कई महीनों की अटकलों के बाद ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) रविवार को बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल हो गई. पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव गठबंधन के साथ लड़ेगी. इस नए राजनीतिक घटनाक्रम से साफ हो गया है कि बीजेपी अपने चिरपरिचित 'माइक्रो मैनेजमेंट' वाली रणनीति पर काम कर रही है. इसके तहत न सिर्फ बूथ स्तर पर तैयारी है, बल्कि उन छोटे दलों के साथ गठबंधन भी कर रही है जिनके पास वोटबैंक तो छोटा है लेकिन कई सीटों के गणित को बना या बिगाड़ सकते हैं. 


इस समीकरण में गैर यादव और गैर जाटव जातियों के वोट हैं और इसके साथ ही ओबीसी में अति पिछ़ड़ी जातियों को भी पाले में लाना है जिसका नेता होने का दावा ओपी राजभर करते रहे हैं. यहां एक बात यह भी समझना जरूरी है कि ओपी राजभर जब बीजेपी के साथ गठबंधन करते हैं तो इसका फायदा चुनाव में दिखता रहा है लेकिन जब वो गैर-बीजेपी दल के साथ गठबंधन करते हैं तो वो सहयोगी पार्टियों को उतनी सपलता नहीं दिला पाते हैं.  


पार्टी के नेताओं का कहना है कि सुभासपा ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) और दलितों के बीच एक अच्छा आधार बनाया है. सुभासपा के बीजेपी के साथ आने से पूर्वी उत्तर प्रदेश में कम से कम 12 लोकसभा सीटों पर एनडीए मजबूत स्थिति में आ सकता है.


बता दें कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का बड़ा जनाधार पूर्वी उत्तर प्रदेश में है. इसे उत्तर प्रदेश के राजभर समुदाय का समर्थन हासिल है, जो राज्य की आबादी में चार फीसदी के बराबर है.  2017 में बनी योगी सरकार ओपी राजभर योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे, लेकिन बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. 2022 का विधानसभा चुनाव उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ मिल कर लड़ा था. 


वर्तमान में बीजेपी का अपना दल और (जो केंद्र में भी एनडीए का हिस्सा है) निषाद पार्टी के साथ गठबंधन है. 2019 के आम चुनावों से पहले एनडीए से नाता तोड़ने वाली सुभासपा बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि राजभर के नेतृत्व वाली पार्टी पूर्वी उत्तर प्रदेश में कम से कम 12 लोकसभा सीटों (और 125 विधानसभा क्षेत्रों) में सत्तारूढ़ पार्टी को बढ़त दे सकती है. इससे सत्तारूढ़ पार्टी को क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद मिलेगी. 


2019 में बीजेपी ने पूर्वी यूपी में 26 लोकसभा सीटों में से 17 पर जीत हासिल की, दो सीटें अपना दल (एस) के खाते में गईं. बीएसपी ने छह सीटों पर जीत दर्ज की और सपा ने आजमगढ़ सीट पर जीत दर्ज की. इस सीट पर पिछले साल हुए उपचुनाव में उसे बीजेपी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.


सुभासपा का दावा है कि वह 60 से ज्यादा सबसे पिछड़े और दलित समूहों का प्रतिनिधित्व करती है, जिनकी पूर्वी यूपी में 20% से ज्यादा आबादी है. राजभर समुदाय में यूपी की आबादी का केवल 4% हिस्सा है.  


वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क ने एबीपी न्यूज को बताया ' ओपी राजभर पूर्वांचल के नेता माने जाते हैं. बनारस, मऊ, गाजियाबाद इसमें शामिल है. पूर्वांचल में राजभर की पकड़ काफी मजबूत है. पिछले विधानसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया था. 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले ओपी राजभर के एनडीए में शामिल होने से पार्टी को कुछ हद तक फायदा होगा. चुनिंदा सीटों पर राजभर की पकड़ है उसका फायदा एनडीए गठंबधन को मिलेगा. 


अश्क ने आगे कहा कि छोटे-छोट दलों को जोड़ने की परंपरा विपक्षी एकता के जरिए शुरू की जा चुकी है. विपक्षी एकता में कई ऐसी छोटी पार्टियां हैं जिनके एक भी सांसद नहीं हैं. एनडीए ने भी इसी तर्ज को अपनाया है, इसका उदाहरण उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी और जितन राम मांझी की पार्टी हम है. ये दोनों ही पार्टी एनडीए में शामिल हुई हैं.


एनडीए के नए-पुराने सहयोगियों को मिलाकर कुल 19 पार्टियां एनडीए की बैठक में हिस्सा लेने की पुष्टि कर चुकी हैं. दोनों बड़ी पार्टियां जनता के बीच एक मैसेज दे रही हैं कि हमारे साथ ज्यादा पार्टियों का सपोर्ट है. जिस भी पार्टी के पास ज्यादा पार्टी का सपोर्ट होगा वो चुनावी नतीजों में भारी पार्टी बनेगी, क्योंकि इस बार के चुनाव में 1 या 2 प्रतिशत के वोटबैंक भी मायने रखेगा. 


छोटी पार्टियों के गठबंधन से किसे होगा फायदा? 


