महाराष्ट्र कैडर की आईएएस पूजा खेडकर कभी आईएएस बन ही नहीं पातीं, लेकिन वो आईएएस बनीं तो उनकी दबंगई भी सामने आई, अपने ही अधिकारी के दफ्तर पर कब्जा करने का मामला भी सामने आया, खुद ही ऑडी कार पर लाल-नीली बत्ती लगाकर घूमने भी लगीं, और जब विवाद हुआ तो उनका ट्रांसफर भी हो गया. आखिर क्या है कहानी पूजा खेडकर की, जिसने कई गंभीर सवालों को जन्म दे दिया है, आज बात करेंगे विस्तार से.


साल 2022 में जब यूपीएससी की परीक्षा हुई थी तो पूजा खेडकर ने भी वो परीक्षा पास की थी. तब उन्हें ऑल इंडिया 841 रैंक मिली थी. हालांकि, इस रैंक पर आईएसएस कैडर नहीं मिलता है, लेकिन पूजा खेडकर को आईएएस का कैडर मिला. यही कैडर ही कई गंभीर सवाल खड़े कर रहा है क्योंकि पूजा खेडकर ने यूपीएससी की परीक्षा के दौरान दावा किया था कि वो नॉन क्रिमी लेयर ओबीसी हैं. यानी कि उनके परिवार की सालाना कमाई 8 लाख रुपये से कम है. इसके अलावा पूजा खेडकर ने ये भी दावा किया था कि वो दृष्टिबाधित हैं और मानसिक तौर पर बीमार हैं. पूजा ने बाकायदा इसका सर्टिफिकेट भी यूपीएससी को सौंपा था. जब यूपीएससी ने पूजा का मेडिकल करवाने की बात की तो पूजा ने कोरोना का हवाला देकर मेडिकल जांच से इनकार कर दिया.


एमआरआई रिपोर्ट में किया आंखों की रोशनी जाने का दावा
एक बार नहीं बल्कि छह-छह बार पूजा ने मेडिकल करवाने से इनकार कर दिया. आखिरकार उन्होंने एक एमआरआई रिपोर्ट यूपीएससी को सौंपी, जिसमें उनकी आंखों की रोशनी जाने का जिक्र था. यूपीएससी ने इस पर सवाल खड़े किए. पूजा खेडकर के चयन को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण यानी कैट में चुनौती भी दी. कैट ने पूजा के खिलाफ रिपोर्ट भी दी, लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि कुछ ही दिनों में मामला रफा-दफा हो गया.  यूपीएससी ने पूजा खेडकर के सभी दावों पर यकीन कर लिया और कम नंबरों के बावजूद उन्हें आईएएस का कैडर अलॉट कर दिया.


अफसरों के परिवार से हैं पूजा खेडकर
अब पता चला है कि पूजा खेडकर और उनके परिवार के पास लाखों नहीं बल्कि करोड़ों रुपये की संपत्ति है. पूजा की मां अहमदनगर जिले के भावनगर गांव की सरपंच हैं. पूजा के दादा और पिता दोनों ही प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं. पूजा के पिता दिलीप खेडकर सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुजन वंचित अघाड़ी पार्टी से अहमदनगर के उम्मीदवार थे. वो चुनाव हार गए, लेकिन अपनी उम्मीदवारी के दौरान उन्होंने चुनाव आयोग को जो हलफनामा दिया, उसने पूजा के उस दावे की सारी पोल पट्टी खोल दी, जिसमें पूजा ने खुद को नॉन क्रिमी लेयर ओबीसी कैंडिडेट बताया था और जिसके आधार पर पूजा को आईएएस कैडर मिला था.


करोड़ों की संपत्ति की मालकिन हैं पूजा खेडकर
पिता के चुनावी हलफनामे में साफ तौर पर लिखा है कि दिलीप खेडकर और उनकी पत्नी के पास खेती की करीब 110 एकड़ ज़मीन है. ये अपने आप में महाराष्ट्र सरकार की कृषि भूमि सीमा अधिनियम के खिलाफ है. इसके अलावा दिलीप खेडकर के पास 6 दुकानें, 7 फ्लैट , 900 ग्राम सोना, हीरा, 17 लाख रुपये की सोने की घड़ी और चार-चार कार हैं. दो प्राइवेट कंपनियों और एक ऑटोमोबाइल फर्म में भी दिलीप खेडकर की हिस्सेदारी है. बाकी खुद पूजा के पास करीब 17 करोड़ रुपये की संपत्ति है. इन सभी संपत्तियों से खुद पूजा को हर साल करीब 42 लाख रुपये की आमदनी होती है. फिर भी पूजा ने दावा किया कि वो नॉन क्रिमी लेयर ओबीसी हैं और इस दावे को यूपीएससी ने सच मानकर उन्हें आईएएस बना दिया. लेकिन अब जब विवाद हुआ है तो केंद्र सरकार की ओर से अपर सचिव स्तर के एक वरिष्ठ अधिकारी को पूजा खेडकर के सभी दावों की जांच के लिए नियुक्त किया है, जो दो हफ्ते में अपनी जांच रिपोर्ट देंगे.


