ह्यूमन राइट्स वॉच ने भारत से दिल्ली हिंसा के मामलों में पक्षपात खत्म करने की मांग की है. उसने राजनीति से प्रेरित केस को फौरन रद्द कर नागरिकता कानून के प्रदर्शनकारियों को रिहा करने की मांग की है. साथ ही संस्था ने गैर कानूनी गतिविधि कानून को संशोधित करने की वकालत की है.


ह्यूमन राइट्स वॉच ने भारत सरकार से की मांग


दक्षिण एशिया क्षेत्र की निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, "सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियों के खिलाफ खड़े होनेवालों को जेल में बंद करने के बजाए, अधिकारियों को उनकी शिकायतों और भय को सुनना चाहिए." उन्होंने बताया कि भारतीय अधिकारियों ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बीच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया. गिरफ्तार लोगों में सफूरा जरगर, मीरान हैदर, आसिफ इकबाल तन्हा, गुलफिशां फातिमा, शिफाउर्रहमान, खालिद सैफी, पिंजरा तोड़ की देवांगना कलिता और नताशा नरवाल शामिल हैं. संस्था का कहना है कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का मकसद भविष्य में सरकार के खिलाफ उठनेवाली आवाजों को दबाना है.


नागरिकता कानून के प्रदर्शनकारियों की हो रिहाई


पुलिस ने दहशतगर्दी, राष्ट्रविरोधी दमनकारी कानून का इस्तेमाल छात्रों, कार्यकर्ताओं के खिलाफ इस्तेमाल किया है मगर बीजेपी के समर्थकों पर हिंसा भड़काने के लिए कार्रवाई नहीं की है. कुछ मामलों में कार्यकर्ताओं को जमानत मिलने के बाद भी जेल में डालने के लिए नए मामले पुलिस ने गढ़ दिए. ऐसे में भीड़भाड़ वाली जेलों में रहने से उनको कोरोना संक्रमण से ग्रसित होने का खतरा बढ़ गया है. कई मामलों के हवाले से संस्था ने बताया कि पुलिस ने कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के लिए स्थापित आपराधिक दंड संहिता का पालन नहीं किया. ह्यूमन राइट्स वॉच ने सरकार से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण जमावड़े का अधिकार सुनिश्चित करने की मांग की है.


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