नई दिल्ली: नया साल 2020 शुरू हो चुका है. ऐसे में इसरो ने भी इस साल में होने वाले अपने बड़े मिशंस के लिए कमर कस ली है. इसरो चेयरमैन के सिवन ने बेंगलुरु में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि चंद्रयान मिशन के लिए केंद्र की मंजूरी मिल गई है और वैज्ञानिक इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. आपको बता दें कि पिछले साल जुलाई में प्रक्षेपित किए गए चंद्रयान-2 मिशन के लैंडर विक्रम से इसरो ने संपर्क खो दिया था. जिसके बाद लगातार कोशिश के बाद भी इसरो के वैज्ञानिक लैंडर विक्रम से संपर्क नहीं साध पाए थे. सितंबर 7 को चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम को चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग करनी थी लेकिन आखिरी स्टेज पर फाइन ब्रेकिंग के दौरान वेलोसिटी यानी विक्रम लैंडर के वेग को कंट्रोल नहीं कर पाने के कारण क्रैश लैंड हुआ. लेकिन चंद्रयान-2 मिशन का ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की कक्षा पर परिक्रमा कर रहा है और पूरी तरह से स्वस्थ है. लेकिन क्योंकि लैंडर विक्रम के हार्ड लैंडिंग से क्रैश होने के बाद जो एक्सपेरिमेंट इसरो लैंडर और रोवर से नहीं कर पाया वही अब चंद्रयान-3 मिशन से करेगा.


ऐसे में इसरो ने यह फैसला किया है कि चंद्रयान तीन मिशन चंद्रयान 2 का ही लिंक मिशन होगा. यानी चंद्रयान 3 मिशन में ऑर्बिटर नहीं होगा लेकिन लैंडर और रोवर होगा. उसी के साथ एक प्रोपल्शन सिस्टम भी होगा. जिसकी मदद से लैंडर को चंद्रमा की सतह पर लैंड कराया जाएगा. चंद्रयान 2 मिशन में ऑर्बिटर के साथ ही लैंडर अटैच था जो कि ऑर्बिटर के चंद्रमा की कक्षा में स्थापित होने के बाद लैंडर अलग हो गया था जिसके बाद सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया शुरू हुई थी. लेकिन लैंडर विक्रम को खोने के बाद अब इसरो फिर एक बार चंद्रयान 3 के जरिए इन्हीं एक्सपेरिमेंट्स को करेगा. क्योंकि चंद्रयान 2 का ऑर्बिटर स्वस्थ है ऐसे में चंद्रयान 3 में बिना ऑर्बिटर लैंडर और रोवर को भेजा जाएगा.


इसके अलावा इसरो के चेयरमैन के सिवन ने 2020 के टारगेट को भी बताया. उन्होंने कहा इस साल इसरो का लक्ष्य है करीब 25 मिशन. इस बाबत इसरो अपने दूसरे स्पेस लॉन्च पोर्ट को बनाने की तैयारी में है. आपको बता दें कि इस वक्त इसरो के पास 1 स्पेस लॉन्च पोर्ट है जो कि आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा में मौजूद है. दूसरा स्पेस लॉन्च पोर्ट बनाने के लिए इसरो ने तमिलनाडु के तूतूकुड़ी में जगह खोज ली है. साथ ही इसरो इस साल एसएसएलवी और आरएलवी को भी लॉन्च करने जा रहा है. एसएसएलवी यानी स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हेकिल है जो कि 300 से 500 किलोग्राम वजनी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने कि ताकत रखता है. इससे पहले इसरो पीएसएलवी, जीएसएलवी और जीएसएलवी मार्क 3 का इस्तेमाल करता रहा है. पीएसएलवी 320 टन तक का वजन, वहीं जीएसएलवी 415 टन और बाहुबली रॉकेट जीएसएलवी मार्क- III 640 टन तक के सेटलाइट को भेजने ने सक्षम है. ऐसे में छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण में एसएसएलवी की मदद ली जा सकेगी. इसके अलावा आरएलवी भी लॉन्च किया जाएगा. आरएलवी यानी रीयुसेबल लॉन्च व्हेकिल. यानी प्रक्षेपित होने के बाद दोबारा लॉन्च व्हेकिल का इस्तेमाल किया जा सके.


वहीं भारत के पहले मानव मिशन गगनयान की बात करें तो 2019 में गगनयान प्रोजेक्ट पर काफी काम हुआ और 2020 पूरा गगनयान के लिए चुने गए चार एस्ट्रोनॉट्स की ट्रेनिंग में जाएगा. एस्ट्रोनॉट्स की ट्रेनिंग रूस में होगी. इसके लिए इंडियन एयर फोर्स के चार पायलट्स को चुन लिए गया है. जिनका मेडिकल टेस्ट भी हो चुका है. पहले स्टेज की ट्रेनिंग जनवरी महीने के तीसरे हफ्ते में शुरू होगी. जिसके बाद एडवांस ट्रेनिंग के लिए इन चारों को रूस भेज दिया जाएगा. गगनयान मिशन इसरो के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण मिशन है और यही कारण है इस मिशन से पहले 3 टेस्ट लॉन्च भी किए जाएंगे. पहला टेस्ट लॉन्च इस साल के अंत तक वही दूसरा जुलाई 2021 और तीसरा दिसंबर 2021 में किया जाएगा. जिसके बाद मिशन को 2022 के शुरुआत में प्रक्षेपित किया जाएगा. इस मिशन को इसरो के बाहुबली रॉकेट जीएसएलवी मार्क 3 के जरिए भेजा जाएगा. गगनयान प्रोजेक्ट के शुरुआती पड़ाव के तहत पहला टेस्ट अनमैन्ड (मानवरहित) मिशन इस साल करने की प्लानिंग है. यह मिशन इतना आसान नहीं इसलिए कोई चूक ना हो जाए उसका पूरा ध्यान रखते हुए इंटरेस्ट को प्लान किया गया है. इसलिए इसरो के भीतर गगनयान प्रोजेक्ट में सतर्कता से काम किया जा रहा है. पहले टेस्ट में एक ह्यूमनॉइड को इस अनमैंड मिशन में भेजा जाएगा ताकि अंतरिक्ष की चुनौतियों का पता लगाया जा सके.


चंद्रयान-3, गगनयान मिशन के अलावा इस साल भारत सूर्य मिशन भी भेजने वाला है. आदित्य L1 के जरिए भारत सूरज तक पहुंचकर वहां मौजूद रहस्यों की पड़ताल करेगा. सूरज का तापमान करीब 6000° केल्विन है. लेकिन रहस्य की बात यह कि सूर्य की आउटर लेयर जिसे कोरोना कहते है वह सूरज कि सतह से भी अधिक गर्म है. लेकिन यह सवाल आज भी अनसुलझा है कि आखिर ऐसा क्यों. क्यों सूरज के मुकाबले उसके बाहरी परत इतनी गरम है? जिसका तापमान मिलियन केल्विन का माना जाता है. इसके अलावा वहां किस तरह की हवा, मैगनेटिक फील्ड, फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर को भी स्टडी करेगा. साफ है 2019 की ही तरह 2020 भी इसरो के लिए चुनौतियों से भरा है और उन चुनौतियों को कामयाबी में बदलने के लिए इसरो पूरी तरह तैयारी में जुटा है.