जम्मू कश्मीर में 90 और 2000 के दशक में आतंक इतने चरम पर था कि सेना, पुलिस, बीएसएफ और सीआरपीएफ के बड़े-बड़े अधिकारियों पर भी फिदायीन अटैक होते थे. जम्मू कश्मीर में डीजीपी रह चुके पूर्व आईपीएस अधिकारी एसपी वैद्य ने बताया कि आज जो स्थिति है, ऐसा 90 के दशक में सोच पाना भी मुश्किल था. उन्होंने कहा कि फिल्मों में जो दिखाया जाता है वो एक-दो घटनाएं होती हैं, लेकिन वहां हुआ बहुत कुछ है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ये चाहता था कि कश्मीर से नॉन-मुस्लिम को निकाला जाए. वहां वंधानामा नरसंहार हुआ, जिसमें कश्मीरी पंडित भी मारे गए. जम्मू-कश्मीर के मुसलमान कश्मीरी पंडितों को अच्छे टीचर्स के तौर पर अभी भी याद करते हैं. 


उन्होंने कहा, '35 साल पहले जब हम नए-नए एसपी और डीएसपी बने थे तो जम्मू-कश्मीर की जो हालत बिगडते देखी, तब कोई सोच भी नहीं सकता था कि जो आज स्थिति है, ऐसा भी दिन आएगा. 90 के दशक में वहां आंतक चरम पर आया और फिदायीन अटैक होने लगे. आर्मी के हेडक्वार्टर पर, विधानसभा पर, पुलिस स्टेशन, सीआरपीएफ, बीएसएफ और जम्मू-कश्मीर के हेडक्वार्टर सुसाइड बॉम्बर हमले करते थे.' उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 हटने से हालात बहुत सुधरे हैं, लेकिन सरकार जब तक कश्मीरी पंडितों को रिसेटल न कर दे तब तक मैं समझता हूं कि इस जंग में पूरी कामयाबी नहीं है.' 


कैसे आर्मी और पुलिस अधिकारियों के लिए होती थी सुसाइड बॉम्बिंग?
एसपी वैद्य ने बताया कि कारगिल के बाद पूरे जम्मू-कश्मीर में सुसाइड बॉम्बिंग हो रही थी. बांडीपुरा में बीएसएफ के हेडक्वार्टर पर फिदायीन हमला हुआ, जिसमें उस वक्त के डीआईजी शहीद हुए थे. उन्होंने कहा कि सुसाइड बॉम्बर इस सोच के साथ आते हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारना है. जिहाद के नाम पर लोगों को मारते हैं उन पर जुनून सवार होता है. एसपी वैद्य ने बताया कि उरी हमले के दौरान वह जम्मू-कश्मीर में स्पेशल डीजीसी, लॉ एंड ऑर्डर थे. सुबह-सुबह चार आंतकी बॉर्डर क्रॉस करके उरी हेडक्वार्टर में घुसे, मैस में गए और हमला किया. 4 आतंकी ने 19 फौजियों को शहीद कर दिया.


मुझे मारने के लिए बनाया था ट्रैप, बोले पूर्व आईपीएस अधिकारी
उन्होंने अपने साथ हुई एक घटना का जिक्र करते हुए कहा, 'मैं 1999 में बड़गाम में एसपी था. एक दिन मैं बड़गाम के एक इलाके में जाने वाला था. वहां के लोगों ने मुझसे कहा कि आपने हमें खुदा के हवाला कर दिया है, न आप आते हैं, न डिप्टी कमीश्नर आते हैं, हमें आतंकियों के हवाले कर दिया. मैंने कहा कि हम सोमवार को आएंगे. हमें पता नहीं चला कि वो एक ट्रैप था. मैंने डिप्टी कमीश्नर को फोन किया और सोमवार को वहां जाने के लिए कहा. मैं सोमवार को जाने के लिए निकलने लगा तो मुझे मैसेज आया. मुझे अर्जेंट काम के लिए कहीं और बुला लिया. इस वजह से हम दोनों नहीं जा पाए. हमारे पीछे से दूसरे अधिकारी चले गए और उन पर हमला हो गया. वो हमला हम दोनों के लिए प्लान था.'   


मेरे पीएसओ को किडनैप कर प्रेस से जला दिया जिस्म, बोले एसपी वैद्य
एक और घटना के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, 'मेरा एक पीएसओ था. उसे किडनैप किया और आतंकियों ने प्रेस से उसका पूरा जिस्म जला दिया. आतंकी उससे इंटेरोगेट करते हुए गर्म प्रेस शरीर पर लगाते थे और मेरे बारे में पूछते थे. इस तरह से टॉर्चर करते थे.' एसपी वैद्य ने आगे कहा कि इंडियन आर्मी, बीएसएफ और सीआरपीएफ के जवान दो साल की ड्यूटी पर जम्मू-कश्मीर जाते हैं, लेकिन वहां की पुलिस का योगदान नहीं भूलना चाहिए. उनके जवानों को वहीं उन्हीं लोगों की सोसाइटी में रहना होता है.


उन्होंने कहा कि 10-15 साल पहले जब वहां आतंक चरम पर था तो सोच भी नहीं सकते कि पुलिस को वहां क्या सहन करना पड़ता था. उस समय ऐसी सोसाइटी वहां बन गई थी कि लोग पुलिस के शहीद जवानों को कब्रिस्तान में दफनाने नहीं देते थे. एसपी वैद्य ने बताया, '90 के दशक में मैंने देखा है कि लाल चौक में एक सिपाही को कोई गोली मारता है. उसकी बॉडी को वहां से लेकर जाते हैं और दूसरा सिपाही वहीं खड़ा हो जाता है. ये जानते हुए कि उसके साथ भी ऐसा हो सकता है. मैं समझता हूं कि असली हीरो वो हैं, जो सिपाही खड़े होकर ऐसी स्थिति में काम करते हैं.'


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