कैसे खुली पूजा खेडकर की पूरी पोल?
अब सवाल है कि ये पूरा मामला खुला कैसे. जब पूजा झूठ बोलकर आईएएस बन गईं और उनकी तैनाती भी हो गई तो आखिर वो कौन था, जिसकी शिकायत पर पूजा की पोल-पट्टी खुल गई. इसका जवाब है खुद पूजा खेडकर. उन्होंने नौकरी ज़ॉइन करने के साथ ही ऐसे-ऐसे कारनामे किए कि किसी की भी नज़र उनकी तरफ जानी ही जानी थी. और बची खुची कसर बेटी के आईएएस बनने की धौंस में उनकी मां ने पूरी कर दी, जिसके बाद पुलिस को भी हस्तक्षेप करना पड़ा.


ऑडी पर लाल-नीली बत्ती लगाकर ऑफिस आती थीं पूजा खेडकर
दरअसल हुआ ये कि पूजा की स्थाई नियुक्ति से पहले उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए उनकी नियुक्ति पुणे डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ऑफिस में बतौर असिस्टेंट कलेक्टर हुई थी. तब ऑफिस जाने के लिए पूजा खेडकर अपनी ऑडी गाड़ी का इस्तेमाल करती थीं, जिसपर लाल-नीली बत्ती लगी हुई थी. इस कार पर महाराष्ट्र सरकार का बोर्ड भी लगा हुआ था.


वीआईपी सुविधाएं मांगने पर फंस गईं पूजा खेडकर
पूजा ने पुणे कलेक्टर को वॉट्सएप पर मैसेज करके खुद के लिए अलग से बैठने की व्यवस्था, वीआईपी नंबर वाली कार, कॉन्सटेबल और घऱ की मांग की थी, जबकि प्रोबेशन पीरियड में किसी भी अधिकारी को ये सुविधाएं नहीं मिलती हैं. पूजा यहीं नहीं रुकीं बल्कि जब एडिशनल कलेक्टर अजय मोरे मुंबई गए थे तो पूजा ने उनके ऑफिस पर अपना कब्जा जमा लिया, खुद की नेम प्लेट लगवा दी, कुर्सियां-सोफे और टेबल हटवा दिए. साथ ही अपने नाम का लेटरडेह, विजिटिंग कार्ड, पेपरवेट, मुहर और इंटरकॉम जैसी चीजों की मांग कर दी.


पुणे के कलेक्टर ने लिया एक्शन
जब पूजा ने इतनी सारी वीआईपी सुविधाएं एक साथ मांग लीं, तो कलेक्टर ऑफिस उनकी मांगों को मानने में आनाकानी करने लगा, क्योंकि पूजा इसके लिए अधिकृत नहीं थीं. तब पूजा के पिता दिलीप खेडकर ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करके पूजा को ये सारी सुविधाएं मुहैया करवाईं. तब पुणे कलेक्टर सुहास दिवसे ने पूजा के खिलाफ एक्शन लिया और उनका ट्रांसफर वाशिम कर दिया. पूजा के खिलाफ जो भी आरोप सामने आया है, ये सब कलेक्टर सुहास दिवसे की रिपोर्ट का ही हिस्सा है, जो उन्होंने अपर मुख्य सचिव को सौंपी है.


अधिकारियों को धमकी दे रहीं पूजा की मां
अब पूजा ने वाशिम में बतौर असिस्टेंट कलेक्टर जॉइन कर लिया है. वो ऑफिस भी अब ऑडी से नहीं बोलेरो से जा रहीं हैं. वहीं पूजा की मां मनोरमा भी सरकारी अधिकारियों को धमकी देने में पीछे नहीं रहीं हैं. प्राइवेट ऑडी कार में लाल-नीली बत्ती और वीआईपी नंबर की जांच के लिए जब पुणे पुलिस पूजा खेडकर की मां मनोरमा के घर पहुंची तो मनोरमा ने पुलिस को ही धमकी दे दी और कहा कि अगर वो गेट के अंदर दाखिल हुए तो वो पुलिसवालों को जेल भिजवा देंगी. इससे पहले भी मनोरमा का किसानों के साथ विवाद हो चुका है, जिसमें वो बंदूक लहराते नज़र आई हैं.


अब पूजा खेडकर का क्या होगा?
अब मामला पूजा खेडकर, उनकी मां मनोरमा खेडकर और पूजा के पिता दिलीप खेडकर के दायरे से आगे निकल चुका है. अब इसकी जांच केंद्र सरकार की ओर से अपर सचिव स्तर के एक वरिष्ठ अधिकारी कर रहे हैं, जो दो हफ्ते में अपनी रिपोर्ट देंगे. अगर रिपोर्ट में पूजा के खिलाफ ये आरोप सही पाए जाते हैं तो फिर पूजा के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 318(4), धारा 336 (3) और धारा 340 (2) के तहत केस भी दर्ज हो सकता है. ये धाराएं धोखाधड़ी, जाली दस्तावेज और जालसाजी से जुड़ी हैं, जिनमें दोषी पाए जाने पर पूजा को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. बाकी नौकरी तो जाएगी ही जाएगी, लेकिन एक आईएएस की नियुक्ति राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से होती है तो पूजा की बर्खास्तगी भी राष्ट्रपति ही कर सकती हैं. ये सब तय होगा केंद्र सरकार की ओर से अपर सचिव स्तर के अधिकारी की जांच रिपोर्ट पर.


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