नई दिल्ली: लोकसभा में शुक्रवार यानी 20 जुलाई को मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होगी. विपक्षी दलों की तरफ लाये गए अविश्वास प्रस्ताव पर शुक्रवार को ही बहस के बाद वोटिंग भी करवाई जाएगी. लोकसभा में संख्याबल को देखते हुए मोदी सरकार को कोई खतरा नहीं है.
बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र की एनडीए सरकार के खिलाफ विपक्ष के लाये गए अविश्वास प्रस्ताव पर शुक्रवार को संसद में गरमा गरम बहस होना तय है. टीडीपी के लाये गए अविश्वास प्रस्ताव को 4 अन्य दलों ने समर्थन किया है. ये दल कांग्रेस, एनसीपी, आरएसपी और सीपीएम हैं. चुनावी साल में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान राजनीति अपने उफान पर होगी. बजट सत्र में भी सरकार के खिलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव आया था लेकिन स्पीकर ने स्वीकार नहीं किया था. अब मानसून सत्र के पहले ही दिन अविश्वास प्रस्ताव की मंजूरी के सियासी मायने भी हैं.
सरकार अपने लिए भुनाना चाहती है मौका
दरअसल सरकार अविश्वाश प्रस्ताव के ज़रिए विपक्ष की एकता की हवा निकालना चाह रही है, साथ ही NDA के भीतर की थाह भी लेना चाहती है. BJD जैसे दलों ने इस पर अभी तक अपना रुख साफ नहीं किया है, जबकि शिवसेना का रवैया भी अभी स्पष्ट नहीं है. सरकार इस मौके को कांग्रेस सहित साझा विपक्ष को जवाब देने के मौके तौर पर देख रहे हैं साथ ही सरकार के कामकाज के खाके को संसद में सामने रखकर विपक्ष का मुंह भी बंद करना चाहती है. सरकार के सूत्रों के मुताबिक विपक्ष की अविश्वास प्रस्ताव की ज़िद को सरकार अपने लिए सुनहरे मौके में बदलना चाहती है. इस मौके से विपक्ष की एकता अगर तार-तार हुई तो उस गणित का फायदा सरकार राज्य सभा में उपसभापति के चुनाव में भी कर सकती है.
संसदीय कार्य मंत्री अनन्त कुमार का कहना है कि विश्वास मत जीतने के लिए हमें कोई परेशानी नही है और पिछले चार साल में मोदी जी को राज्यों के चुनाव के ज़रिए बार-बार जनादेश मिला है. विपक्ष को भी अपने पक्ष में बहुमत न होने का अंदाज़ा है लेकिन वो अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए संसद के मंच से मोदी सरकार को घेरने की रणनीति पर काम कर रही है. सरकार ने भी विपक्ष के हर हमले का जवाब देने की तैयारी कर ली है.
लोकसभा में आंकड़ों का गणित मोदी के पक्ष में है
-इस वक़्त सदन में 535 सांसद हैं मतलब बहुमत के लिए ज़रूरी आंकड़ा है 268 है.
-बीजेपी के पास लोकसभा अध्यक्ष को छोड़कर 273 सांसद है, मतलब उसे अपने बलबूते ही स्पष्ट बहुमत हासिल है.
-एनडीए के पास 315 सांसद हैं. हालांकि शिवसेना का रुख स्पष्ट नहीं है.
-वहीं अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में देखें तो यूपीए के पास 64, टीएमसी के पास 34, अन्नाद्रमुक के पास 37, टीडीपी के पास 16 , टीआरएस के पास 11,सीपीएम के 9 और सपा के 7 सांसद हैं.
-बीजेडी के 20 सांसदों का फिलहाल कांग्रेस और बीजेपी से सामान दूरी की नीति कायम है.
मतलब साफ है कि विपक्ष एक हारी हुई सियासी लड़ाई लड़ रहा है. हालांकि के सी वेणुगोपाल कह रहे हैं विपक्ष के पास नम्बर हैं. अब सवाल ये है कि संख्याबल के आधार पर हार निश्चित होने के बाद भी विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया? विपक्ष की रणनीति ये है कि घंटों बहस के दौरान सरकार के दावों को हकीकत की कसौटी पर कसा जाए और जनता के सामने पोल खोली जाए. इतिहास गवाह है कि संसद में बहस के दौरान हर बार पीएम मोदी ही महफ़िल लूटते रहे हैं तो सवाल ये है कि विपक्ष का ये दांव कहीं उल्टा तो नहीं पड़ जाएगा.