पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने कैसे हटाया अनुच्छेद 370, पढ़ें पूरी कहानी
अमित शाह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में गृहमंत्री बनने के बाद पहले दौरे के लिए जम्मू-कश्मीर को चुना. यहां उन्होंने सरपंचों, व्यापारियों, अफसरों और पार्टी कार्यकर्ताओं से बात की.
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के साथ अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाएंगे. इसकी कहानी तब लिख गई थी जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी अकेले 303 सीटें जीत कर आई. पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष व गृह मंत्री अमित शाह ने इस प्रचंड बहुमत को दूसरी तरह से पढ़ा. पीएम मोदी और अमित शाह का मानना है कि जब पुलवामा के आतंकी हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया गया तो देश की जनता ने बीजेपी को दोबारा इसलिए ज़्यादा बहुमत दिया ताकि जम्मू-कश्मीर की समस्या का स्थाई समाधान कर सकें.
पीएम मोदी और अमित शाह दोनों का मानना है कि कश्मीर की समस्या स्थानीय लोग नहीं बल्कि लीडरशिप है और इसमें अलगाववादी के अलावा मुख्यधारा के नेता भी शामिल हैं. इसलिए कश्मीर समस्या का इलाज कहीं और ढूढने की ज़रूरत नहीं है. इसका इलाज बड़े प्रशासनिक बदलाव करके किये जा सकते हैं लेकिन ये प्रशासनिक बदलाव स्थाई प्रकृति के होने चाहिए.
अमित शाह ने गृह मंत्री बनते ही सबसे पहले कश्मीर का दौरा कर ज़मीन पर इस नब्ज़ को पढ़ने की कोशिश की. अमित शाह ने सरपंचों से लेकर, कश्मीरी पुलिस के शहीद जवानों के परिवार से भी मुलाकात की. तीन दिन के दौरे में अमित शाह ने अफसर, व्यापारी, पार्टी कार्यकर्ता और सरपंचों से मिलने के बाद ये तय कर लिया कि अब कश्मीर बड़े बदलाव के लिए तैयार है.
इससे पहले मोदी सरकार अलगाववादियों की कमर आर्थिक और राजनीतिक तौर पर तोड़ चुकी थी. कमज़ोर हो चुके अलगाववादी इस बात की निशानी थे कि अब कश्मीरी जनता का समर्थन अलगाववादियों को नहीं मिल रहा है. इधर केंद्र सरकार ने सरपंचों को मजबूत करने शुरू कर दिया था.
केंद्र की योजनाओं का पैसा जो राज्य सरकार के ज़रिए सरपंचों को दिया जाता था अब केन्द्र सरकार ने वो पैसा सीधे सरपंचों को देना शुरू कर दिया था. पैसा सीधे गांव के विकास में लगाया जा रहा था इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार भी पैदा हो रहे थे.
अमित शाह ने पीएम मोदी से इस बारे में चर्चा की. आरएसएस से भी विस्तार से चर्चा हुई लेकिन क्या, कब और कैसे करना है ये सिर्फ पीएम मोदी और अमित शाह ही जानते थे. आखिरी वक्त तक पूरी ब्यूरोक्रेसी सिर्फ छोटे-छोटे लक्ष्यो को पूरा करने में लगी थी.
मसलन राज्य में कानून व्यवस्था बेहतर हो इसके लिए छोटे-से-छोटे इनपुट पर एक्शन लेने को कहा गया. शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए संसाधनों की कमी पूरी करने की गारंटी दी गयी. अर्धसैनिक बलों की तैनाती बढ़ाई गयी. वहीं दिल्ली में नरेंद्र तोमर, प्रह्लाद जोशी, भूपेंद्र यादव, पीयूष गोयल और धर्मेंद्र प्रधान को राज्य सभा में नंबर मैनेजमेंट और दूसरी पार्टियो के इच्छुक सांसदों के बीजेपी में लाने की ज़िमेदारी दी गयी.
मकसद बताया गया कि तीन तलाक जैसे बिलों को पास कराना और राज्यसभा में बहुमत हासिल करना है लेकिन किसी को नहीं पता था कि ये सब धारा 370 और कश्मीर के बड़े प्लान के लिए किया जा रहा है. अमित शाह की टीम ने संविधान का अध्यन किया. पुराने संविधान संशोधन और उनके इतिहास को खंगाला. शाह इस नतीजे पर पहुंच चुके थे कि धारा 370 को खत्म करने के लिए किसी असाधारण या दो-तिहाई बहुमत की अवश्यकता नहीं है.
अरुण जेटली सहित तमाम कानून और संविधान के जानकारों से सलाह मशविरा किया गया और आखिर में औपचरिक रूप से कानून मंत्रालय की राय भी ली गयी. सोमवार को जब कैबिनेट में ये प्रस्ताव आना था उससे 12 घंटे पहले कानून मंत्रालय से भी राय ली गई.
आखिरकार सरकार ने जम्मू- कश्मीर से न केवल धारा 370 के विवादित प्रावधान खत्म कर दिए बल्कि जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित राज्यों में बाट दिया. अब पुराना जम्मू-कश्मीर इतिहास की बात हो गई है, अब कश्मीर में वो कानून लागू होगा जो पूरे हिंदुस्तान में लागू है.