नेपाल की राजनीति में सत्तारूढ़ कम्यूनिस्ट पार्टी के भीतर चल रही राजनीतिक उठापटक और काठमांडू की सियासत पर बढ़ते चीनी असर को लेकर राजनीतिक बहस गर्म है. इसी बीच नेपाल में नए नक्शे के संवैधानिक दाँव पर वैधता और तार्किकता के सवाल उठाने वाली सांसद सरिता गिरी को न केवल आलोचनाएं झेलनी पड़ी बल्कि उनकी अपनी ही जनता समाजवादी पार्टी ने उन्हें दल और संसद से निकालने का फैसला लिया है. पार्टी के इस फैसले को गैर कानूनी बताते हुए चुनौती देने की तैयारी कर रही सरिता गिरी ने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में नेपाल के हालात और.चीनी दखल को लेकर अपनी चिंताएं साझा कीं. एबीपी न्यूज़ के एसोसिएट एडिटर प्रणय उपाध्याय से बातचीत में मुखर सांसद सरिता गिरी ने इस बात का डर भी दो टूक जाहिर किया कि अगर सचेत न हुए और रोका न गया तो नेपाल को नार्थ कोरिया बनाने की कोशिशें कामयाब हो जाएंगी. प्रस्तुत है इस बातचीत के मुख्य अंश-


यह खबर आ रही है कि आपकी पार्टी ने आपको दल और संसद की सदस्यता से निकलने का फैसला लिया है. आपको आगे की रणनीति क्या है और क्या आपको नए नक्शे के तार्किक आधार पर सवाल उठाने की सज़ा मिली?


ऐसा लग रहा है तो कि जो सवाल मैंने संसद में उठाए थे उन्हीं का यह नातीजा है. जिस तरह से मेरी पार्टी की सदस्यता को खत्म करने का निर्णय किया गया. संसद की सदस्यता समाप्त करने का फैसला लिया गया. वह पूरी तरह से भरोसेमंद नहीं लग रहा है. क्योंकि कानूनी रूप से यह एक गलत निर्णय है. एक सांसद की सदस्यता है खत्म करने का फैसला लिया जाता है और कोई आधिकारिक बयान तक जारी नहीं किया जाता.कोई प्रेस विज्ञप्ति नहीं दी जाती मीडिया को. इसको लेकर सवाल उठना स्वाभाविक ही हैं.


नेपाल का कानून ही अस्पष्ट करता है की यदि मैं अपना दल त्याग करूं तो मेरी संसद सदस्यता जा सकती है. लेकिन जहां तक व्हिप का सवाल है मैंने उसके विरुद्ध वोट नहीं दिया है मेरा प्रस्ताव अस्वीकार हुआ जब मैं इस पर विरोध दर्ज कराने के लिए खड़ी हुई तो मेरी हूटिंग शुरू हो गई उस समय जिस तरीके का माहौल था सदन में उस समय मैं वहां से चली आई.


मैं स्पीकर को भी इस बारे में लिखने जा रही हूं इसकी पूरी छानबीन हो. इस तरह की घटनाओं के कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रेसिडेंट्स भी है. यदि कोई सांसद मतदान में भाग नहीं लेता तो इसे व्हिप का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता. जहां तक विप का भी सवाल है तुम मुझे तो उस बारे में जानकारी नहीं थी लेकिन जनता समाजवादी पार्टी के ही 5 अन्य सांसदों ने भी मतदान में हिस्सा नहीं लिया. मेरे एक सहयोगी सांसद ने तो वेब पर दस्तखत भी किए थे और वह मतदान में शरीक नहीं हुए. ऐसे में अगर अनुशासन में की कार्यवाही होनी है तो सूर्य नारायण यादव पर भी कार्यवाही होनी चाहिए. इसी तरह राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी के भी तीन सांसद मतदान में शामिल नहीं हुए.


इसीलिए मेरा कहना है कि केवल व्हिप उल्लंघन को कार्रवाई का आधार बताना ठीक नहीं है. इसके पीछे कुछ बड़ी और बुरी नीयत है.


नेपाल की राजनीति में इन दिनों क़ई नए और बाहरी किरदारों की सक्रियता है. क्या आपकी पार्टी के फैसलों का सम्बंध भी उनसे ही?


