Ideas of India Summit 2023: एबीपी के कार्यक्रम आइडिया ऑफ इंडिया 2023 का मुंबई में आयोजन चल रहा है, जिसमें देश और दुनिया की जानी-मानी हस्तियां नए इंडिया पर अपना विचार रख रही हैं. शनिवार (25 फरवरी) को कार्यक्रम के दूसरे दिन प्रोफेसर महमूद ममदानी ने अपने विचार रखे. इस दौरान उन्होंने अमेरिका से इज़राइल तक देश और इसके स्थायी अल्पसंख्यक विषय पर भी कई अहम जानकारियों को सामने रखा.


'सबसे मुश्किल काम खुद को समझना है'


कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर महमूद ममदानी ने बताया कि मैं युगांडा में पला बढ़ा. मैं पूर्वी अफ्रीका में भारतीय मूल की तीसरी पीढ़ी का था. माइग्रेंट यानी प्रवासी होने में एक बात है कि आप कभी भी पूरी तरह से एक इंसाइडर नहीं हो सकते हैं. आप हमेशा एक इंसाइडर और ऑउटसाइडर दोनों रहते हैं. इस तरह से आप एक प्रिवलेज पॉजीशन यानी खास अधिकार लिए होते हैं.


इस मामले में कि आप आत्म आलोचक हो सकते हैं और एक इंसाइडर यानी वहां के बाशिंदे के तौर पर पूरी तरह से किसी बात पर भी यकीन न करने के लिए जो आपको बताया गया है, क्योंकि आपको लगता है कि यह सच होने की संभावना नहीं है. इस तरह से मैं वहां बड़ा हुआ. मैं ईस्ट अफ्रीका में एक भारतीय था और औपनिवेशिक दौर में पला-बढ़ा एक शख्स था.


तब ईस्ट अफ्रीकन भारतीय को हमें वहां के मूल निवासियों अफ्रीकन के मुकाबले छोटे खास फायदे मिलते थे. हम दुनिया को टिंटेड ग्लासेज के जरिए देखते मतलब हमें हर नजरिया सकारात्मक लगता भले ही हकीकत में ऐसा न हो. हम जल्द ही ये सोचने लगे कि हम उनसे बेहतर हैं, क्योंकि हम उनसे स्मार्ट हैं और वो नहीं हैं.


हम सोचते वो आलसी हैं. इस तरह के मानकों से औपनिवेशिक दौर में नस्लीयता पनपी. मैं पीछे देखता हूं तो एक सवाल मेरे मन में आता है कि इस तरह के पृष्ठभूमि में पले- बढ़े बच्चे के तौर पर कैसे इस काबिलियत को विकसित करें, कैसे ऐसे मौके तलाशे जो इस सब से ऊपर उठकर खुद के अपने अंदर झांक सकें. अफ्रीकन अमेरिकन कहते हैं कि सबसे मुश्किल काम खुद को समझना है. आप दूसरे लोगों की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन बुद्धिमानी वहां से शुरू होती है जब आप खुद अपने अंदर झांकते हों और देखते हो कि आपके अंदर क्या गलत है.



'हमने इतिहास से ही आकार लिया है'


इस दौरान प्रोफेसर महमूद ममदानी ने वीएस नायपॉल के लेखन पर भी अपने विचार रखें. उन्होंने कहा कि नायपॉल ऐसे लेखक हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता. जिनको वर्तमान की पैनी समझ है, वो इसे बेहतर तरीके से सामने रख सकते हैं, लेकिन उन्हें इतिहास को लेकर उनकी समझ गहरी नहीं है. वो वर्तमान की आलोचना ऐसे करते हैं, जैसे कि वर्तमान के हर एक्टर को ऐसी ताकत है कि वो खुद को अलग तरह से बता सकते हैं. मैं इस बात पर यकीन नहीं करता कि हम इतिहास के कैदी हैं, लेकिन में ये नहीं सोचता कि इतिहास महत्वपूर्ण नहीं है.


उन्होंने कहा कि मैं सोचता हूं कि हमने इतिहास से ही आकार लिया है, लेकिन इसमें अपने विकल्प हैं. मैं आपको एक उदाहरण देता हूं दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के आधार पर अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस थी तो इंडियन नेशनल कांग्रेस (गांधी) थी, कलर्स पीपुल्स कांग्रेस और कांग्रेस ऑफ डेमोक्रेट्स भी थी. दिलचस्प बात ये है कि ये केवल अपनी खास नस्ल को ही संगठित करते हैं. ये वहां सहज माना जाता है.


प्रोफेसर महमूद ममदानी ने कहा कि 1970 तक ये वहां की हकीकत थी. 1970 में दक्षिण अफ़्रीका में अश्वेत जागृति के जनक स्टीव बीको के आने के बाद हालात बदले उन्होंने कहा कि अश्वेत रंग नहीं है, अश्वेत एक अनुभव है. अगर आपको दबाया जाता है आप पर जुल्म किया जाता है तो आप अश्वेत हैं. बीको ही थे जिन्होंने अफ्रीकन, अश्वेत और भारतीयों के बीच नस्लीय दीवार को तोड़ डाला और छात्र आंदोलन खड़ा किया, जिसने रंगभेद की नीति को पलट कर रख दिया.


ये प्रक्रिया 90 के दशक में खत्म हुई. मैं कहता हूं कि एक लेखक के तौर पर हमें केवल आलोचना पर ही नहीं बल्कि विकल्पों पर भी विचार करना चाहिए.


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