पीएम केयर्स फंड से खरीदे 50 हजार वेंटिलेटर्स ने कैसे बचाई लाखों लोगों की जान? जानें पूरी कहानी
50,000 वेंटिलेटर खरीदने के लिए पीएम केयर्स फंड से 2140 करोड़ रुपये जारी किए गए. इस साल 6 अप्रैल तक पीएम केयर्स के जरिए फंडेड 50,000 वेंटिलेटर में से तकरीबन 35,000 वेंटिलेटर्स तमाम राज्यों को दिए जा चुके हैं.
नई दिल्ली: कोरोना के आपातकाल के बीच देश में पीएम केयर्स फंड से खरीदे गए वेंटिलेटर भी सुर्खियों में है. पंजाब सरकार ने कहा कि यह वेंटिलेटर खराब है जबकि सच्चाई कुछ और है. दरअसल, लोगों के दान किए गए रुपयों से पीएम केयर्स फंड बनाया गया. हालांकि पीएम केयर्स फंड से खरीदे गए वेंटिलेटर पंजाब सरकार के अस्पतालों में इंस्टॉल ही नहीं किए गए थे, लेकिन इस सब से दूर हम आपके लिए पीएम केयर्स फंड से स्वास्थ्य मंत्रालय के जरिए खरीदे गए वेंटिलेटर की पूरी और सबसे भरोसेमंद कहानी लेकर आए है.
दुनियाभर में कोरोना दिसंबर 2019 से दस्तक दे रहा था. चीन, यूरोप और अमेरिका में इस बीमारी से हाहाकार मचा हुआ था. भारत सरकार भी इन हालातों पर पैनी नजर बनाए हुए थी. साल 2020 के फरवरी महीने आते-आते सरकार ने इस बीमारी से लड़ने की तैयारी शुरू कर दी थी. यह महसूस किया गया कि इस बीमारी की वजह से मरीज के श्वसन तंत्र पर सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है. ऐसी सूरत में वेंटिलेटर की बड़ी तादाद में जरूरत पड़ेगी. उस समय देश में कुल मिलाकर 16000 के आसपास वेंटिलेटर ही मौजूद थे जबकि आबादी बहुत बड़ी थी.
वेंटिलेटर आयात करना था मुश्किल
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उस समय विदेशों से वेंटिलेटर आयात करना बहुत मुश्किल था क्योंकि उन तमाम देशों में भी वेंटिलेटर्स की बहुत ज्यादा सख्त जरूरत थी. साथ ही अमेरिका और यूरोप के देशों ने वेंटिलेटर सहित तमाम मेडिकल इक्विपमेंट के निर्यात पर पाबंदी भी लगा दी थी.
ऐसी सूरत में स्वस्थ मंत्रालय की उच्च स्तर पर हुई बैठक में यह तय हुआ कि देश में ही वेंटिलेटर बनाए जाए, लेकिन अब सबसे बड़ी समस्या यह थी कि वेंटिलेटर बनाने की तकनीक देश में नहीं थी. सिर्फ एक कंपनी भारत इलेक्ट्रिक लिमिटेड के पास वेंटिलेटर्स बनाने की तकनीक थी. केंद्र सरकार ने भारत इलेक्ट्रिक लिमिटेड को अपनी तकनीक ट्रांसफर करने के लिए कहा, स्कैनर और डीआरडीओ को तकनीक ट्रांसफर की गई. इस काम में डीआरडीओ ने काफी मदद की.
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अब स्वास्थ्य मंत्रालय के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि तकनीक ट्रांसफर करने के बाद किन कंपनियों से वेंटिलेटर बनवाए जाएं क्योंकि देश में वेंटिलेटर बनाने वाली कंपनी नहीं थी. इसके लिए भारत सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान लाइफ केयर लिमिटेड को चुना गया. हिंदुस्तान लाइफ केयर लिमिटेड हेल्थ केयर की भारत सरकार की एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है. हिंदुस्तान लाइफकेयर लिमिटेड ने वेंटिलेटर तैयार करने के लिए टेंडर निकाले. इस टेंडर के जरिए पांच कंपनियों को चुना गया. इन पांच कंपनियों को तकनीक ट्रांसफर कर वेंटिलेटर बनाने का जिम्मा सौंपा गया. यह कंपनियां है-
- SCANRO- स्कैनरों नाम की कंपनी को सबसे पहले तकनीक ट्रांसफर की गई और इसी कंपनी को 3000 वेंटिलेटर बनाने का जिम्मा भी सौंपा गया.
- AMTZ - एमटीजेड भारत सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम की कंपनी है. इसे 13500 वेंटिलेटर बनाने का काम सौंपा गया.
- AGVA- नोएडा में स्थित कंपनी को भी वेंटिलेटर बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई. इस कंपनी ने तकनीकी मदद के लिए मारुति उद्योग लिमिटेड से टाइअप किया था. इस कंपनी को 10000 वेंटिलेटर बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई.
