Ideas of India Summit 2023: एबीपी के कार्यक्रम आइडिया ऑफ इंडिया 2023 का मुंबई में आयोजन चल रहा है. इसके दूसरे दिन दृष्टि आईएएस के संस्थापक विकास दिव्यकीर्ति ने अपने विचार एबीपी के मंच से साझा किए. इस दौरान उन्होंने अपने निजी अनुभवों के बारे में बताने के साथ ही कोचिंग के पहलुओं पर भी प्रकाश डाला.


'तो वो आईएएस बन जाते हैं'


आप आईएएस को बनने वाले लोगों को पढ़ाते. खुद को इतनी संजीदगी के तौर पर नहीं लेना चाहिए, अगर मैं ये सोच लूं कि मैं किसी का भविष्य बनाता हूं तो ये बहुत बड़ी गलतफहमी है. मैं तो पढ़ाता हूं. उनमें से जिन  बच्चों में मेहनत करने का जज्बा हो, इंटेलिजेंस का ठीक लेवल हो.मेहनत करते हैं थोड़ा किस्मत का मामला भी होता है तो वो आईएएस बन जाते हैं, लेकिन ये गलतफहमी मुझे बिल्कुल नहीं है कि मैं देश का भविष्य बना रहा हूं या बच्चों को आईएएस बना रहा हूं.


मैं तो सिर्फ सक्षम तरीके से उनकी कुछ मदद करता हूं, इतना ही है बस और प्रेशर तो है ही आप जो भी काम करते हैं मुझ पर प्रेशर है कि बच्चे जिस उम्मीद से मेरे पास आए हैं. उन्हें वो जरूर मिल जाए.तो वो हम हैंडल करते हैं और पक्के तौर पर करते हैं.


'पैरेंट्स की कोचिंग ज्यादा जरूरी है'


पैरेंट्स का की कोचिंग तो उसी दिन होनी चाहिए जब वो पैरेंट्स बनते हैं और हमारे देश में बच्चों की कोचिंग से अधिक पैरेंट्स की कोचिंग ज्यादा जरूरी है. एक पैरेंट्स होने के नाते मैं भी इस बात को समझता हूं. एक अजीब सा भय बच्चों के मन में रहता है. मैंने कई बच्चों को देखा है. एक बार मुझे पूछा गया कि इतने बच्चों को पढ़ाने के बाद जिंदगी में सबसे अच्छा अनुभव कौन सा रहा.


मुझे आज 15 से 17 साल पहले का वाकया ऐसे में मुझे याद आता है. तब एक लड़की मुझसे मिलने आई तब उसकी उम्र रही होगी 21 साल की. रोते हुए मुझसे एक बात कही मैं गांव में थी और मेरे साथ वहां रेप हुआ. जैसे उसने बताया वो बहुत घबराने वाली बात थी. तो फिर आपने पुलिस में शिकायत की होगी, पैरेंट्स को ये बात बताई होगी. तो उस लड़की ने मुझे जवाब दिया कि मैं सबसे ये बात बता सकती हूं, लेकिन अपने पैरेंट्स को नहीं, क्योंकि जब में छोटी थी तो कुछ रिश्तेदारों ने गलत हरकत की थी.


जब मैंने ये अपनी मां को बोला तो उन्होंने मुझे डांट के भगा दिया. उसने कहा मुझे नौकरी नहीं चाहिए में जिंदगी जी लूंगी.उस लड़की के मन में एक ही सपना था कि वो पुलिस बने. उसका कहना था कि ताकि कम से कम अपने इलाके में किसी और बच्ची के साथ ये न होने दूं. विकास दिव्यकीर्ति ने कहा कि उनकी जिंदगी का वो सबसे अधिक संतोषजनक क्षण था जब वो लड़की 3-4 साल की मेहनत के बाद आईपीएस बनी. उन्होंने कहा कि ये निजी है, इसलिए उनका नाम में यहां नहीं बता सकता.


क्योंकि जब में छोटी थी तो कुछ रिश्तेदारों ने गलत हरकत की थी और जब मैंने ये अपनी मां को बोला तो उन्होंने मुझे डांट के भगा दिया. उसने कहा मुझे नौकरी नहीं चाहिए में जिंदगी जी लूंगी.उस लड़की के मन में एक ही सपना था कि वो पुलिस बने. उसका कहना था कि ताकि कम से कम अपने इलाके में किसी और बच्ची के साथ ये न होने दूं. विकास दिव्यकीर्ति ने कहा कि उनकी जिंदगी का वो सबसे अधिक संतोषजनक क्षण था जब वो लड़की 3-4 साल की मेहनत के बाद आईपीएस बनी.



उन्होंने कहा कि ये निजी है, इसलिए उनका नाम में यहां नहीं बता सकता. उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि उस लड़की ने वायदा निभाया और बहुत सी लड़कियों की मदद कर पा रही है, मुझे चिंता इस बात से होती है कि अगर कोई बच्चा अपने पैरेंट्स से इस तरह की बात भी शेयर नहीं कर पा रहा है तो मुझे लगता है कि सीखने या कोचिंग की जरूरत बच्चे को है या पैरेंट्स को अधिक है.


उन्होंने आगे कहा कि  कोटा में इतने खुदकुशी बच्चे करते हैं, दिल्ली में तो समझदार उम्र में होते हैं, लेकिन कोटा में तो बहुत छोटे बच्चे होते हैं. अगर बच्चे सुसाइड करते हैं तो मैं साफ-साफ कह रहा हूं एक कविता की लाइन के जरिए कहना चाहूंगा- 'दिखाई दे या न दे, पर शामिल जरूर होता, हर खुदकुशी में हत्यारा शामिल होता है...' क्योंकि खुदकुशी खुदकुशी नहीं होती हत्या होती है. ये समाज के दबावों की हत्या है. उन्होंने कहा कि पैरेंट्स को समाज के दबावों के बीच बच्चों की ढाल होना चाहिए, इसलिए उनकी कोचिंग जरूरी है. 


'हिंग्लिश का करते हैं इस्तेमाल'


 विकास दिव्यकीर्ति ने बताया कि फीसदी बच्चे आईएएस की कोचिंग वाले अंग्रेजी मीडियम से आते हैं. उनके लिए अंग्रेजी लिखने का जरिया है समझने का नहीं इसलिए कोचिंग क्लास में 40 फीसदी हिंग्लिश का इस्तेमाल करना होता है. उन्होंने बताया कि अंग्रेजी मीडियम के बच्चों ने ही मुझे कहा कि सर आप हिंदी में पढ़ाया करें क्योंकि हमें हिंदी में अच्छे से समझ आता है.


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