हिमाचल और एमसीडी चुनाव में बीजेपी की हार का असर लोकसभा चुनाव 2024 में कितना होगा?
बीजेपी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को जीतना चाहती है तो आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को शानदार प्रदर्शन तो करना ही होगा साथ में हिमाचल और एमसीडी में मिली हार से भी काफी कुछ सीखना होगा.
गुजरात में भले ही बीजेपी ने रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल की हो, लेकिन हिमाचल और एमसीडी के चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए निराशा लेकर आए हैं. इन दोनों चुनावों में बीजेपी को मात्र उतीर्ण का अंक ही मिला है. एक तरफ जहां पार्टी राजधानी दिल्ली में पूरे 15 साल बाद एमसीडी की सत्ता से बाहर हो गई तो वहीं दूसरी तरफ इस पार्टी को हिमाचल में भी अपनी सत्ता गवानी पड़ी.
एमसीडी चुनाव 2022 में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल गया. वहीं बीजेपी को पिछले चुनाव के मुकाबले 77 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. आम आदमी पार्टी को पिछली बार के मुकाबले 85 सीटों का फायदा हुआ है. हालांकि गुजरात में बीजेपी ने रिकॉर्ड तोड़ जीत जरूर दर्ज की है.
इस साल के सभी चुनाव तो हो गए, लेकिन अब इन चुनावों का असर साल 2023 के विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनाव पर कितना पड़ता है इसपर सबकी नजर है. दिसंबर में आए तीन चुनावों के नतीजों को देखते हुए एक सवाल उठता है कि हिमाचल और एमसीडी चुनाव में बीजेपी की हार का 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में असर होगा कि नहीं? क्या इन नतीजों की वजह से बीजेपी को अपनी रणनीति बदलनी पड़ सकती है?
भारतीय जनता पार्टी साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को जीतना चाहती है तो आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को शानदार प्रदर्शन तो करना ही होगा साथ में हिमाचल और एमसीडी में मिली हार से भी काफी कुछ सीखना होगा. हिमाचल और एमसीडी में मिली हार के बाद बीजेपी के सामने कौन कौन सी चुनौती आ सकती है...
कांग्रेस के साथ ही साथ आम आदमी पार्टी को साधने की चुनौती
दिल्ली में आप बीजेपी के लिए ज़्यादा चुनौती है, क्योंकि एमसीडी में पार्टी के प्रदर्शन को देखने के बाद अनुमान लगाया जा सकता है कि इस बार राजधानी में बीजेपी की लोकसभा सीटें छिटकेगी. दिल्ली में यही बीजेपी का वो किला बचा है, जिसमें आम आदमी पार्टी अभी तक सेंध नहीं लगा पाई है. 2014 और 2019 में पूरी जोर-आजमाइश के बावजूद केजरीवाल की पार्टी दिल्ली की जनता का समर्थन हासिल नहीं कर पाई. देखना दिलचस्प होगा कि आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी अपने इस किले को केजरीवाल के झाड़ू से बचा पाती है या नहीं.
विधानसभा और एमसीडी के सियासी दंगल में अंगद का पैर बनने के बाद आम आदमी पार्टी की नजर भविष्य में दिल्ली की लोकसभा सीटों पर भी रहेगी. ऐसे में बीजेपी के लिए कांग्रेस के साथ ही साथ आम आदमी पार्टी को साधना भी एक बड़ी चुनौती होगी.
बीजेपी को 2024 में अपना गढ़ कहां-कहां बचाना होगा?
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बीजेपी की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गुजरात में पार्टी की जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में साल 2024 के चुनाव की तैयारियों की झलक थी. वर्तमान में भारत आर्थिक समस्या, महंगाई और साम्प्रदायिकता जैसे कई मुद्दों से जूझ रहा है.
इन सभी का असर 2024 के चुनाव पर पड़ सकता है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को कई राज्यों में अपना गढ़ भी बचाना होगा. 2023 के होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद 2024 के आम चुनाव बीजेपी के लिए अग्निपरीक्षा होंगे.
