Imran Pratapgarhi Speech: ‘जिल्लेलाही के करम देख रहे हैं…’,शायरी सुनाकर संसद में बरसे इमरान प्रतापगढ़ी, वित्तमंत्री पर किया चुभने वाला तंज
Imran Pratapgarhi in RajyaSabha: इमरान प्रतापगढ़ी ने बजट 2024 में महंगाई, किसानों और महाराष्ट्र को नजरअंदाज करने पर नाराजगी जताते हुए केंद्र सरकार और वित्तमंत्री पर जोरदार हमला किया.
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Imran Pratapgarhi Speech in RajyaSabha: महाराष्ट्र से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने सोमवार को सदन में बजट को लेकर केंद्र सरकार, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और पीएम नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला. इमरान प्रतापगढ़ी ने भाषण की शुरुआत में कहा कि इस बजट में मिडिल क्लास को राहत देने जैसा कुछ नहीं है. वित्त मंत्री ने बजट नहीं तैयार किया है, बल्कि प्रधानमंत्री के मन की बात का संकलन तैयार किया है.
इसके बाद इमरान प्रतापगढ़ी ने शायरी पढ़ते हुए कहा, "टूटा हुआ लश्कर का भ्रम देख रहे हैं, ...और जिल्लेलाही के करम देख रहे हैं... ताकत का नशा अक्ल पर हावी है तुम्हारी, तुम देख न पाओगे जो हम देख रहे हैं" इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा कि वित्त मंत्री ने इस बजट में महंगाई पर सिर्फ 10 शब्द बोला है. जिस देश में टमाटर 100 रुपये किलो बिक रहा हो, उस देश की वित्त मंत्री के पास महंगाई के लिए बोलने को सिर्फ 10 शब्द हैं. मैंने ये भी सुना है कि वित्त मंत्री जी जो चीज खुद नहीं खाती हैं उसकी कीमत से उनका कोई लेनादेना नहीं होता है.
बिना नाम लिए स्मृति ईरानी का किया जिक्र
इमरान यहीं नहीं रुके. उन्होंने कहा कि इस बार बजट पेश करने के लिए संसद आने से पहले वित्त मंत्री जी ने दही और चीनी खाई थी, अब तो उनसे ये पूछा जा ही सकता है कि उन्हें दही, दूध और चीनी का रेट तो इन दिनों पता ही होगा... क्या उन्हें सस्ता कराएंगी या नहीं कराएंगी. अगर पता है तो उसे सस्ता करवाइए.. क्योंकि इसी चीनी ने अमेठी में एक मंत्री महोदय का राजनीतिक करियर कड़वा कर दिया.
यूपी सरकार के नेम प्लेट वाले ऑर्डर पर भी की खिंचाई
महंगाई पर बोलते हुए एक बार फिर इमरान प्रतापगढ़ी ने शायरी पढ़ते हुए कहा, "ये चूनर धानी-धानी भूल जाते, ये पूरबा की रवानी भूल जाते... जो आकर चार दिन गांव में रहते तो सारी लंतरानी भूल जाते" इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों के नाम छुपाने वाली सरकार इन दिनों आम के ठेला लगाने वालों के नाम जानना चाहती है. मुझे तो होटलों, ढाबों और आम के ठेलों पर नाम प्लेट लगवाने वालों से पूछना है कि क्या कभी खून की बोतलों पर देखा है किसी का नाम लिखा हुआ है, मुझे पूछना है कि क्या कोरोना के दौरान अपनी उखड़ती हुई सांसों के लिए ऑक्सीजन तलाशने वाले ने क्या कभी पूछा था कि उसके लिए ऑक्सीजन लाने वाला हिंदू है या मुसलमान है. जनता ने 63 सीटें कम क्या कर दीं, ये सरकार तो अमृतकाल का नाम लेना ही भूल गई है.
महाराष्ट्र में किसानों के आत्महत्या करने का मुद्दा उठाया
महाराष्ट्र का जिक्र करते हुए इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा कि यह सरकार महाराष्ट्र को भूल गई है. महाराष्ट्र जो देश की आर्थिक राजधानी है और सबसे ज्यादा टैक्स देता है उस महाराष्ट्र के लिए इस बजट में एक शब्द नहीं है. आखिर महाराष्ट्र से किस बात का बदला लिया जा रहा है. महाराष्ट्र ने लोकसभा चुनाव में बाबा साहेब के संविधान को बचाने के लिए वोट क्या कर दिया.. प्रधानमंत्री जी तो महाराष्ट्र से बदला लेने पर उतर आए. अब तो शायद उन्हें याद भी न हो यवतमाल का वह दाभड़ी गांव 20 मार्च 2014 को चाय पर चर्चा करने गए थे और उनकी किस्मत बदलने के सपने दिखाए थे. उसी यवतमाल में पिछले 6 महीने में 132 किसानों ने आत्महत्या की है. महाराष्ट्र में हर महीने 209 किसान आत्महत्या कर रहे हैं. राज्य सरकार का आंकड़ा बताता है कि 1 जनवरी से 31 मई के बीच 1046 किसानों ने आत्महत्या की है, लेकिन अफसोस इस बजट में महाराष्ट्र के किसानों के लिए कुछ नहीं है.
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