नई दिल्ली: नागरिकता कानून, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ एक तरफ विवाद हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ कहा जा रहा ये विवाद बेबुनियाद है और विपक्ष लोगों को भड़का रहा है. नागरिकता कानून को लेकर इन दिनों एक और विवाद चल है . दरअसल आईआईटी कानपुर में उर्दू के शायर फैज की कविता को लेकर इन दिनों विवाद चल रहा है.
17 दिसंबर को आईआईटी कानपुर के छात्रों ने एक मोर्चा निकाला था. छात्रों ने दावा किया था कि दिल्ली के जामिया विश्वविद्यालय में हुई पुलिस कार्रवाई बर्बर थी. जामिया में नागरिकता कानून के विरोध में हिंसा के बाद पुलिस पर आरोप है कि उसने छात्रों को कैंपस के भीतर घुसकर पीटा.
इसी प्रदर्शन में छात्रों ने पुलिस के अत्याचार के खिलाफ एक कविता गाई, जिसे पाकिस्तान के शायर फैज ने लिखा था. लगभग 30-31 दिसंबर की दरम्यानी रात से ट्विटर पर हैशटैग फैज के नीचे लोग लोग एक संदेश लिखने लगे. कानपुर आईआईटी फैज की कविता के हिंदू विरोधी होने की जांच करेगी. इसका आधार बनाया आईआईटी कानपुर के ट्विटर हैंडल से किया गया वो ट्वीट जिसमें प्रदर्शन के बारे में हुई शिकायत की जांच की बात कही गई थी. ट्वीट में कहीं भी फैज के गाने के हिंदू विरोधी होने की जांच का जिक्र नहीं था.
हालांकि सोशल मीडिया पर इसके विरोध का हैशटैग चल पड़ा जिसमें ये साबित करने की कोशिश हुई कि आईआईटी कानपुर फैज को नहीं जानती, आईआईटी कानपुर फैज के कलाम को नहीं समझती, आईआईटी कानपुर प्रबंधन दक्षिणपंथी सोच से ग्रसित है या आईआईटी कानपुर प्रबंधन मौजूदा सरकार के दबाव में काम कर रहा है.
ट्विटर पर ये सोच करीब तीन दिन तक ट्रेंड करती रही कि ये सरकार लोकतंत्र विरोधी है, विरोध की आवाज दबाती है और सोच से सांप्रदायिक है. इस सोच के शिकार आम ही नहीं खास लोग भी हुए हैं. गीतकार जावेद अख्तर, शायर मुनव्वर राणा इतिहासकार इरफान हबीब ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी. विवाद अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा है.