उत्तराखंड में बीजेपी के पास 5 लोकसभा सीटें हैं और बीजेपी चाहेगी की दोबारा सभी सीटों पर जीत हासिल की जाए. इसके बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी के पास 80 में से 62 लोकसभा सीटें हैं. यहां भी बीजेपी के सामने अखिलेश यादव एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरे हैं. बीजेपी को यहां भी अपना गढ़ बचाना होगा.
हरियाणा में 2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने सभी 10 सीटों पर जीत हासिल की थी और असम में 14 में से 9 पर, गुजरात में सभी 26 पर और गोवा में 2 में से 1 पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. इन सभी राज्यों में बीजेपी को अपना गढ़ बचाना होगा. इन राज्यों के नतीजे ही बीजेपी के भविष्य को तय करेंगे.
बीजेपी को क्या क्या मिलेगी चुनौती?
बीजेपी के हाथ से बिहार वैसे भी निकल गया है. महाराष्ट्र में बीजेपी के पास 48 में से 23 लोकसभा सीटें हैं. बीजेपी को 27.6 प्रतिशत वोट शेयर मिला था. यहां वापसी करना भी पार्टी के लिए बड़ा चैलेंज है. साथ ही ओल्ड पेंशन स्कीम को अगर कांग्रेस राष्ट्रव्यापी मुद्दा बनाएगी तो भी पार्टी को नुकसान हो सकता है.
इसके अलावा वैसे राज्य जहां शिफ्ट में सरकार बनती है, जैसे एक बार बीजेपी तो एक बार कांग्रेस, वहां अगर कांग्रेस एकजुट रहती है, पूरी रणनीति के तहत चुनाव लड़ती है जैसे हिमाचल में लड़ी तो बीजेपी को नुकसान हो सकता है.
एकजुट विपक्ष खड़ी कर सकती है मुसीबत
बीबीसी की एक रिपोर्ट में जामिया मिल्लिया के प्रोफेसर मुजीबुर्रहमान कहते हैं, " जिस तरह से 1989 में वीपी सिंह ने विपक्ष को एकजुट किया था उस तरह से विपक्ष बीजेपी के खिलाफ एकजुट नहीं हो पा रहा है. भारतीय जनता पार्टी को सबसे बड़ा फायदा विपक्ष के एकजुट नहीं होने का मिल रहा है.
विपक्ष ना साल 2014 में एकजुट था, ना 2019 में. साल 2024 में भी इसकी कोई संभावना नज़र नहीं आ रही है. इसका कारण है क्षेत्रीय दलों के अपने-अपने मतभेद. जिस तरह लंबे समय तक कांग्रेस और इंदिरा गांधी को बिखरे हुए विपक्ष का फायदा मिला, अब ठीक वैसा ही फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा है."
2024 के लिए क्या हैं संकेत?
दिल्ली एमसीडी, हिमाचल प्रदेश, गुजरात में हुए चुनावों के नतीजों को देखें तो एक सबसे बड़ा संकेत ये है कि इन नतीजों ने तीनों पार्टियों को संतोष करने के लिए कुछ ना कुछ दिया है. एक तरफ बीजेपी के हाथों में गुजरात का कमान आया, तो वहीं हिमाचल में कांग्रेस ने सत्ता वापसी की है और दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को एमसीडी से बाहर किया है.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में प्रोफेसर मुजीबुर्ररहमान कहते हैं, " इन नतीजों को देखते हुए तो फिलहाल 2024 के लोकसभा चुनाव में क्या होने वाला है यह ठोस रूप से ये पता नहीं चलता है कि अगले आम चुनाव में क्या होगा. लेकिन गुजरात में जो नतीजे आए हैं उनसे बीजेपी की एक पार्टी के रूप में ताकत एक बार फिर स्थापित हुई है.