नई दिल्ली: राजस्थान विधानसभा में 200 विधायक हैं. विधानसभा पहले हवामहल के पास टाउन हॉल से चला करती थी जो जयपुर के महाराज ने एक रुपये की लीज पर राज्य सरकार को राजस्थान के गठन के समय दिया था. नई विधानसभा सचिवालय से कुछ दूर 2001 में बनाई गयी थी. तब से लेकर 2003, 2008 और 2013 में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. यह हकीकत है कि एक बार भी यहां 200 सदस्य एक साथ नहीं बैठे हैं. 2013 के विधानसभा चुनावों में भी 200 की जगह 199 में ही चुनाव हुआ था तब चूरु से बसपा प्रत्याशी की मौत के कारण वहां चुनाव स्थगित कर दिया गया था. इस समय भी बीजेपी के वरिष्ठ विधायक कल्याण सिंह के निधन के कारण एक सीट खाली हुई है. अब कायदे से तो इसे मात्र एक संयोग ही माना जाना चाहिये लेकिन उल्टी गंगा बह रही है.


विधानसभा में बुरी आत्माएं हैं?


राजस्थान विधानसभा के मौजूद बजट सत्र के दौरान सदन में दिलचस्प चर्चा हुई. इसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष ने एक साथ एक स्वर में स्वीकारा कि विधानसभा में बुरी आत्माएं हैं. यही वजह है कि कभी एक साथ 200 विधायक नहीं रहे. कहा गया कि विधानसभा भवन जिस जमीन पर बना है वहां पहले श्मशान हुआ करता था और वहां बच्चों के शव दफनाएं जाते थे. कुछ सदस्यों का मानना था कि ऐसी ही कोई आत्मा वहां भटक रही है जिसकी वजह से पूरे सदस्य एक साथ नहीं बैठ पाते हैं. हैरानी की बात है कि मुख्य सचेतक कालू लाल गुर्जर तक ने कहा कि हो सकता है कि किसी आत्मा को शांति नहीं मिली हो और वह बुरी आत्मा नुकसान पहुंचा रही हो. उनका कहना था कि कभी किसी की मौत हो जाती है तो कभी कोई जेल चला जाता है. गुर्जर समेत कई विधायकों ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को यह सब बताया है और शांति के लिए यज्ञ करवाने के साथ पंडितों को भोजन करवाने की सलाह दी गयी है.


विधानसभा को बनाने में गुलाबी पत्थर का इस्तेमाल


विधानसभा करीब 17 एकड़ में बनी है. इसमें भरतपुर के बंसीपहाड़पुर गांव के गुलाबी पत्थर का इस्तेमाल किया गया है. दूर से देखने पर विधानसभा किसी भव्य महल से कम नहीं दिखती या फिर पांच सितारा होटल जैसी है. सुंदर मेहराबें, जालियां, बारीक नक्काशी और सुसज्तित खंभे. विधानसभा में 200 सदस्यों के बैठने लायक सदन तो है ही साथ ही प्रस्तावित विधान परिषद के लिए भी अलग से जगह की व्यवस्था की गयी है. बाहर पार्किंग की भी कोई कमी नहीं है. यह सच है कि इसके एक हिस्से में श्मशान हुआ करता था. अभी भी विधानसभा से सटा हुआ श्मशान है जो लाल कोठी श्मशान कहलाता है. यहां आसपास के लोगों के आलावा वीआईपी शवों का भी अंतिम संस्कार होता है. सदस्य पहले भी सवाल उठाते रहे हैं कि श्मशान के पास विधानसभा भवन नहीं बनाया जाना चाहिए था. भवन के निर्माण के समय भी ऐसे ही सवाल उठाए गए थे और तब कहा गया था कि विधानसभा परिसर के एक हिस्से को उपर उठा यह वास्तुदोष दूर कर लिया गया है.


