हैदराबाद और भुवनेश्वर के IIT रिसर्चर्स की टीम ने कचरों से बनाई “जैविक ईंटें”
राउत्रे ने बताया कि “जैविक ईंटें” बनाने की प्रक्रिया धान के पुआल, गेहूं के भूसे, सूखे गन्ने और कपास के पौधे जैसे सूखे हुए कृषि अपशिष्टों के चयन से शुरू होती है.
नई दिल्लीः भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) के शोधार्थियों ने कृषि अपशिष्टों से “जैविक-ईंटों’’ का विकास किया है, जिनका प्रयोग निर्माण कार्यों में किया जा सकता है. आईआईटी हैदराबाद और भुवनेश्वर के केआईआईटी स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर के शोधार्थियों ने मिलकर पर्यावरण के अनुकूल सतत विकास और अपशिष्ट प्रबंधन के दोहरे उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए यह खोज की है.
आईआईटी में पीएचडी शोधार्थी प्रियब्रत राउत्रे और केआईआईटी स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर के सहायक प्राध्यापक अविक रॉय को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट एंड पंचायती राज (एनआईडीपीआर) हैदराबाद द्वारा हाल ही में आयोजित रुरल इनोवेटर्स स्टार्ट-अप कॉन्क्लेव 2019 में पुरस्कृत किया गया.
राउत्रे ने इस आविष्कार के बारे में बताया, “भारत में कृषि अपशिष्ट का पुन: उपयोग करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. देश में हर साल 50 करोड़ टन से अधिक कृषि अपशिष्ट उत्पन्न होता है. इनमें से कुछ का चारे के रूप में पुन: उपयोग किया जाता है और 8.4 करोड़ टन से 14. 1 करोड़ टन कृषि अपशिष्ट जलाया जाता है जिससे गंभीर वायु प्रदूषण होता है.”
राउत्रे ने बताया कि “जैविक ईंटें” बनाने की प्रक्रिया धान के पुआल, गेहूं के भूसे, सूखे गन्ने और कपास के पौधे जैसे सूखे हुए कृषि अपशिष्टों के चयन से शुरू होती है.
शोध के बारे में अविक रॉय ने कहा, ‘‘जैविक ईंटे मिट्टी की ईंटों की तुलना में अधिक टिकाऊ होती हैं. हालांकि ये जैविक-ईंटें पकी हुए मिट्टी की ईंटों की तरह मजबूत नहीं हैं और ज्यादा भारी संरचनाओं के निर्माण के लिए इन्हें सीधे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. लेकिन इन्हें लकड़ी या धातु के ढांचे के संयोजन के साथ कम लागत वाले घरों में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा, ये ईंटें ऊष्मा और ध्वनि से सुरक्षा और घरों में आर्द्रता बनाए रखने में मदद करती हैं.”
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