निश्चित रूप से इसके पीछे चीन की राजदूत की भी भूमिका हो सकती है क्योंकि मैं काफी बार संसद में उनको लेकर या नेपाल में चीन की भूमिका को लेकर सवाल उठाती रही हूं. जिस तरह से ठीक है पट्टे दिए गए. जिस तरीके से आणविक हथियारों को लेकर बिल नेपाल की संसद में पारित हुआ पर भी मैंने सवाल उठाया था. हुआवेई कंपनी के बारे में भी मैंने प्रश्न उठाया था. प्रधानमंत्री का जो कंट्रोल रूम होगा वह कंपनी के द्वारा चलाया जा रहा है उस पर भी सवाल किए थे. सीमा विवाद को लेकर किस तरह नेपाल की जमीन चीन के कब्जे में है इसको लेकर प्रश्न किए थे. इन सभी मुद्दों को लेकर मैंने जिस तरह से संसद में सवाल उठाए यह उसका भी परिणाम हो सकता है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता है.


आप एक ऐसी पार्टी की ध्वनि राजनीति में एक राजदूत की सक्रियता की बात कर रहे हैं जो एक सत्तारूढ़ दल है. जिसके पास एक बहुत बड़ा मत भी है. मौजूदा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में चीन जिस तरीके के संकटों से गिरा है उसमें निश्चय ही वह अपने आसपास एक सुरक्षा का घेरा बनाना चाहता है. भारत और चीन के बीच में हाल के दिनों में जो सीमा का द्वंद हुआ या भारत ने जो बीते दिनों अपना नया नक्शा जारी किया यह उसका भी फॉल आउट है. साथ ही अमेरिका और चीन के बीच में जो द्वंद्व चल है उसके भी नतीजे देखने को मिल रहे हैं.


क्या यह मामला केवल नक्शों क़ई राजनीति से जुड़ा है?


भारत और नेपाल के बीच नक्शों को लेकर जो भी मतभेद हैं वह बातचीत के जरिए सुलझाए जा सकते हैं. दोनों तरफ से अपने-अपने दावे हैं.उसके लिए वार्ता की मेज पर नक्शे लेकर बैठना होगा. नारों से इसका समाधान नहीं हो सकता. देखना होगा कि भारत का पहले का नक्शा क्या था नेपाल का अब का नक्शा क्या है उसमें किस तरीके के बदलाव किए गए हैं. किस तरीके से सीमाएं बदली हैं यह सब बारीकियों की बातें हैं जो बातचीत की मेज पर ही सुलझ सकती हैं.


नेपाल में नए नक्शे को पारित करने के लिए जल्दबाज़ी में जो प्रक्रिया अपनाई गई उसको लेकर भी सवाल हैं. नक्शा पहले पारित किया गया जबकि तथ्य अभी तलाशे ही जा रहे हैं?


नक्शे को लेकर संसद में मैंने सवाल उठाया इस बारे में पेश किए गए संविधान संशोधन को लेकर सुधार का प्रस्ताव रखा. कहा गया कि नेपाल की वास्तविक सीमा के लिए यह नक्शा लाया जा रहा है. बहुत अच्छा है लेकिन नेपाल की वास्तविक सीमा क्या है. लेकिन नेपाल की वास्तविक सीमा के लिए कोई संधि होना चाहिए कोई दस्तावेज होना चाहिए. किसी पुराने नक्शे को यदि आप नए नक्शे से बदलना चाहते हैं तो इसका तार्किक आधार होना चाहिए. हम लोग कानून निर्माता है . यह लॉमेकर्स की ड्यूटी है कि वह किसी भी कानूनी फैसले से पहले उसका तार्किक आधार देखें. केवल भावनाओं के आधार पर बात नहीं की जा सकती क्योंकि भावनाएं आज हैं कल हो सकता है ना हो. लेकिन साक्ष्य के आधार पर ही हम आगे बढ़ सकते हैं. आप देखिए कि जिस तरीके से इस फैसले को आगे बढ़ाया गया भावनाओं का ज्वार खड़ा किया गया लोग कुछ सुनने को तैयार नहीं थे. लेकिन बाद में सरकार को भी फैसला लेना पड़ा और तथ्यों की पड़ताल के लिए उन्हें खोजने के लिए 9 सदस्यों की एक विशेष समिति बनाई गई. साफ है कि कहीं न कहीं कुछ चूक हुई. सरकार का फैसला भी इसी ओर इशारा कर रहा है.


