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अगर सभापति ठुकराते हैं महाभियोग प्रस्ताव तो विपक्ष के पास मौजूद है ये विकल्प

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि सभी दल इस मामले को अंजाम तक लेकर जाएंगे. उन्होंने कहा कि सभापति द्वारा नोटिस स्वीकार नहीं करने की स्थिति में उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएंगे.

नई दिल्ली: देश के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस अगर सभापति एम वेंकैया नायडू ठुकराते हैं तो भी विपक्षी दलों के पास विकल्प मौजूद होगा. नोटिस देने वाले विपक्षी दलों के पास इस फैसले की न्यायिक समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प उपलब्ध रहेगा. सूत्रों के अनुसार राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने वाले कांग्रेस सहित सात दलों ने महाभियोग प्रक्रिया के सभी पहलुओं का विश्लेषण कर आगे की रणनीति तय कर ली है.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि सभी दल इस मामले को अंजाम तक लेकर जाएंगे. उन्होंने कहा कि सभापति द्वारा नोटिस स्वीकार नहीं करने की स्थिति में उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएंगे.

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गौरतलब है कि संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के अनुसार हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को सिर्फ महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा ही पद से हटाया जा सकता है. महाभियोग की कार्यवाही संसद में चलती है. किसी भी न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए पेश प्रस्ताव दोनों सदनों में उपस्थित सदस्यों को दो तिहाई बहुमत से पारित करना होता है. प्रस्ताव पर पहले उस सदन में विचार होता है जिसके सदस्यों द्वारा महाभियोग के प्रस्ताव का नोटिस दिया जाता है.

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इससे पहले उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव का नोटिस संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है. इसे राज्यसभा में पेश करने के लिए कम से कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर वाला नोटिस सभापति को और लोकसभा में कम से कम 100 सदस्यों के हस्ताक्षर वाला नोटिस लोकसभा अध्यक्ष को सौंपना होता है.

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सभापति द्वारा प्रस्ताव मंजूर होने पर सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश या हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति प्रस्ताव में लगाए गए आरोपों की जांच करती है. समिति में दो अन्य सदस्य हाई कोर्ट के न्यायाधीश या कानूनविद हो सकते हैं. समिति की जांच रिपोर्ट प्रस्ताव देने वाले सदन में और फिर दूसरे सदन में पेश की जाती है, जिसे दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पारित किया जाना जरूरी है. सभापति या लोकसभा अध्यक्ष द्वारा प्रस्ताव का नोटिस नामंजूर करने पर इसे पेश करने वाले सदस्य इस फैसले की न्यायिक समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में जाने के लिए स्वतंत्र है.

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