जयपुर: कांग्रेस नेता और राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट पार्टी में बने रहेंगे या बीजेपी का हाथ थामेंगे, ये फैसला खुद उन्हें ही करना है. लेकिन सचिन पायलट की समस्या कोई नई नहीं है, ये समस्या तब से है जब से राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी थी. डेढ़ साल पहले राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत से जीत हासिल की थी. तभी से सचिन पायलट पार्टी से कुछ खफा नजर आ रहे हैं.
दरअसल, चुनाव में जीत के बाद सचिन पायलट खुद राजस्थान का मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. लेकिन पार्टी ने उन्हें डिप्टी सीएम बनाया. साथ ही पायलट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर भी बना रहना चाहते थे. इसके बाद उनकी शिकायत थी कि सरकार में उनके हिसाब से कामकाज नहीं होता है. उनके कहने पर अधिकारियों की तैनाती नहीं होती है. लेकिन इनमें से किसी मसले को अबतक सुलझाया नहीं गया है.
राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनने वाले दिन से ही सचिन पायलट नाराज चल रहे हैं. राजस्थान के सभी कांग्रेस नेताओं से लेकर पार्टी हाइकमान तक इस बारे में जानते हैं. अगर इन मुद्दों को पहले ही सुलझा लिया गया होता तो शायद आज प्रदेश में सियासी संकट खड़ा नहीं होता. पार्टी हाइकमान की ऐसी ही नजरअंदाजी की वजह से मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से अलग हुए और वहां कांग्रेस की सरकार गिर गई.
SoG के नोटिस के बाद गहलोत और पायलट के बीच छिड़ गई जंग
राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच सियासी तनाव किसी से छुपा नहीं है. लेकिन इस बार SoG के एक नोटिस ने पायलट को इतना खफा कर दिया कि उन्होंने बागी तेवर दिखा दिए. दरअसल, अशोक गहलोत लंबे समय से बीजेपी पर खरीद फरोख्त का आरोप लगा रहे हैं. विधायकों की खरीद फरोख्त मामले की जांच के लिए राज्य सरकार ने स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप का गठन किया. इस मामले में एसओजी ने एसओजी ने एक साथ दो नोटिस मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को बयान दर्ज कराने के लिए थमा दिए. एसओजी के एडिशनल एसपी ने ये नोटिस 10 जुलाई को दिए, जिसमें उन्होंने कहा कि वो पायलट का सीआरपीसी की धारा 160 के तहत बयान दर्ज करना चाहते हैं.
बाताया जा रहा है, इस नोटिस ने सचिन पायलट को नाराज कर दिया जिसे गहलोत के इशारे पर भेजा गया है, क्योंकि गृह विभाग उन्हीं के पास है. पायलट ने खुद को अपमानित महसूस किया. इसके बाद पायलट ने दावा किया कि उन्हें 30 विधायकों का समर्थन हासिल है और करीब 20 दिल्ली-एनसीआर के विभिन्न स्थानों पर हैं. यहीं पर यह भी माना जा रहा है कि पायलट राज्य में पीसीसी अध्यक्ष बने रहने के लिए यह सब कर रहे हैं और सरकार से बाहर होना चाहते हैं, जहां मुख्यमंत्री उनका अपमान कर रहे हैं. इस तरह एसओजी के नोटिस ने गहलोत और पायलट के संबंधों में आखिरी कील ठोक दी.
अब सचिन पायलट के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि वह कांग्रेस में बने रहेंगे या अपने लिए कोई दूसरा रास्ता चुनेंगे.
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