नई दिल्ली: ऐसे ही सर्दी के दिन थे जब काठमांडू से दिल्ली आ रहे इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी814 के अपहरण कांड को ठीक 20 बरस पहले अगवा कर लिया गया था. दिसम्बर 1999 में हुए इस हादसे और 150 से ज़्यादा यात्रियों को छुड़वाने के लिए देश ने जो कीमत चुकाई उसकी टीस आज तक मुल्क महसूस करता है. हालांकि इस घटना की जांच के दौरान आया सच और भी शर्मसार करने वाला है क्योंकि देश में अगर पहचान व दस्तावेजों का तंत्र मजबूत होता तो शायद इस विमान अपहरण की साजिश को शुरुआत में ही खत्म किया जा सकता था.


इस विमान हादसे की साजिश पर हुई सीबीआई की जांच रिपोर्ट बयान करती है कि किस तरह पाकिस्तान से आए आतंकी भारत में बड़ी आसानी से फर्जी दस्तावेज बनवाते रहे और पहचान छुपाकर बेखौफ घूमते रहे. अतंकियों ने विमान अपहरण की साजिश को अंजाम देने से पहले फर्जी पहचान से भारतीय पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस जैसे दस्तावेज़ बनवाए बल्कि आसानी से भारत के भीतर और बाहर सफर भी किया. इतना ही नहीं आतंकियों ने मुंबई जैसे शहर में पते बदल बदलकर कई महीनों का वक्त भी गुजारा. ज़ाहिर है, अगर उस वक्त भारत में नागरिकों की पहचान और दस्तावेजों बनाने की प्रक्रिया सतर्क होती तो सम्भव है कि उनके मंसूबे कामयाब न हो पाते.


अतंकियों ने आसानी से बनवाए थे फर्जी पहचान के भारतीय पासपोर्ट


दरअसल, इंडियन एयरलाइंस के विमान अपहरण यानि कंधार कांड की साजिश का ताना-बाना बुनने की शुरुआत 1998 में जुलाई-अगस्त के महीने में हुई उस वक्त शुरु हुई जब मसूद अजहर के बहनोई यूसुफ अज़हर ने मुंबई में रहने वाले अब्दुल लतीफ से जम्मू की जेल में बन्द आतंकी सरगना को छुड़ाने के लिए मदद के लिए सम्पर्क किया. लतीफ खड़ी देशों में कामकाज के दौरान पाकिस्तानी आतंकी नेटवर्क के सम्पर्क में आया था. लिहाज़ा यूसुफ अजहर ने सितंबर 1998 में लतीफ से अपने लिए मोहम्मद सलीम मोहम्मद करीम के नाम से भारतीय पासपोर्ट बनवाने और उस पर बांग्लादेश का वीजा हासिल करने के लिए के लिए कहा. लतीफ ने मुंबई के अपने स्थानीय संपर्कों का इस्तेमाल कर आसानी से वो पासपोर्ट बनवा लिया. बाद में लतीफ ने ही अतंकियों के लिए मुंबई के गोरेगांव इलाके की माधव बिल्डिंग में जावेद ए. सिद्दीकी की फर्जी पहचान पर किराए के फ्लैट का इंतजाम कर दिया.


यूसुफ अजहर अपने साथी शाकिर उर्फ शंकर के साथ अप्रैल 1999 में मुंबई पहुंचा और दोनों माधव बिल्डिंग के उसी फ्लैट में रहने लगा जिसका इंतजाम लतीफ ने किया था. इतना ही नहीं मुंबई में रहते हुए ही यूसुफ अजहर ने मौलाना मसूद अजहर के भाई, इब्राहिम अतहर और साथी शाकिर के लिए भी एक स्थानीय कम्पनी की मदद से फर्जी पासपोर्ट बनवाए.


पुलिस ने यूसुफ को न छोड़ा होता तो शायद मसूद भी न छूटता


मई-जून 1999 के महीने में यूसुफ अजहर अपने दो साथियों शाहिद सईद अख्तर, और अशरफ के साथ जम्मू गया ताकि मौलाना मसूद अजहर को सुरंग के रास्ते जम्मू जेल से छुड़वाया जा सके. जम्मू की कोट भलवल जेल से मौलाना को छुड़वाने की यह योजना नाकाम रही. भागने की कोशिश में आतंकी सज्जाद अफगानी मारा गया. इस बीच 12 जून 1999 को जम्मू के इंदिरा चौक पर इंस्पेक्टर कुलबीर चंद हांडा जब 12 जून 1999 को आने जाने वाले वाहनों की चैकिंग कर रहे थे तो यूसुफ अजहर औऱ अख्तर को जम्मू-जेल के पास से संदिग्ध आवाजाही के लिए हिरासत में लिया गया. हालांकि, बाद में होटल मैनेजर की गारंटी पर पुलिस ने दोनों ‘मेहमानों’ को छोड़ भी दिया.


