हैदराबाद एनकाउंटर केस की जांच कर रहे आयोग को मिले और 6 महीने, 3 अगस्त तक देनी थी रिपोर्ट
ये घटना पिछले साल 26 नवंबर की रात की है. हैदराबाद में अपनी ड्यूटी से लौट रही 27 साल की एक वेटनरी डॉक्टर को अगवा किया गया था. रेप करने के बाद हत्या की गई और शव को पेट्रोल से जला दिया गया था.
नई दिल्ली: हैदराबाद एनकाउंटर मामले की जांच के लिए गठित जांच आयोग का कार्यकाल सुप्रीम कोर्ट ने 6 महीने बढ़ा दिया है. आयोग ने कोरोना के मद्देनजर जांच में आई दिक्कत का हवाला देते हुए अपना कार्यकाल बढ़ाने की दरख्वास्त की थी. पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस वी एस सिरपुरकर की अध्यक्षता में इस आयोग का गठन सुप्रीम कोर्ट के ही आदेश पर हुआ है. तीन सदस्यीय आयोग में मुंबई हाई कोर्ट की रिटायर्ड जज रेखा बलडोटा और पूर्व सीबीआई प्रमुख वी एस कार्तिकेयन भी सदस्य हैं.
क्या थी घटना?
पिछले साल 26 नवंबर की रात हैदराबाद में अपनी ड्यूटी से लौट रही 27 साल की एक वेटनरी डॉक्टर (पशु चिकित्सक) को अगवा किया गया था. उसका बलात्कार करने के बाद हत्या की गई और शव को पेट्रोल से जला दिया गया था. हैदराबाद पुलिस ने 4 आरोपियों को मामले में गिरफ्तार किया. 6 दिसंबर को तड़के करीब 3 बजे पुलिस की एक टीम चारों को उस जगह ले कर गई, जहां उन्होंने शव को जलाया था. पुलिस का मकसद वारदात के घटनाक्रम की जानकारी जुटाने के साथ कुछ सबूतों की बरामदगी था. लेकिन पुलिस के दावे के मुताबिक वहां आरोपी पुलिस पर हमला कर भागने लगे. इस वजह से उनका एनकाउंटर किया गया और चारों मारे गए.
कोर्ट ने बनाया आयोग
सुप्रीम कोर्ट में तीन वकीलों ने याचिका दायर कर पूरे मामले को संदिग्ध बताया. उनका कहना था कि पुलिस ने जिस तरह से चारों लोगों को मार गिराया, वह सीधे-सीधे लोगों के दबाव का नतीजा नजर आता है. पूरी कार्यवाही पुलिस नियमावली के खिलाफ थी. इस तरह से न्यायिक प्रक्रिया की उपेक्षा कर पुलिस का खुद इंसाफ करना सही नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को सुनते हुए अपनी तरफ से 3 सदस्यीय आयोग का गठन किया था.
अगस्त में पूरा हो रहा था कार्यकाल
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि आयोग जिस दिन से अपना काम शुरू करे, उसके 6 महीने में रिपोर्ट दे. आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर यह बताया कि उसकी पहली बैठक 3 फरवरी को हुई. इस लिहाज़ से उसका कार्यकाल 3 अगस्त को पूरा हो रहा है. लेकिन मार्च में लॉकडाउन शुरू हो जाने के चलते कमीशन का काम बहुत प्रभावित हुआ. कमीशन न तो कोई बैठक कर पाया, न ही किसी तरह की सुनवाई हो सकी.
समय दिए जाने की मांग
अर्ज़ी में यह भी कहा गया कि मामले से जुड़े तथ्य और सबूत जुटाने के लिए आयोग की तरफ से एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया गया था. लोगों से यह कहा गया था कि अगर उनके पास कोई जानकारी है या वह कुछ कहना चाहते हैं, तो उसे आयोग के सामने रख सकते हैं. इसके जवाब में 1300 से ज्यादा हलफनामे आयोग के पास पहुंचे. इनकी समीक्षा की जा रही है. आयोग ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपनी कार्रवाई को चलाने पर भी विचार किया. लेकिन यह संभव नहीं है क्योंकि मामले में कई लोगों के बयान दर्ज होने हैं. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग इसका विश्वसनीय जरिया नहीं हो सकता. इससे आयोग के काम की गोपनीयता भंग हो सकती है. इसलिए, सुप्रीम कोर्ट इस बात की मंजूरी दे कि आयोग जब नियमित सुनवाई शुरू करे, उसके बाद वह 6 महीने तक काम कर सकता है.
कोर्ट ने दी इजाज़त
मामला आज चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने लगा. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने ही दिसंबर में इस आयोग के गठन का आदेश दिया था. आज कोर्ट ने आयोग की तरफ से दाखिल अर्जी को स्वीकार करते हुए कार्यकाल बढ़ाने को मंजूरी दे दी.
अशोक गहलोत ने कहा-राज्यपाल ऊपर के दबाव के कारण विधानसभा का सत्र नहीं बुला रहे