नई दिल्ली: पेट्रोल और डीजल की कीमतें अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचने के बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, क्या अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत में इतना बड़ा इजाफा हो गया कि बढ़ती कीमतों को रोकना मौजूदा सरकार के बस की बात नहीं है.


इस बात की जांच के लिए साल 2014 की परिस्थितियों को देखना होगा. उस वक्त के पेट्रोल, डीजल के दाम और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों का तुलनात्मक जायजा लेने के बाद पचा चलेगा कि पेट्रोल और डीजल की बढ़ी कीमतों का पेंच कहां फंसा है.


आपको बता दें कि आज दिल्ली में पेट्रोल प्रति लीटर 76.24 रुपये है, जो अब तक सबसे महंगा है. इससे पहले सितंबर, 2013 में पेट्रोल 76.06 रुपये प्रति लीटर बिका था, जो अब तक का सबसे ऊंचा स्तर था.


कच्चे तेल बनाम पेट्रोल-डीजल के दाम


जब मई, 2014 में मोदी ने सत्ता संभाली थी तब देश में पेट्रोल प्रति लीटर 71.41 रुपये बिक रहा था. इसी तरह मई, 2014 में डीजल प्रति लीटर 55.49 रुपये था. तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत $106.85 प्रति बैरल थी.


अब हाल क्या है?


आज दिल्ली में पेट्रोल 76.24 रुपये प्रति लीटर है. इसी तरह डीजल दिल्ली में 67.57 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है. इतना महंगा डीजल इतिहास में पहली बार हुआ है.


अभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत क्या है?


इस वक्त अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल है. यानि 2014 के मुकाबले कच्चे तेल की कीमत 25 फीसदी कम है. (2014 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 106.85 डॉलर प्रति बैरल थी).


इसका सीधा मतलब ये हुआ कि मनमोहन सरकार ने कच्चा तेल $106.85 प्रति बैरल खरीदकर 71.41 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल बेचा और डीजल 55.49 रुपये प्रति लीटर बेचा.


तो 80 डॉलर प्रति बैरल पर कीमत कितनी होनी चाहिए?


इस हिसाब से अगर मोदी सरकार मनमोहन सरकार इतना ही महंगा पेट्रोल बेचती तो 53.47 रुपये प्रति लीटर बिकता. यानि ग्राहक को 22.77 रुपये सस्ता पेट्रोल मिलता. इसी फॉर्मूले को डीजल पर लागू कर दें तो आज 41.54 रुपये प्रति लीटर डीजल बिकना चाहिए यानि 26 रुपये सस्ता मिलता.