'100 रुपये का कर्ज, 10 साल की बंधुआ मजदूरी...', महिला ने बताया कैसे 14 साल की उम्र से गिरवी थी जिंदगी
Bonded Labour: हैदराबाद में गुरुवार (29 अगस्त 2024) को मानव तस्करी पर आयोजित राष्ट्रीय तकनीकी परामर्श में बंधुआ मजदूरी का शिकार हुई एक महिला कुप्पामल ने बताया कि बंधुआ मजदूरी का अपना दर्द.
Bonded Labour News: भारत में बंधुआ मजदूरी अब भी बड़ी समस्या है. समय-समय पर पुलिस और प्रशासन की टीम बंधुआ मजदूरी कर रहे लोगों को रेस्क्यू करती रहती है. हालांकि हर कोई रेस्क्यू हो जाए ये जरूरी नहीं, किसी-किसी को कई वर्षों तक इस दर्द को झेलना पड़ता है. ऐसा ही कुछ हैदराबाद की कुप्पामल के साथ हुआ था.
करीब दो दशक पहले कुप्पामल की शादी उसके एक रिश्तेदार से हुई थी. उस वक्त कुप्पामल की उम्र 13 साल थी, जबकि इनके पति की उम्र 15 साल थी. शादी के वक्त उन्हें इस बात का अहसास नहीं था कि वह अगले 10 साल तक बंधुआ मजदूरी में फंसी रहेंगी. ये बंधुआ मंजदूरी भी महज 100 रुपये का कर्ज चुकाने के लिए होगी, जिसे उनके दादा-ससुर ने एक अमीर आदमी से लिया था.
'सातों दिन 24 घंटे तक करना पड़ता था काम'
कुप्पामल अब 40 की उम्र पार कर चुकी हैं और उन्हें अब भी याद है कि कैसे उन्हें और उसके ससुराल वालों को तमिलनाडु में एक चावल मिल में कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. हैदराबाद में गुरुवार (29 अगस्त 2024) को मानव तस्करी पर आयोजित राष्ट्रीय तकनीकी परामर्श में कुप्पामल ने द न्यू इंडिया एक्सप्रेस को बताया कि वहां हमें सातों दिन 24 घंटे काम करना पड़ता था. वहां पुरुष भार उठाते थे और चावल के बोरे गोदाम से लाते-ले जाते थे, जबकि हम (महिलाएं) धान को चुनती और साफ करती थीं, उसे उबालती थीं और छांटती थीं.
अगले दिन खाते थे रात का बचा हुआ खाना
कुप्पामल ने बताया कि उन्हें खाना पकाने और खाने के लिए भी समय नहीं मिलता था. हम रात 8 बजे के आसपास दलिया बनाना शुरू करते थे और रात 10 बजे तक खाना खाकर, सफाई करके अपना काम जारी रखते थे. रात के खाने के लिए हम जो दलिया बनाते थे, वही अगले दिन का नाश्ता होता था.
बेटी को भी पढ़ने के लिए नहीं थी बाहर जाने की इजाजत
चावल मिल में 10 वर्षों तक काम करने के दौरान, कुप्पम्मल ने अपने एक बच्चे को खो दिया. फिर उन्हें अपनी दो छोटी बेटियों को भी मिल में काम पर लगाना पड़ा. वह कहती हैं कि मेरी सबसे बड़ी बेटी सात साल की हो गई और हम अब भी मिल में थे और उसे पढ़ाई के लिए बाहर जाने की अनुमति नहीं थी. तभी हमने फैसला किया कि हमें बाहर जाना होगा और अंतर्राष्ट्रीय न्याय मिशन ने हमें बचाने में मदद की. अपने बचाव के लगभग दो दशक बाद कुप्पम्मल जो अब तिरुवल्लूर में रिहा किए गए बंधुआ मजदूर संघ (RBLA) का हिस्सा हैं, अपने जीवन को फिर से बनाने के प्रयास में मानव तस्करी से रेस्क्यू किए गए अन्य लोगों के साथ काम करती हैं.
अब बंधुआ मजदूरी से बचाए गए लोगों के लिए कर रहीं हैं काम
RBLA, जो तमिलनाडु के पांच जिलों में बंधुआ मजदूरी से रेस्क्यू किए गए करीब 10,000 लोगों का एक संघ है. इसने अपने समुदाय के लिए काम के अवसर पैदा करने की कोशिश में सरकार के साथ मिलकर काम किया है. कुप्पम्मल ने बताया, "सरकार ने हम जैसे लोगों के लिए काम करने और कमाने के लिए दो ईंट भट्टे बनवाए हैं. इसके अलावा ब्लॉक प्रिंटिंग की पहल भी चल रही है, जिसका मैं हिस्सा हूं."
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