हिमाचल प्रदेश: अपनों से ही जूझ रही है बीजेपी-कांग्रेस, आम आदमी पार्टी कहीं बिगाड़ न दे खेल
बीजेपी को प्रदेश के करीब 18 सीटों पर अपने ही नेताओं की बगावत झेलनी पड़ रही है. कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस का भी है. कांग्रेस को करीब 10 सीटों पर अपनों से चुनौती मिल रही.
हिमाचल विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन की तारीख खत्म हो चुकी है. यहां 12 नवंबर को वोटिंग की जाएगी. उस दिन सूबे की 68 सीटों के लिए 561 उम्मीदवार मैदान में किस्मत आजमा रहे होंगे. प्रदेश में तीन बड़ी पार्टियां बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने सभी 68 सीटों पर अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं.
लेकिन जहां एक तरफ बीजेपी उम्मीदवारों की सूची जारी होते ही पार्टी में बगावत शुरू हो गई है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के अंदर भी बगावत की लहर दौड़ रही है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों की राह में अपनी पार्टी के ही नेता सिरदर्द बने हुए हैं.
दरअसल हिमाचल प्रदेश उन चंग राज्यों में शामिल है जहां हर पांच सालों में सत्ता परिवर्तन होता रहा है. यहां जीतने वाली पार्टी के बीच का अंतर अक्सर कुछ वोटों का होता है. ऐसे में दो बड़ी पार्टियों के बागी नेता अब इन पार्टियों के लिए चिंता का सबब बन गए हैं.
बीजेपी के सिरदर्द बने बागी नेता
दरअसल बीजेपी को प्रदेश के करीब 18 सीटों पर अपने ही नेताओं की बगावत झेलनी पड़ रही है. कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस का भी है. कांग्रेस को करीब 10 सीटों पर अपनों से चुनौती मिल रही. दरअसल कांग्रेस से टिकट चाहने वाले उम्मीदवारों को पार्टी टिकट नहीं दिए जाने पर अब वह निर्दलीय के रूप में उतर गए हैं. विधायकों के इस कदम ने कांग्रेस की सत्ता में वापसी की राह को और मुश्किल कर दिया है. वर्तमान में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां बागी नेताओं को मनाने और उनकी दिक्कतों को सुलझाने में जुटी हैं ताकि चुनावी नुकसान न उठाना पड़े.
पार्टी नेताओं के बगावत से होने वाले नुकसान को भांपकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने प्रदेश के सीएम जयराम ठाकुर, पार्टी के चुनाव प्रभारी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह, बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे, प्रदेश पार्टी अध्यक्ष सुरेश कश्यप, पार्टी प्रभारी अविनाश राय खन्ना और उपमुख्यमंत्री संजय टंडन को बगावती तेवर अख्तियार किए नेताओं को शांत कराने की जिम्मेदारी सौंपी है.
बीजेपी में बगावती तेवर
बीजेपी में चल रहे बगावत का एक कारण उम्मीदवारों की लिस्ट में मंत्रियों की विधानसभा सीटों को बदलना भी है. दरअसल पार्टी ने सुरेश भारद्वाज सहित दो वरिष्ठ मंत्रियों की विधानसभा सीटों को बदल दिया. शिमला शहर से चार बार विधायक रहे भारद्वाज की जगह शिमला से चायवाला प्रत्याशी संजय सूद को टिकट दिया था और भारद्वाज को सुम्पटी से प्रत्याशी बनाया. वहीं पार्टी के 11 मौजूदा विधायक ऐसे हैं जिन्हें टिकट ही नहीं दिया गया.
इसके अलावा चंबा विधानसभा सीट में बीजेपी ने पहले इंदिरा कपूर को टिकट दिया. इंदिरा को टिकट दिए जाने के विरोध में उस सीट के मौजूदा विधायक पवन नैय्यर ने इस फैसले पर नाराजगी जाहिर करते हुए ‘रोष रैली’ निकाली थी. इस रैली के बाद बीजेपी ने फिर एक बार अपना फैसला बदला और नैय्यर की पत्नी नीलम को मैदान में उतार दिया. पार्टी के इस फैसले के बाद इंदिरा कपूर और उनके समर्थकों ने पार्टी के खिलाफ विद्रोह कर दिया. उन्होंने भी ‘आक्रोश रैली’ निकाली. हालांकि पिछले महीने ही बीजेपी का दामन थामने वाले हर्ष महाजन ने इंदिरा कपूर से मुलाकात करके उन्हें शांत कराया.
कुल्लू सदर सीट पर भी महेश्वर सिंह का टिकट काटकर उनकी जगह नरोत्तम ठाकुर को प्रत्याशी बनाया गया. पार्टी के इस फैसले से नाराज होकर महेश्वर सिंह और उनके बेटे हितेश्वर सिंह निर्दलीय मैदान में कूद पड़े हैं. कुल्लू सदर से बीजेपी के एक और नेता राम सिंह ने भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल कर रखा है.
