नई दिल्ली: देश के सबसे बड़े प्रदेश, उत्तर प्रदेश में योगी राज आ चुका है. भगवा धारी पैतालीस साल के आदित्यनाथ योगी यूपी के मुख्यमंत्री बन चुके हैं. प्रदेश से लेकर देश ही नहीं बल्कि विदेश तक इस बात की चर्चा हो रही है कि जो योगी एक दिन पहले तक सीएम की रेस में पीछे थे अचानक उन्हें सीएम की जिम्मेदारी कैसे दे दी गई.
पूर्वांचल की बंपर जीत बनी वजह
योगी को सीएम बनाने के लिए सबसे पहली वजह पूर्वांचल में बीजेपी की बंपर जीत मानी जा रही है. आदित्यनाथ पूर्वांचल के सबसे बड़े शहर में से एक गोरखपुर से सांसद हैं. पार्टी ने चुनाव में योगी को सीएम उम्मीदवार नहीं बनाया था लेकिन उससे कम रूतबा में योगी दिख भी नहीं रहे थे. समर्थकों ने तो गीत संगीत के जरिये योगी को सीएम बनाने की मुहिम छेड़ रखी थी.
योगी-मोदी और अमित शाह के बाद पार्टी के उन स्टार प्रचारकों में से एक थे जो हेलिकॉप्टर से प्रचार कर रहे थे. मोदी शाह के बाद प्रचार के लिए सबसे ज्यादा मांग योगी की ही थी, अकेले योगी ने पौने दो सौ सभाएं की. नतीजा हुआ कि पूर्वांचल की 175 में से बीजेपी 154 सीटें जीत गई लोकसभा के लिहाज से इस इलाके में 35 सीटें हैं.
पूर्वांचल सूबे का पिछड़ा इलाका है लेकिन बीजेपी का गढ़ हो चुका है. इसलिए इस इलाके में विकास की नई कहानी लिखने की जरूरत है और पार्टी को लगता है कि आदित्यनाथ ही बीजेपी के पूर्वांचल प्लान को आगे ले जा सकते हैं.
यूपी कंधे पर बंदूक, निशाना बिहार पर भी!
योगी के प्रभाव वाला पूर्वांचल का इलाका सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं है बल्कि योगी का प्रभाव सूबे की सीमा से बाहर बिहार के उन इलाकों में भी पड़ने वाला है जो यूपी से सटा हुआ है. बिहार के करीब 9 जिले ऐसे हैं जो पूर्वांचल का इलाका माना जाता है. योगी के आने से इस इलाके में भी बीजेपी को मजबूती मिलेगी और आने वाले दिनों में फायदा हो सकता है.
जातीय समीकरण को तोड़ने की कोशिश
योगी को आगे करने का मतलब है हिंदू वोटों को सामने रखकर राजनीति करना. यानी योगी के आने से बीजेपी जाति के बंधन को तोड़ना का प्लान बना रही है. इस चुनाव में भी बीजेपी को जाति पाति से उपर उठकर वोट मिला है. पार्टी इस समीकरण को आगे भी बनाकर रखना चाहती है.
इस चुनाव में बीजेपी को ओबीसी का भरपूर वोट मिला है, गैर यादव जातियों का भरोसा बीजेपी पर बढ़ा है. कुर्मी, लोध, कुशवाहा, निषाद जैसी जातियां बीजेपी के साथ हो गई है. दलितों का बड़ा हिस्सा भी बीजेपी के साथ है.
इस प्रयोग को आगे भी कायम रखने की नीयत से ही बीजेपी ने जाति के बजाए योगी के चेहरे को प्रमुखता दी है. यानी बीजेपी आगे की राजनीति सिर्फ खास जातियों के भरोसे नहीं बल्कि हिंदू वोटों के भरोसे करने की तैयारी में है.
2017 के बहाने 2019 पर नजर
असल में यूपी जीतने के बाद अब पूरा फोकस 2019 के लोकसभा चुनाव पर है. 2014 के चुनाव में मोदी के चेहरे पर बीजेपी को यूपी में बंपर जीत मिली थी. 2019 में इस जादू को बरकरार रखने की चुनौती है और अगर यूपी में इस जीत के बाद बीजेपी जाति के खांचे में बंट जाती तो फिर 2019 का सपना अधूरा रह सकता था.
पार्टी इस बात को अच्छी तरह समझ गई थी कि तमाम जातियों को किसी और के नाम और चेहरे पर साधकर रख पाना आसान नहीं रहने वाला. इसलिए योगी पर दांव लगाया गया जो कि कट्टर छवि वाले नेता हैं और जिनका असर जाति के बंधन से बड़ा माना जा रहा है.
मजबूत सेनापति की तलाश थी!
यूपी में बंपर जीत के बाद पार्टी इस कद का कोई नेता तलाश रही थी जो 325 विधायको को और इतने बड़े प्रदेश को संभाल सके. राजनाथ सिंह के नाम पर पार्टी की खोज पूरी भी हो चुकी थी लेकिन राजनाथ इसके लिए राजी नहीं थे. राजनाथ के बाद जो भी नाम आया उस पर सहमति की गुंजाइश नहीं दिख रही थी.
सत्ता का वनवास खत्म करके आई पार्टी को अपने कार्यकर्ताओं पर काबू करने वाला एक मजबूत सेनापती चाहिए था जिस की बात हर कोई सुन सके और आदित्यनाथ पर जाकर पार्टी की खोज खत्म हुई.