- Jyoti CMC- हिंदुस्तान लाइफकेयर लिमिटेड के टेंडर के जरिए ज्योति सीएमसी नाम की कंपनी को भी चुना गया. इस कंपनी को 5000 वेंटिलेटर बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई.
- ALLIED MEDICLE - एलाइड मेडिकल नाम की कंपनी को भी 350 वेंटिलेटर बनाने का काम सौंपा गया.
हिंदुस्तान लाइफ केयर लिमिटेड द्वारा बुलाए गए टेंडर के आधार पर हर कंपनी की क्षमता के मुताबिक उसे वेंटिलेटर बनाने का काम सौंपा गया. भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुल 60,000 वेंटिलेटर तैयार करने का लक्ष्य रखा था. इसमें से 58850 वेंटिलेटर मेक इन इंडिया के तहत तैयार किए जा रहे हैं. स्वास्थ मंत्रालय के इंपावर्ड ग्रुप में 17 अप्रैल 2020 तक इन वेंटिलेटर्स को बनाने के आर्डर भी दे दिए.
वेंटिलेटर सर्टिफिकेशन की समस्या
एक बार जब वेंटिलेटर तैयार होने लगे तो सबसे बड़ी समस्या इनके सर्टिफिकेशन की थी. स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक टेक्निकल कमेटी का गठन किया. इस टेक्निकल कमेटी के सामने इन वेंटिलटर का डेमोशट्रेशन, चेकिंग और इंप्रूवमेंट को लेकर कई दिनों और कई बार, कई हफ्ते तक प्रेजेंटेशन हुए, टेक्निकल कमेटी के पूरे तौर पर संतुष्ट होने के बाद ही इन वेंटिलेटर्स को अप्रूव किया गया. इसके बाद इन वेंटिलेटर को क्लीनिकल सेटिंग में यानी कि अस्पताल में मरीजों के ऊपर चेक किया गया. इसके बाद ही डीजीएचएस ने मिनिमम स्पेसिफिकेशन वाले इन वेंटिलेटर को अप्रूव किया.
जिस वक्त वेंटिलेटर्स को तैयार करने की योजना और बनाने के लिए तकनीक ट्रांसफर और टेंडर की बात चल रही थी, उसी वक्त इनकी लागत और खर्च को लेकर चर्चा शुरू हुई. तभी प्रधानमंत्री कार्यालय ने स्वास्थ्य मंत्रालय को बताया कि पीएम केयर्स फंड से 50,000 वेंटिलेटर्स खरीदने के लिए फंडिंग की जाएगी. प्रधानमंत्री का ये फैसला सुनकर स्वास्थ्य मंत्रालय का एक बड़े खर्च का इंतजाम हो गया था और स्वास्थ्य मंत्रालय की एक बड़ी समस्या इसके साथ हल हो गई.
पीएम केयर्स फंड से खरीदे गए 50,000 वेंटिलेटर
50,000 वेंटिलेटर खरीदने के लिए पीएम केयर्स फंड से 2140 करोड रुपये जारी किए गए हैं. इस साल 6 अप्रैल तक पीएम केयर्स द्वारा फंडेड 50,000 वेंटिलेटर मे से तकरीबन 35,000 वेंटिलेटर्स तमाम राज्यों को दिए जा चुके हैं. इनमें से अब तक 32700 वेंटिलेटर इंस्टॉल भी किए जा चुके हैं और करीब 13000 वेंटिलेटर अभी इंस्टॉल किए जाने हैं जो विभिन्न वजहों से इंस्टॉल नहीं किए जा सके हैं. ऐसी ही एक तकनीकी वजह से पंजाब के फरीदकोट में 80 में से 71 वेंटिलेटर इंस्टॉल नहीं किए जा सके, जबकि वेंटिलेटर को इंस्टाल कराने के लिए संसाधन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है.
अब सवाल उठता है कि इन वेंटिलेटर्स की खरीद के बाद इन्हें राज्यों को किस आधार पर दिया गया और इन वेंटिलेटर्स के इंस्टॉल करने से लेकर मेंटेनेंस की जिम्मेदारी किसकी है? स्वास्थ्य मंत्रालय के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि राज्यों की मांग के अनुसार इन वेंटिलेटर को स्वास्थ्य मंत्रालय ने उन राज्यों को उपलब्ध कराया है.
किस राज्य को कितने वेंटिलेटर मिले
सबसे ज्यादा वेंटिलेटर 4960 आंध्र प्रदेश को उपलब्ध कराए गए. उसके बाद दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र का नाम है, जहां 4434 वेंटिलेटर उपलब्ध कराए गए. तीसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश जहां 4016 वेंटिलेटर उपलब्ध कराए गए. इसके बाद गुजरात जहां 3400 वेंटिलेटर उपलब्ध कराए गए. फिर राजस्थान जहां 1992 वेंटिलटर उपलब्ध कराए गए. तमिलनाडु में 1450 और तेलंगाना में 1400 वेंटिलटर उपलब्ध कराए गए जबकि पश्चिम बंगाल में 1120 वेंटिलेटर उपलब्ध कराए गए. कर्नाटक को 2025 वेंटिलेटर उपलब्ध कराए गए जबकि सिक्किम एक ऐसा राज्य है जहां से एक भी वेंटिलेटर उपलब्ध कराने की मांग अभी तक नहीं आई है.
