Women & Men Sex Ratio In India:भारत के राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पहली बार लिंगानुपात 1,020:1,000 के साथ महिलाओं की संख्या पुरुषों से आगे निकल गई है. भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार यह भारत में हो रहे बड़े जनसांख्यिकीय बदलाव की ओर इशारा करता है. स्वास्थ्य मंत्रालय के एक प्रवक्ता के अनुसार अब हम कह सकते हैं कि भारत विकसित देशों की लीग में शामिल हो गया है और लिंगानुपात के मामले में आगे बढ़ रहा है. उन्होंने आगे कहा इसका श्रेय वित्तीय समावेशन, महिला सशक्तिकरण और जेंडर परसेप्शन और असमानता का मुकाबला करने के लिए उठाए गए कदमों को जाता है.


भारत में जन्म के समय के लिंगानुपात पर यदि नजर डालें तो यह 2015-16 में 919 से बढ़कर 2019-20 में 929 हो गया था. जो पीसी और पीएनडीटी अधिनियम और अन्य विभिन्न सरकारी अधिनियमों और योजनाओं की सफलता को दर्शाता है. 24 नवंबर 2021 को भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारत के 14 चरण-II राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की जनसंख्या, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण और अन्य स्वास्थ्य संबंधी क्षेत्रों के सर्वे को जारी किया है. इससे पहले सरकार ने दिसंबर 2020 में पहले चरण में शामिल 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के NFHS-5 के सर्वे जारी किए गए थे.


अधिकारियों के मुताबिक, NFHS-5 के सर्वे से उन्हें यह पता चला कि देश में 88.6% बच्चों के जन्म (सर्वेक्षण से पहले के 5 वर्षों में) अस्पतालों में हुए हैं. उनका कहना था कि NFHS-4 (78.9%) की तुलना में यह एक महत्वपूर्ण वृद्धि है. साथ ही यह इस बात का प्रमाण है कि भारत हॉस्पिटलॉइज्ड बर्थ की युनिवर्सल स्टेज प्राप्त करने की दिशा की ओर अग्रसर है. अधिकारियों ने आगे कहा कि बच्चे को जन्म देते समय जच्चा और बच्चा की मृत्यु दर में कमी के लिए उनका अस्पताल में प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा प्रजनन कराए जाने की आवश्यकता है.


बच्चे के जन्म के दौरान कुशल देखभाल किए जाने को लेकर महत्वपूर्ण रणनीति यह है कि सभी जन्म उचित स्वास्थ्य सुविधाओं की उपस्थिति में हुए हों. जहां प्रसव के दौरान उत्पन्न जटिल परिस्थितियों से निपटा जा सके. सर्वेक्षण के आधार पर दावा किया गया है कि देश में कुल प्रजनन दर( total fertility rate) प्रजनन क्षमता के रिप्लेसमेंट लेवल तक पहुंच गई है. जोकि जनसंख्या के क्षेत्र में महत्वपूर्ण मील का पत्थर है.


2015-16 में 2.2 की तुलना में 2019-21 में भारत के लिए Total fertility Rate प्रति महिला 2.0 बच्चों तक पहुंच गया है. इसका मतलब है कि महिलाएं अपने प्रजनन काल में पहले की तुलना में कम बच्चों को जन्म दे रही हैं. मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, यह परिवार नियोजन सेवाओं के बेहतर ज्ञान और उपयोग, विवाह में देरी से प्रवेश का भी संकेत देता है. वहीं 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए जन्म पंजीकरण (सिविल ऑथारिटी के साथ) 79.7 प्रतिशत (एनएफएचएस -4), 2015-16  से बढ़कर 89.1 प्रतिशत हो गया है. 


वहीं स्वास्थ्य अधिकारी के अनुसार पिछले दौर के बाद से यह एक महत्वपूर्ण वृद्धि है. गर्भनिरोधक का उपयोग विशेष रूप से किशोर लड़कियों व महिलाओं के लिए गर्भावस्था से संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों को रोकता है. वहीं जन्म के बीच ठीक तरीके से नियोजित अंतराल शिशु मृत्यु दर को रोकने में मददगार साबित हुआ है.


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