(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
साल 1999 में सोनिया गांधी को नहीं बनने दिया पीएम, पढ़ें मुलायम सिंह की ऐसी ही 5 कहानियां
Mulayam Singh Yadav: समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का आज निधन हो गया है. उन्होंने मेदांता अस्पताल में आज सुबह 8 बजकर 16 मिनट पर आखिरी सांस ली.
Mulayam Singh Yadav: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का आज निधन हो गया है. मुलायम सिंह यादव ने गुरग्राम के मेदांता अस्पताल में आज सुबह 8 बजकर 16 मिनट पर आखिरी सांस ली. मुलायम सिंह के निधन की खबर के बाद राजनीति जगत में शोक की लहर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत तमाम बढ़े नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव ने अपना दुख व्यक्त करते हुए कहा कि, मेरे आदरणीय पिता जी और सबके नेता जी नहीं रहे.
बता दें, मुलायम सिंह यादव के पार्थिव शरीर को अस्पताल से निकाल सैफई ले जाया जा रहा है. मुलायम सिंह का अंतिम संस्कार कल सैफई में होगा जिसमें तमाम बढ़े नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है.
मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक जीवन में बेहद कामयाबी हासिल की. शुरुआती दौर में उन्होंने दूसरी पार्टी का सहारा लेते हुए चुनाव जीते जिसके बाद उन्होंने उन्होंने खुद अपनी पार्टी को बनाने का ठाना. ऐसे ही कुछ खास किस्सों के बारे में जानें...
मुलायम सिंह यादव की 5 खास कहानियां...
1- ऐसे आए राजनीतिक जीवन में...
साल 1967 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हो रहा था. मुलायम सिंह के राजनीतिक गुरु माने जाने वाले नट्थू सिंह तब जसवंत नगर से विधायक थे और वो मुलायम को बहुत मानते थे. उन्होंने अपनी सीट से मुलायम सिंह को उतारने का फैसला किया जिसके बाद मुलायम को टिकट दिया गया. इस सबके बाद उनके प्रचार करने की बारी थी. ऐसे में उनके दोस्त दर्शन सिंह ने उनका साथ दिया. दर्शन सिंह साइकिल चलाते और मुलायम सिंह पीछे बैठ जाते. मुलायम सिंह यादव ने गांव-गांव साइकिल पर बैठकर चुनाव प्रचार किया और अंत में जीत भी लिया और फिर सियासत में कामयाबी की सीढ़िया चढ़ते गए.
2- चुनाव प्रचार के लिए नहीं थे पैसे...
मुलायम सिंह यादव ने जिस वक्त अपना पहला चुनाव लड़ा था तब उनके पास एक भी पैसा नहीं था. अब आप ये सोचेंगे ऐसे में उनकी राजनीतिक सफर की शुरुआत कैसे हुई? साइकिल से उन्होंने चुनाव प्रचार तो शुरू कर दिया था लेकिन उन्हें ये समझ में आ गया था कि उस जस्बे के साथ प्रचार नहीं हो पा रहा जो होना चाहिए. ऐसे में उन्होंने एक वोट एक नोट का नारा दिया. वो चंदे के रूप में एक रुपया मांगते और ब्याज के साथ वापस लौटाने का वादा करते. मुलायम सिंह का ये नारा हिट हो गया और लोगों ने जमकर प्यार बरसाया और उन्हें चुनाव प्रचार के लिए पैसा मिलता गया.
3- एम्बेसडर में तेल भरवाने के लिए नहीं थे पैसे...
पहलवानी का अखाड़ा हो या राजनीति का मैदान अपने विरोधियों को हराना मुलायम सिंह यादव की सबसे बड़ी खासियत रही है. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि उन्हें चंदे के पैसे से एम्बेसडर कार खरीदी थी लेकिन उनके पास तेल भरवाने के भी पैसे नहीं बचे थे. जिसके बाद तेल का पैसा कहा से लाया जाए इसको लेकर बैठक की गई. इसी दौरान एक गांववासी ने कहा कि, हम करेंगे पैसे की व्यवस्था और सभी गांववासियों ने फैसला लिया कि हफ्ते में एक दिन एक ही वक्त का खाना खाया जाएगा. जो अनाज बचेगा उसे बेचकर एम्बेसडर में तेल भराने के लिए पैसे का इंतजाम किया जाएगा.
4- सोनिया गांधी को नहीं बनने दिया पीएम
सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री के सपने को तोड़ने वाले और कोई नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव ही थे. साल 1999 में सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं. राष्ट्रपति के पास वो अपना क्लेम लेकर गई थीं. उन्होंने 272 सीटों की बहुमत भी गिना दी पर ठीक आखिरी मौके पर 32 सांसदों वाले मुलायम सिंह यादव ने अपना साथ देने से इनकार कर दिया. जिसके बाद यूपीए के पास सीटें कम हो गई और सोनिया प्रधानमंत्री नहीं बन सकी. खबर बाद में ये भी आई कि, इस पूरे घटनाक्रम के बाद सोनिया गांधी मुलायम सिंह यादव से बेहद गुस्सा हुईं और उनसे नफरत करने लगीं. दावा ये भी किया गया कि वो मुलायम सिंह यादव से बदला भी लेना चाहती थीं.
5- समाजवादी पार्टी के बनने की अखिलेश यादव को नहीं थी भनक
आप हैरान होंगे ये जानकर कि जब समाजवादी पार्टी बनी तो इसकी भनक अखिलेश यादव को दूर-दूर तक नहीं थी. अखिलेश यादव को अखबार के जरिए पार्टी के बनाए जाने की खबर मिली. मुलायम सिंह अब तक दूसरी पार्टी के जरिए चुनाव लड़ रहे थे और जीत भी रहे थे. लेकिन बाद में उन्होंने ये ठान लिया कि वो अब खुद की पार्टी बनाएंगे. लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में उन्होंने समाजवादी पार्टी के नाम से पार्टी बनाई. इस वक्त उनके बेटे अखिलेश यादव मैसूर में थे और उन्हें इसकी जानकारी अखबार के जरिए मिली.
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