठाते हुए पूछा है कि अगर प्रधानमंत्री संसद में किसानों से बातचीत करने की बात करते हैं तो फिर आखिर अब तक वह बातचीत शुरू क्यों नहीं हुई. विपक्षी सांसदों का कहना है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को लेकर अड़ी हुई है और लोकतंत्र में यह ठीक नहीं है.
विपक्षी नेताओं का सवाल
विपक्षी सांसदों का यह भी कहना है कि अगर सरकार बातचीत की बात कर रही है तो आखिर किसान नेताओं को बातचीत के लिए वक्त और जगह के बारे में जानकारी क्यों नहीं दे रही, किसान नेता अपनी मर्जी से तो बात करने नहीं आएंगे.
ऐसे में सवाल यही है कि आखिर किसानों और सरकार के बीच चल रहा गतिरोध खत्म कैसे होगा. क्योंकि फिलहाल सरकार की तरफ से अब तक तो किसानों के पास अगले चरण की बातचीत को लेकर कोई जानकारी नहीं पहुंची है और ना ही पिछली बैठक के बाद किसानों ने अपने रुख के बारे में सरकार को कोई जानकारी भेजी है.
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