एक महीने में सिर्फ दो बार मिलने आती थी पत्नी, पति ने कर दिया मुकदमा तो महिला पहुंची हाई कोर्ट
Gujarat High Court: सूरत की एक नौकरीपेशा महिला अपने पति से महीने के दूसरे और चौथे 'वीकेंड' पर मिलने के लिए ससुराल आती थी. इससे खफा पति ने फैमिली कोर्ट में मुकदमा दर्ज कर दिया है.
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Surat Family Dispute: एक नौकरीपेशा महिला ने अपने पति की याचिका और दावे का जवाब देने के लिए गुजरात हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. पत्नी ने कोर्ट को अवगत कराया है कि वह महीने में दो 'वीकेंड' अपने पति से मिलने जाती है. अब पत्नी ने कोर्ट से जानने की कोशिश की कि यह उसके वैवाहिक दायित्वों को पूरा करने के बराबर है या नहीं.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला ने इस महीने की शुरुआत में हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जब पति ने पिछले साल सूरत की एक फैमिली कोर्ट में उस पर दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 का इस्तेमाल करते हुए मुकदमा दायर किया था. पति ने अपनी पत्नी को हर रोज उसके साथ आने और रहने के लिए निर्देश देने का आग्रह किया था.
पति ने फैमिली कोर्ट के समक्ष कहा कि उसकी पत्नी दैनिक आधार पर उसके साथ नहीं रहती है. बेटे के जन्म के बाद वह नौकरी के बहाने अपने माता-पिता के घर पर ही रह रही है.
माता-पिता के साथ मायके में रहने पर बताई परेशानी
पति ने कहा कि वह इस बात को लेकर परेशान है कि पत्नी महीने में केवल दूसरे और चौथे 'वीकेंड' के दौरान ही उससे मिलने के लिए आती है. महीने के बाकी दिनों में वह अपने माता-पिता के साथ अपने पैतृक घर यानी मायके में ही रहती है.
पति ने यह भी शिकायत की कि उसकी पत्नी ने बेटे के स्वास्थ्य की अनदेखी और पति को वैवाहिक अधिकारों से वंचित करते हुए अपनी नौकरी को जारी रखा है.
पत्नी का दावा- हर माह दो 'वीकेंड' पर नियमित तौर पर जाती हैं ससुराल
पति के आरोपों के जवाब में पत्नी ने सिविल प्रक्रिया संहिता के नियम 7 आदेश 11 के तहत फैमिली कोर्ट में एक आवेदन दायर किया. कोर्ट से आग्रह किया कि पति के मुकदमे को सुनवाई योग्य नहीं मानते हुए इसको खारिज कर दिया जाए. आवेदन में यह भी कहा कि वह हर माह दो 'वीकेंड' पर नियमित तौर पर वैवाहिक घर (ससुराल) जाती है. जबकि पति का दावा है कि उसने उसे छोड़ दिया है और उसे उसके साथ रहने के लिए निर्देशित करने की आवश्यकता है, इसलिए यह सही नहीं है.
फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दी थी 25 सितंबर को पत्नी की आपत्ति
फैमिली कोर्ट ने गत 25 सितंबर को पत्नी की आपत्ति को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने इस मामले में पत्नी की ओर से किए गए दावों के लिए पूरी सुनवाई की जरूरत पर बल दिया था और यह भी कहा कि मामले का फैसला पूर्व-ट्रायल फेज में नहीं किया जा सकता है.
हाई कोर्ट में महिला के वकील ने दी ये दलील
हाई कोर्ट के समक्ष जिरह के दौरान महिला के वकील की ओर से तर्क दिया गया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 कहती है कि किसी व्यक्ति को वैवाहिक दायित्व को पूरा करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है, अगर वह अपने पति या पत्नी के समाज से अलग हो गई है. वकील ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि इस मामले में पत्नी हर दूसरे सप्ताहांत में अपने वैवाहिक घर जाती है. ऐसे में पति यह दावा नहीं कर सकता कि वह (पत्नी) उसके समाज से अलग हो गई है.
कोर्ट ने पति से मांगा 25 जनवरी तक जवाब
न्यायमूर्ति वीडी नानावती ने पूछा, "अगर पति अपनी पत्नी को अपने साथ आने और रहने के लिए कहता है तो इसमें गलत क्या है? क्या उसे मुकदमा करने का अधिकार नहीं है?" न्यायाधीश ने कहा कि इस मुद्दे पर विचार करने की आवश्यकता है. कोर्ट ने पति से 25 जनवरी तक जवाब भी मांगा है.
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