पुलिस के हत्थे चढ़ने के बावजूद बच निकलने की कामयाबी ने ज़ाहिर है यूसुफ अज़हर और उसके हौसलों को बुलंद किया. यूसुफ भागने की बजाए न केवल मुंबई पहुंचा बल्कि गोरेगांव के गोल्डन सॉइल अपार्टमेंट में एक बार फिर जावेद ए सिद्दीकी की फर्जी पहचान पर लिए फ्लैट में रहना शुरू कर दिया. इतना ही नहीं कुछ दिनों बाद मोहम्मद सलीम मोहम्मद कलीम के नाम से बने यूसुफ के फर्जी भारतीय पासपोर्ट और विपिन भरत देसाई की पहचान से बने लतीफ के फर्जी पासपोर्ट पर दोनों ने बांग्लादेश का वीजा भी हासिल किया और जुलाई 1999 में ढाका का सफर भी किया. हालांकि ढाका से पहले आतंकियों और उनके मददगार ने कुछ वक्त कलकत्ता में भी गुजारा और फिर दानापुर के रास्ते बंगलादेश पहुंचे.


विमान अपहरण के बाद पकड़े गए लतीफ ने सीबीआई पूछताछ में दिए बयानों में बताया था कि ढाका में ही मसूद अजहर के भाई अब्दुल रऊफ और दूसरे आतंकियों की मुलाकात हुई थी. साथ ही काठमांडू से विमान को कंधार ले जाने की साजिश बनाई गई थी. इस षडयंत्र को रचने के दौरान साजिशकर्ता दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता जैसे महानगरों ही नहीं पटना, गोरखपुर, मालदा और कटिहार जैसे देश के शहरों में भी गए. कभी ट्रेन कभी बस तो कभी विमान से यह आतंकी सफर करते रहे. विमान अपहरण करने वाले सभी साजिशकर्ता यानि इब्राहिम अतहर-चीफ, सनी अहमद काज़ी-बर्गर, शाहिद सईद अख्तर-डॉक्टर, शाकिर या राजेश गोपाल वर्मा- शंकर और ज़हूर इब्राहिम मिस्त्री-भोला, भारत एक से अधिक बार आए.


विमान अपहरण की इस साजिश में अतंकियों ने भारत में आधा दर्जन से ज़्यादा फर्जी दस्तावेज़ बनवाए. साथ ही वो भारतीय मोबाइल नम्बर भी हासिल किए गए जिनके जरिए आतंकी साजिशकर्ता आपस में सम्पर्क में थे. अपहरण कांड के दौरान अब्दुल रऊफ से हुई बातचीत और सन्देश आदान-प्रदान के आधार पर ही अब्दुल लतीफ को 30 दिसम्बर 1999 को मुंबई से गिरफ्तार किया गया था. रऊफ के निर्देश पर 29 दिसम्बर को लतीफ ने लंदन में एक बीबीसी पत्रकार को आतंकियों की मांग के बारे में बताने को फोन किया था.


इस अपहरण कांड के बाद संसद में दिए जवाब में तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने बताया था को किस तरह मसूद अजहर को छुड़वाने की इस साजिश में पकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी हाथ था. उनके मुताबिक 24 दिसम्बर 1999 को IC-814 के काठमांडू से रवाना होने से पहले नेपाल में पाकिस्तानी दूतावास की एक गाड़ी 42-सीडी-14 भी एयरपोर्ट पर थी. यह गाड़ी उस अधिकारी की थी जिसपर एक खालिस्तानी को आरडीएक्स मुहैया कराने का आरोप लगा था.


गौरतलब है कि अपहरण कांड के बाद नेपाल सरकार ने मोहम्मद अरशद चीमा नाम के इस पाक अधिकारी को नकली नोटों के साथ पकड़े जाने पर देश से बाहर कर दिया था. 7 दिन तक चला था हाइजैक का हाई वोल्टेज ड्रामा काठमांडू से उड़ान भरने के महज़ आधे घण्टे के भीतर 24 दिसम्बर 1999 को इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी-814 को अगवा कर लिया गया था. आतंकी उसे पहले अमृतसर, फिर लाहौर उसके बाद दुबई और आखिर में कंधार ले गए थे.


विमान 25 से 31 दिसम्बर तक अफगानिस्तान के कंधार एयरपोर्ट पर था जहां उस वक्त तालिबान सरकार का राज था. इस दौरान अतंकियों ने रूपेन कत्याल नामक युवा को मार दिया और अन्य कुछ यात्रियों को घायल कर दिया था. बाद में आतंकियों की मांग को स्वीकार करते हुए सरकार को यात्रियों की रिहाई के बदले मसूद अजहर, मुश्ताक जरगर और उमर शेख जैसे खूंखार आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा था. आतंकियों और यात्रियों की अदला-बदली कंधार एयरपोर्ट पर ही हुई थी. इस दौरान सरकार पर यात्रियों की रिहाई के लिए उनके परिजनों का भी खूब दबाव था.