हम यही उम्मीद कर सकते हैं कि 9 सदस्य एक्सपर्ट कमेटी उचित साक्षी लेकर आए जिसके आधार पर हम संसद में फैसला कर सकें. यदि सरकार अपने तथ्यों के आधार पर नया नक्शा बना सकती है तो फिर उसी आधार पर भारत से भी बात की जाए. यह साक्ष्य वाली बात पहले होनी चाहिए थी. तभी लगता है की कुछ चूक हुई है कहीं कुछ कमी है. इसी के मद्देनजर यह चिंता हो रही है कि जो कुछ हुआ क्या वह क्षेत्रीय विवाद का परिणाम है या अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंद्विता का नतीजा. देश के भीतर से ही यह चुनौती उठी है या फिर बाहर से प्रायोजित है. इस सबको लेकर सवाल हैं.


क़ई जानकारों की राय है कि कुछ माह पहले हुई चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नेपाल यात्रा के बाद ही यह सक्रियता बढ़ी है. क्या ऐसा है?


निश्चित रूप से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नेपाल यात्रा के दौरान सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच जिस तरह से 18 सूत्रीय समझौता होता है. उसके बाद मुझे लगता है कि महामहिम राजदूत जी की सक्रियता बढ़ी है. उस सन्धि की धाराओं को अगर आप पढ़ें तो साफ नजर आता है कि यह कोई डेवलपमेंट पार्टनरशिप नहीं है. यह दो संप्रभु देशों के बीच का समझौता भी नहीं है. यह दिखाई देता है कि किस तरह देश की सुरक्षा नेपाल क्या अंदरूनी गवर्नेंस, यहां की नीतियां, उनके साथ चीन का तालमेल बनाने और खोजने की एक कोशिश की जा रही है.


यह एक चिंता का विषय है सब लोग इस बारे में सवाल उठा रहे हैं. युवा वर्ग बहुत सारे प्रश्न पूछ रहा है. क्योंकि अब तक जब कभी भारत की कुछ गतिविधियां होती थी तो हम जैसे लोग जो भारत-नेपाल संबंधों में प्राकृतिक प्रगाढ़ता के पक्षधर हैं उनको आलोचना झेलनी पड़ती थी. जिस तरह से चीन की गतिविधियां बढ़ रही हैं अब यहाँ का यूथ भी सवाल कर रहा है. नेपाल को स्वतंत्र होना चाहिए. संप्रभु होना चाहिए.


क्या नेपाल में आप जैसे लोगों को डर लग रहा है कि चीन का प्रभाव बहुत बढ़ा तो नेपाल के लिए एक क्लायंट स्टेट बनने का खतरा बढ़ सकता है?


निश्चित तौर पर इस बात का डर है कि अगर हम सचेत नहीं हुए तो नेपाल नार्थ कोरिया हो सकता है. अगर हम इसे टोक नहीं पाए तो उस आशंका को नकारा नहीं जा सकता.


नेपाल की खासियत यह है कि यहां काफी सक्रिय लोकतंत्र है. लोग प्रतिक्रिया देते हैं. अलग अलग तरह के मत आते हैं. नेपाली कांग्रेस और जसपा क नेताओं के बीच इस बात को लेकर मंथन चल रहा है. संसद का विशेष सत्र बुलाने को लेकर चर्चाएं भी क़ई तरफ से सुर उठने लगे हैं. क्योंकि जिस प्रकार से संसद का सत्र खत्म किया गया. इससे बहुत सारे सवाल हैं.


यदि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अंदरूनी मतभेदों के कारण देश की संसद को नहीं चलने दिया जाएगा तो यह बहुत खतरनाक है. यह चिंता का विषय है. लोग सजग हैं, मीडिया में बात आ रही है. लोग मुखर होकर प्रश्न उठा रहे हैं.


नेपाल दूसरा नार्थ कोरिया न बने इसके लिए आप किस तरह आगे बढ़ेंगे?


बिना लोकतंत्र के तो मैं रह नहीं सकती. मैं ऐसे किसी देश में नहीं रहना चाहूंगी जहाँ लोकतंत्र नहीं है. अच्छी बात है कि लोग भी इस बारे में सजग हैं. बहुत से युवाओं समेत अनेक लोग हैं जो अभिव्यक्ति की आज़ादी, जागरूकता की आज़ादी को लेकर सक्रिय हैं.


जहां तक मेरी व्यक्तिगत लड़ाई का सवाल है, मैं उसको लेकर भी मैं आकलन कर आगे का कदम तय करूंगी. निश्चित रूप से हम इस संघर्ष को आगे ले जाएंगे.