विधानसभा को लेकर हुई थी भविष्याणी


विधानसभा के गठन के बाद पहली बार 2003 में विधानसभा चुनाव हुए थे. तब कुछ पंडितों ने भविष्यवाणी की थी कि चूंकि विधानसभा भवन श्मशान के पास बना है लिहाजा कोई महिला मुख्यमंत्री बनेगी और उनके शपथ लेने के साथ ही वास्तु दोष पूरी तरह दूर हो जाएगा. तब तक राजस्थान में कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं बनी थी और साल 2003 में बीजेपी ने चुनाव जीता और वसुंधरा राजे प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. पंडितों की भविष्यवाणी तो सच साबित हुई लेकिन आंशिक ही दोष नहीं खत्म हो पाया. राज्य को पहली महिला मुख्यमंत्री तो मिल गयी जिन्होंने शपथ भी नए भवन में ही ली लेकिन शायद वास्तुदोष पूरी तरह से दूर नहीं हो सका. यानि विधानसभा को कभी 200 विधायकों को एक साथ बिठाने का सुख नसीब नहीं हो सका.


श्मशान गृह के पास नगर निगम का दफ्तर भी है


वैसे हैरानी होती है कि जिस भवन में कानून बनाए जाते हैं, नीतियां बनाई जाती है, वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाता है वहां इस बात पर चर्चा हो रही है कि भवन में बुरी आत्माओं ने डेरा डाला हुआ है और शांति के लिए हवन आदि करवाया जाना चाहिए. ऐसा भी नहीं है कि पहली बार इस तरह की चर्चा हो रही हो. पहले ही विधानसभा में इस मुद्दे पर चर्चा हो चुकी है और शमशान गृह को वहां से हटाए जाने के सुझाव भी दिए जा चुके हैं. लेकिन यहां सवाल उठाया जा सकता है कि उसी श्मशान गृह के पास नगर निगम का दफ्तर भी है जहां आम जनता जन्म मुत्यु के प्रमाण पत्र लेने से लेकर गृहकर तक के उलझे मामले सुलझाने आती है और धक्के खाती है. क्या कभी किसी माननीय विधायक ने यह सवाव उठाया कि बगल में शमशान होने की वजह से जनता के काम समय पर पूरे नहीं हो पाते हैं लिहाजा शमशान को वहां से हटा दिया जाना चाहिए. जब अपनी पर आई तभी विधायकों को ऐसे सुझाव क्यों सूझते हैं. इसका जवाब भी उन सदस्यों को देना चाहिए जो बुरी आत्माओं की बात कर रहे हैं.


मृत आत्माएं मुआवजे के लिए भटक रही होंगी


विधानसभा भवन के लिए शमशान के अलावा आसपास की जमीन भी कब्जे में ली गयी थी. जिसमें राजस्थान फोर्टी के अध्यक्ष रह चुके प्रेम बियाणी की भी जमीन शामिल हैं. उनका कहना है कि उनकी जमीन तो सरकार ने ली लेकिन आज तक मुआवजा नहीं दिया है. उनकी मां बनाम राज्य सरकार के बीच मुकदमा चल रहा है. ऐसे कुछ लोग जरुर होंगे जो मुआवजे के इंतजार में संसार से जा चुके हैं. प्रेम बियाणी कहते हैं कि ऐसी मृत आत्माएं मुआवजे के लिए भटक रही होंगी. विधानसभा ने जो कानून बनाए, जो नीतियां बनाई, जिन योजनाओं को हरी झंडी दी उससे गरीबों, हाशिए पर छूटे लोगों, जरुरतमंदों को लाभ नहीं मिला. ऐसे लोगों के दुख दर्द से जुड़े सवालों पर विधानसभा में कभी गंभीर चर्चा नहीं हुई, ऐसे लोगों को कभी न्याय नहीं मिल सका, ऐसे लोगों की उम्मीद पर वह विधायक खरे नहीं उतरे जिन्हें इन लोगों ने बड़ी उम्मीद के साथ वोट देकर विधानसभा भेजा था, मंत्री विधायक तो सत्ता सुख पाकर संपन्न हो गए लेकिन ऐसे लोग अच्छे दिनों के इंतजार में दुनिया छोड़ गए. बहुत संभव है कि ऐसे लोगों की हाय विधानसभा को लग गई हो. अगर ऐसा है तो सभी 199 विधायकों को संकल्प लेना चाहिए कि सरकार की हर योजना का लाभ कतार में सबसे अंत में खड़े गरीब आदमी तक भी पहुंचे. तभी मृत आत्माएं संतुष्ट होंगी और पूरे 200 विधायक एक साथ बैठ सकेंगे.