अश्क ने कहा कि विपक्षी एकता से एनडीए को ये एहसास हुआ कि छोटी-छोटी पार्टियां मिल कर सीटों का नुकसान करा सकती हैं. इसलिए अब उसने मुखर रूप से अपने साथ छोटी पार्टियों को साथ लाने की मुहिम शुरू कर दी है. बीजेपी ने इसकी शुरुआत बिहार से उपेन्द्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी को साथ ला कर की और अब यूपी से राजभर भी साथ आ गए हैं. पार्टियों के साथ आने से किसे फायदा होगा ये पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि तीसरा दल कहां जाएगा. जैसे असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम अलग चुनाव लड़ेगें, इनके लावा कई क्षेत्रीय और छोटे दल हैं. बंगाल की पार्टी आईएसएफ भी इसका एक उदाहरण है.


अश्क ने कहा 'दक्षिण 24 परगना के भांगड़ विधानसभा सीट से नौशाद सिद्दीकी ने 21 में विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी. बंगाल में किसी तीसरी पार्टी से किसी का जीत जाना बहुत ही आश्चर्य की बात है, क्योंकि जीत न तो कांग्रेस के पास गई न तो ममता के पास गई, किसी तीसरे मुस्लिम पक्ष के पास चली गई. ऐसी और भी छोटी पार्टियां लोकसभा चुनाव में बड़ी पार्टियों का सिरदर्द बन सकती हैं'.


अश्क ने कहा कि बिहार में 6-7 प्रतिशत का वोट शेयर चिराग पासवान (लोजपा) के पास है. जितन राम मांझी के पास 2 प्रतिशत के आस पास वोट प्रतिशत है. दो से ढाई प्रतिशत जनाधार उपेन्द्र कुशवाहा के पास है. यानी कुल मिलाकार लगभग 10 प्रतिशत जनाधार इन छोटी पार्टियों से बढ़ जाएगा. जिस तरह से विपक्ष एक साथ आ रहा है, उससे कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है, जिसकी तैयारी में बीजेपी लग गयी है यानी इस बार के चुनाव में 5 या 10 प्रतिशत वोटों का अंतर ही बड़ी भूमिका निभाएगा. इसलिए बीजेपी ने जनाधार बढ़ाने की कोशिश शुरू कर दी है. 


अश्क ने कहा कि पार्टियों के साथ आने से एनडीए को ज्यादा फायदा होगा, क्योंकि 303 सीटें जीतने के बाद भी एनडीए के पास बांटने के लिए 240 सीटें होंगी. लेकिन यूपीए में कौन सी पार्टी प्रभावी होगी ये नहीं कहा जा सकता है. अभी तक नेतृत्व को लेकर ही सवाल बना हुआ है. 


राजभर के बीजेपी में शामिल होने से किसे होगा सबसे ज्यादा नुकसान


उत्तर प्रदेश की राजनीति पर पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला ने एबीपी न्यूज को बताया कि पिछले विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी. आजमगढ़ ,कौशांबी, गाजीपुर,  मऊ जैसे ज़िलों में बीजेपी का भारी नुकसान हुआ.  जब बीजेपी ने कारणों की जांच करवाई तो पता चला कि अति पिछड़ी जातियों का वोट समाजवादी पार्टी को गया है.  इसके बाद से बीजेपी उन तमाम छोटे वर्गों को साथ लाने की कोशिश में लग गई थी. ओम प्रकाश राजभर को बीजेपी में लाना उन्हीं प्रयासों का नतीजा है. 


शुक्ला ने आगे कहा कि राजभर के अलावा दारा सिंह चौहान भी आज बीजेपी में शामिल हो गए हैं. दारा सिंह की पकड़ यूपी के पूर्वोत्तर के अति पिछड़ी जातियों में है. बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व यूपी में समाजिक समीकरण को पूरी तरह से अपने पक्ष में करना चाहता है. राजभर का आना इस दिशा में बीजेपी के लिए सबसे फायदेमंद होगा. चुनावी नतीजों में इसका असर में गाजीपुर, मऊ , कौशंबी जैसे जिलों में बीजेपी के पक्ष में जा सकता है.  


शुक्ला ने आगे कहा कि राजभर के बीजेपी में आने से अखिलेश यादव के गठबंधन को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है. शुक्ला ने कहा "एक बहुत अजीब चीज मुझे देखने को मिली कि सपा ने राजभर या दारा सिंह को रोकने का प्रयास भी नहीं किया. उन्होंने कहा कि इनके आने जाने से पार्टी को कोई फायदा या नुकसान नहीं होगा, तो फिर स्वामी प्रसाद मौर्या के आने या जाने से क्या फर्क पड़ेगा"? 


शुक्ला ने बताया कि सपा के साथ अब बस राष्ट्रीय लोक दल का साथ है, बीजेपी ने इस बात का आकलन शुरू कर दिया है कि राष्ट्रीय लोक दल  (आरएलडी) को सपा से कैसे अलग किया जाए और इसका कितना फायदा बीजेपी को होगा.  


शुक्ला ने बताया कि आरएलडी के कई नेता भी इस कोशिश में लगे हैं कि पार्टी मुखिया को कैसे बीजेपी में शामिल होने के लिए मनाया जाए. अगर आरएलडी बीजेपी में शामिल हो जाती है तो सपा को सबसे गहरा झटका लेगा. जिसका असर लोकसभा चुनाव 2024 में देखने को मिलेगा. यूपी में बीजेपी की मुख्य लड़ाई सपा से हैं, जिसके प्रभाव को बीजेपी तोड़ना शुरू कर चुकी है.