अब सवाल उठता है कि इन वेंटिलेटर को इंस्टॉल कैसे किया जाता है? इन वेंटीलेटर को इंस्टॉल करने की जिम्मेदारी वेंटिलेटर बनाने वाली कंपनी की होती है, लेकिन वेंटिलेटर के लिए पाइप लाइन सिस्टम, मिनिमम ऑक्सीजन प्रेशर, वेंटिलेटर कनेक्टर उपलब्ध कराना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है. इसके अलावा वेंटिलेटर में लगने वाले फिल्टर, कंज्यूमेबल आइटम जैसे HME फिल्टर, ऑक्सीजन सेंसर, ऑक्सीजन ट्यूबिंग यह हर मरीज के साथ बदलना होता है और इसको बदलने की जिम्मेदारी भी राज्य की होती है. फरीदकोट के 80 में से 71 वेंटिलेटर काम नहीं कर रहे थे. भारत इलेक्ट्रिक लिमिटेड के इंजीनियर फरीदकोट की साइट पर गए तब उन्होंने राज्य सरकार को इस खामी की ओर ध्यान दिलाया और उसके बाद इसे दुरुस्त किया गया है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पटियाला में ज्योति सीएमसी नाम की कंपनी ने वेंटिलेटर सप्लाई किए हैं लेकिन राज्य सरकार ने वहां वेंटिलेटर कनेक्टर उपलब्ध नहीं कराए थे. पिछले साल अक्टूबर में इन वेंटिलेटर का ऑर्डर राज्य सरकार की तरफ से मिला था और उसके बाद से वेंटिलेटर राज्य सरकार को उपलब्ध करा दिए गए थे, लेकिन राज्य सरकार के जरिए कनेक्टर उपलब्ध नहीं कराने की वजह से यह वेंटिलेटर बेकार पड़े हुए थे.
केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने वेंटिलेटर बनाने वाली कंपनी को वेंटिलेटर का पैसा या कीमत तभी देने का प्रावधान रखा था जब वेंटिलेटर इंस्टॉल होकर पूर्ण रूप से काम करने लगे और इसी वजह से पटियाला में वेंटिलेटर कनेक्ट और इंस्टॉल नहीं हुए थे. इसलिए उसका पैसा भी ज्योति सीएमसी नाम की कंपनी को नहीं दिया गया था. साथ ही इन वेंटिलेटर की 1 साल की वारंटी का भी प्रावधान है. 1 साल के भीतर इन वेंटिलेटर की सर्विसिंग, रिप्लेसमेंट और कोई भी पार्ट खराब होने पर कंपनी की जिम्मेदारी होती है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह भी बताया कि इन वेंटिलेटर में कोई भी कमी या शिकायत आने पर अलग-अलग राज्यों के 36 व्हाट्सऐप ग्रुप बने हुए हैं, जिनमें संबंधित राज्य, वेंटिलेटर में आई खामी को दर्ज करा सकता है, इन सभी ग्रुप में राज्य के नोडल ऑफिसर भी हैं और कंपनियों के प्रमुख अधिकारियों के अलावा टेक्नीशियन भी इस ग्रुप का हिस्सा है. इसके अलावा कंपनियों की तरफ से हेल्पलाइन नंबर भी जारी किए गए हैं.
बच सकी लाखों लोगों की जान
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी के मुताबिक स्वास्थ्य मंत्रालय के समय रहते वेंटिलेटर बनाने और इंस्टॉल करने के फैसले की वजह से ही लाखों लोगों की जान देश में बच सकी है, ऐसे समय में जब पूरे विश्व में वेंटिलेटर की मांग तेजी से बढ़ रही थी और भारत को यह वेंटिलेटर विदेशों से नहीं मिल सकते थे. ऐसी सूरत में देश में वेंटिलेटर तैयार कर उन्हें लोगों की जान बचाने के लिए सोचना बेहद आवश्यक था.
देश में 60,000 वेंटीलेटर तैयार करने का स्वास्थ मंत्रालय का जो टारगेट था उनमें से 58,850 वेंटिलेटर देश में मेक इन इंडिया के तहत तैयार किए जा रहे हैं. देश में अब तक 34000 से ज्यादा वेंटिलेटर तैयार हो चुके हैं यह वेंटीलेटर अमेरिका और जर्मनी से आयात होने वाले वेंटिलेटर, जिनकी कीमत 10 से 20 लाख प्रति वेंटिलेटर होती है , उसके मुकाबले काफी सस्ते हैं लेकिन भारतीयों की जान बचाने में उतने ही प्रभावी हैं. अगर सरकार समय पर वेंटिलेटर बनाने का फैसला नहीं लेती तो कोरोना के आपातकाल में ना जाने कितनी जाने अब तक जा चुकी होती. इस आपातकाल में ये देसी वेंटिलेटर देश की जान के रक्षक बन कर खड़े हुए हैं.
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