नई दिल्ली: ‘आधार’ देशवासियों की पहचान की हकीकत बन चुका है. कुछ चिंताओं को छोड़कर सभी लोगों का मानना है कि इससे पारदर्शिता आई है. सरकारी योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंच रहा है. इसी को लेकर पेट्रा सोनदेरेगर नामक संस्था ने सर्वे किया था. जिसे सोमवार को जारी कर दिया गया.


जारी किये गये सर्वे के मुताबिक असम, मेघालय को छोड़कर पूरे देश में 95 फीसद व्यस्क जबकि 75 फीसद बच्चे आधार के लिए आवेदन कर चुके हैं. इसके बावजूद हैरान करने वाली बात ये है कि जिनको सरकारी योजनाओं का लाभ आधार नहीं हेने की वजह से नहीं मिला है, उनमें से 97 फीसद आधार से संतुष्ट पाये गये. सर्वे करने वालों का कहना है कि इस तरह का जवाब सुनकर पता चलता है कि सिस्टम में लोगों का कितना भरोसा है. 90 फीसद लोगों का मानना है कि उनका डाटा आधार सिस्टम में सुरक्षित है.


ज्यादातर अल्पसंख्यक, वंचित तबके के पास आधार नहीं है 


हालांकि देश की आबादी का पांच फीसद (करीब 28 मिलियन) अभी भी आधार कार्ड से वंचित है. ऐसे लोगों में अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति और जनजाति की संख्या ज्यादा है. करीब 30 फीसद बेघर और 27 फीसद थर्ड जेंडर बेघर लोगों के पास आधार नहीं है. ऐसा उनके निवास की पहचान या लिंग की चुनौतियों के कारण है.


सर्वे में दावा किया गया है कि 15 फीसद लोगों को आधार ना होने की वजह से किसी ना किसी सरकारी लाभ से वंचित किया गया है. उनमें हाशिये पर पड़े वर्गों और अशिक्षित वर्गों का अनुपात ज्यादा है.


सर्वे में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि भारतीय आधार कार्ड को पहचान, निवास के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. लेकिन अभी भी हर किसी के पास उसकी पहुंच नहीं हुई है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट 2018 में निजी सेवाओं के लिए आधार को गैर जरूरी बता चुका है. मगर इसके बावजूद भ्रम की स्थिति में सेवाओं का लाभ लेते वक्त आईडी प्रूफ की मांग की जाती है. सिम कार्ड या बैंकिंग सेवा से जुड़ने वालों में से ज्यादा लोगों ने माना कि उनसे प्रूफ के तौर पर सिर्फ आधार की मांग की गई थी. वहीं, सर्वे में 73 फीसद स्कूली बच्चों ने स्वीकार किया कि उनका दाखिला आधार से ही हुआ था.


सर्वे के मुताबिक आधार के लिए आवेदन करनेवालों की संख्या उन लोगों के मुकाबले कम है जो सामाजिक, आर्थिक रूप से पिछड़े हैं. राष्ट्रीय औसत से आधार के लिए आवेदन करनेवालों में मुस्लिम और ईसाई का फीसद 11 और 13 है.