वहीं एसटी मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष विपिन नैहरिया भी नाराजगी जताते हुए पार्टी छोड़ दी और अनिल चौधरी ने टिकट नहीं मिलने से पार्टी छोड़ दी. अब ये दोनों ही नेता निर्दलीय चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं.
मुख्यमंत्री के जिले में बगावत पर उतरी पार्टी
जनपद मंडी और कांगड़ा जिला में भी बगावत चल रही है. इस क्षेत्र की खास बात यह है कि यह प्रदेश के सीएम जयराम ठाकुर का गृह जिला है. वर्तमान में कांगड़ा की 10 विधानसभा सीटों पर बीजेपी को अपने ही नेताओं की बगावत झेलनी पड़ रही है.
इसके अलावा नूरपुर से भी कैबिनेट मंत्री राकेश पठानिया को फतेहपुर सीट भेजा है, लेकिन यहां से पूर्व प्रत्याशी कृपाल परमार बागी हो गए हैं और निर्दलीय चुनाव लड़ रहे. इंदौरा विधानसभा सीट से विधायक रीता धीमान को फिर से टिकट मिली है, लेकिन यहां उन्हें टक्कर देने के लिए एक बार फिर पूर्व विधायक मनोहर धीमान निर्दलीय किस्मत आजमा रहे हैं.
पार्टी ने जवाली सीट पर अर्जुन सिंह का टिकट काटा है और संजय गुलेरिया को प्रत्याशी बनाया है, लेकिन समर्थकों के दबाव के कारण अब अर्जुन सिंह भी चुनाव मैदान में उतर गए हैं. धर्मशाला में विशाल नेहरिया की जगह राकेश चौधरी को टिकट दिया गया है, जिससे नाराज विशाल नेहरिया बागी हो गए हैं.
इस बगावत के बीच निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मंडी सदर के बीजेपी नेता प्रवीण शर्मा चुनावी मैदान में उतरे हैं जो पार्टी के मीडिया प्रभारी थे. ऐसे ही नालागढ़ के विधायक केएल ठाकुर और हमीरपुर जिला परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष नरेश दरजी शामिल हैं.
कांग्रेस भी चुनौतियों से जूझ रही है
कांग्रेस हिमाचल में सत्ता में अपनी वापसी के लिए जमकर प्रचार कर रहा है. लेकिन पार्टी के अंदर चल रहे आपसी कलह को देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि कांग्रेस के लिए उसके ही नेता चुनौती बन गए हैं. दरअसल 10 सीटों पर टिकट नहीं दिए जाने से नाराज कांग्रेस नेता अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं.
रामपुर में कांग्रेस के कौल नेगी को प्रत्याशी बनाने से नाराज पार्षद विशेषर लाल बागी हो गए हैं. इसके अलावा चौपाल सीट पर कांग्रेस के 2 बार के विधायक डॉ. सुभाष मंगलेट ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन पत्र भरा है. ठियोग सीट पर विजय पाल खाची और इंदू वर्मा निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे हैं. सुलह सीट पर पूर्व विधायक जगजीवन पाल ने बागी रुख अख्तियार किया है.
इसके अलावा अर्की सीट से होली लॉज के करीबी राजेंद्र ठाकुर निर्दलीय नामांकन भरा हैं. पच्छाद में भी पार्टी ने पूर्व में बीजेपी नेत्री रही दयाल प्यारी को टिकट दे दिया , जिससे नाराज पूर्व विधायक गंगू राम मुसाफिर बागी हो गई हैं. वहीं चिंतपूर्णी में पार्टी के लिए बागी चुनौती बन गए हैं.
आम आदमी पार्टी बिगाड़ ना दे खेल
हिमाचल प्रदेश में विधानसभा की कुल 68 सीटें हैं और सभी सीटों पर 12 नवंबर को एक साथ मतदान होगा. राज्य में वोटिंग होने में अब लगभग दो महीने से भी कम का समय बचा है. ऐसे में जहां कांग्रेस और बीजेपी अपनी ही पार्टी के अंदर की गुत्थी सुलझाने में लगे हैं वहीं इन दोनों पार्टियों की वर्तमान स्थिति का फायदा आदमी पार्टी को मिल सकता है. आम आदमी पार्टी जोर-शोर के साथ चुनावी तैयारियों में जुटी हुई हैं. पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि पंजाब मे मिली जीत को मनोवैज्ञानिक लाभ हिमाचल में भी मिल सकता है. यहां पर आम आदमी पार्टी के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है तो वहीं बीजेपी को सरकार बचाना है, तो कांग्रेस के सामने पांच साल बाद सत्ता वापस पाने की चुनौती है.