नई दिल्ली: भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने मंगलवार को प्लाज्मा थेरेपी को लेकर एक बड़ा बयान जारी किया है. ये बयान कोविड-19 से पीड़ित गंभीर मरीजों के लिए जीवन रक्षक के रूप में माना जा रहा है. आईसीएमआर के महानिदेशक (डीजी) बलराम भार्गव ने कहा कि कोविड-19 के लिए नेशनल डायग्नोस्टिक प्रोटोकॉल से प्लाज्मा थेरेपी को हटाया जा सकता है.
उन्होंने कहा, "हमने कोविड-19 गाइडलाइंस के लिए राष्ट्रीय कार्यबल के साथ चर्चा की है. हम संयुक्त निगरानी समिति के साथ आगे चर्चा कर रहे हैं और राष्ट्रीय दिशानिर्देशों से प्लाज्मा थेरेपी को हटाने पर विचार कर रहे हैं. हम कमोबेश किसी निर्णय की ओर पहुंच रहे हैं."
प्लाज्मा थेरेपी अब बेअसर
यह बयान दीक्षांत प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावकारिता पर किए गए कई अध्ययनों के मद्देनजर आया है, जिसमें कहा गया है कि इसने गंभीर बीमारी की स्थिति में मृत्युदर को कम नहीं किया है. सितंबर में सामने आए आईसीएमआर के अध्ययन से पता चला है कि प्लाज्मा थेरेपी कोविड-19 के गंभीर मरीजों की जान बचाने में विफल रही है.
भारत ने प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावकारिता का अध्ययन करने के लिए प्लेसिड परीक्षण नाम से दुनिया का सबसे बड़ा रैंडोमाइज्ड कंट्रोल परीक्षण किया था. देशभर के 39 केंद्रों पर 22 अप्रैल से 14 जुलाई के बीच 464 मरीजों पर टेस्ट किया गया. अध्ययन सितंबर में एक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ था. परीक्षण के परिणाम से पता चला कि प्लाज्मा थेरेपी मरीजों को फायदा पहुंचाने में नाकामयाब रही है.
क्या है प्लाज्मा थेरेपी
प्लाज्मा थेरेपी महामारी काल में इलाज का एक तरीका विकसित किया गया था. इसमें कोरोना वायरस को मात दे चुके मरीज का प्लाज्मा कोरोना पीड़ित मरीज को दिया जाता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि संक्रमण से उबर चुके मरीज के शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बन जाती है. और तीन हफ्तों बाद प्लाज्मा के रूप में उसे किसी संक्रमित व्यक्ति को दिया जा सकता है. एक बार में कोरोना से ठीक हो चुके मरीज के शरीर से 400 मिलीलीटर प्लाज्मा निकालकर दो संक्रमित रोगियों को दिया जा सकता है.
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