नई दिल्ली: आज का भारत, 1962 के युद्ध वाला भारत नहीं हैं. पिछले 55 सालों में ब्रह्मपुत्र में बहुत पानी बह गया है. दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना वाला भारत अब एक परमाणु शक्ति वाला देश भी है. जिस पर हमला करने से पहले किसी भी देश को हजार बार सोचना पड़ेगा. अब भारत पर चीन की धमकियों का कोई असर नहीं होगा.
भारत को इतिहास से सबक लेना चाहिए: चीन
सिक्किम के करीब भूटान में एक विवादित इलाके में सड़क बनाने को लेकर भारत और चीन के सैनिकों के बीच चल रहे गतिरोध के बीच चीन के रक्षा मंत्रालय ने चेतावनी देते हुए कहा है कि भारत को ‘इतिहास से सबक’ लेना चाहिए. चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता का ये बयान 1962 के युद्ध के संदर्भ में कहा गया है. लेकिन जानकारों की मानें तो पिछले 55 सालों में 'बह्मपुत्र नदी में बहुत पानी बह चुका है.'
आज का भारत ’62 के युद्ध वाला भारत नहीं है. यहीं नहीं जानकारों की मानें तो 62 के युद्ध के ठीक पांच साल बाद ही भारत ने चीन को नाथूला और चोला लड़ाई की लड़ाई में ऐसा सबक सिखाया था कि उसने फिर कभी भारत की तरफ आंख उठाने की जुर्रत नहीं की है. नाथूला और चोला की लड़ाई उसी सिक्किम इलाके में लड़ी गई थी जहां इनदिनों दोनों देशों की सेनाओं के सैनिक एक बार फिर आमने सामने हैं.
भारत को चीन के हाथों करारी हार का सामना
ये बात सही है कि 1962 के युद्ध में भारत को चीन के हाथों एक करारी हार का सामना करना पड़ा था. उस युद्ध में भारत के करीब 1300 सैनिक मारे गए थे और एक हजार सैनिक घायल हो गए थे. युद्ध के बाद करीब डेढ़ हजार सैनिक लापता हो गए थे और करीब चार हजार सैनिक बंदी बना लिए गए थे. वहीं चीन के करीब 700 सैनिक मारे गए थे और डेढ़ हजार से ज्यादा घायल हुए थे.
चीन की सेना ने अरुणचाल प्रदेश को भारत से लगभग छीन लिया था और चीनी सेना असम के तेजपुर तक पहुंचने वाली थी. दूसरी तरफ लद्दाख के अक्साई-चिन इलाके पर भी चीन ने कब्जा कर लिया था. बाद में चीन ने अपनी सेना को अरुणचाल प्रदेश से हटा लिया था और युद्धविराम की घोषणा कर दी थी. गुरुवार को चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसी ऐतिहासिक सबक से सीख लेने की चेतावनी तल्ख लफजों में दी थी.
लेकिन जानकारों की मानें तो 1962 के युद्ध में भारत ने कई गलतियां की थी. उस वक्त भारत गुटरनिरपेक्ष के सिद्धांत को मानता था और अपने सेना के आधुनिकिकरण को ज्यादा तवोज्जा नहीं देता था. भारत की सेना चीन के मुकाबले काफी कमजोर थी. 1962 के युद्ध के दौरान भारत के सैनिक पीटी शूज में थ्रीें नोट थ्री (.303) बंदूक से लड़ाई लड़ने गए थे. वो भी अक्टूबर नबम्बर की कड़कड़ाती ठंड में 18 से 20 हजार फुट की उंचाई पर. भारतीय सेना को उस वक्त हाई एलटीट्यूड पर लड़ने की कोई ट्रैनिंग नहीं दी गई थी.
भारत का साथ देकर चीन को नाराज नहीं करना चाहता था रुस
जिस वक्त 62 का युद्ध चल रहा था उस वक्त दुनिया की दो महाशक्तिशाली देश, अमेरिका और रुस क्यूबा-मिसाइल विवाद में फंसे हुए थे. भारत का घनिष्ठ दोस्त, रुस 62 के युद्ध में भारत का साथ देकर चीन को नाराज नहीं करना चाहता था. अगर ऐसा होता तो रुस यानि उस वक्त के यूएसएसआर को अमेरिका और चीन दोनों से निपटना पड़ता. यही वजह है कि इस युद्ध में भारत अलग-थलग पड़ गया था.
लेकिन चीन से 1962 में मिली करारी हार के बाद से ही भारत ने अपनी फौज का आधुनिकिकरण करना शुरु कर दिया था. 1962 के युद्ध में भारत के सैनिकों की संख्या मात्र 10-25 हजार थी. जबकि आज भारतीय सेना दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना है. इस सेना में 13 लाख सैनिक है. इसके अलावा बड़ी संख्या में अर्द्ध-सैनिक बलों के जवान हैं जो सेना की तरह है अपनी सीमाओं की रखवाली करते हैं. युद्ध के वक्त में इन पैरामिलेट्री फोर्स के जवान भी सेना के साथ मिलकर किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं.
''भारत के खिलाफ मोर्चा खोलने से पहले हजार बार सोचेगा कोई भी देश''
भारत के पास आज दुनिया के बेहतरीन हथियार, टैंक, तोप और मिसाइल प्रणाली है. भारत आज परमाणु शक्ति है. थल, जल और आकाश तीनों से परमाणु हथियार चलाने की क्षमता अगर दुनिया के चुनिंदा देशों के पास है, तो भारत भी उस चुनिंदा श्रेणी में शुमार है. कोई भी देश भारत के खिलाफ मोर्चा खोलने से पहले हजार बार सोचेगा.
आज भारत और चीन के सैनिकों की बात करें तो ये अनुपात करीब-करीब 1:1.76 का है. भारतीय सेना की नई माउंटन स्ट्राइक कोर सिर्फ और सिर्फ चीन से लड़ने के लिए तैयार की जा रही है. ब्रह्मास्त्र के नाम से जाने जाने वाली इस स्ट्राइक कोर का मुख्यालय पश्चिम बंगाल के पानागढ़ में है, जो उस ट्राइ-जंक्शन से बेहद करीब है जहां फिलहाल भारत और चीन के बीच मौजूदा विवाद चल रहा है. इस कोर के सैनिक लद्दाख से लेकर अरूणाचल प्रदेश तक फैली चीन की सीमा पर फैले होंगे. युद्ध की परिस्थिति में दुश्मन की सीमा में घुसकर मारने की क्षमता रखती है ये स्ट्राइक कोर.
अमेरिका से हाल ही में आई एम-777 हल्की तोपें खासतौर से इसी स्ट्राइक कोर के लिए खरीदी जा रही हैं. ताकि युद्ध की स्थिति में इन्हें जल्द से जल्द सीमा पर पहुंचा दिया जाए.
''चीन सीमा तक पहुंचने के लिए भारतीय सेना के पास सड़क तक नहीं थीं''
62 के युद्ध के दौरान चीन सीमा तक पहुंचने के लिए भारतीय सेना के पास सड़क तक नहीं थीं. लेकिन अब भारत ने चीन सीमा पर स्ट्रटेजिक रोड बनाना शुरू कर दिया है. 2022 तक भारत चीन सीमा पर सड़कों का जाल बिछा देगा. साथ ही रेल लाइन भी सीमावर्ती इलाकों तक पहुंच जायेगी, जिससे सैनिकों को सीमा पर तेजी से डेप्लोय यानि तैनात किया जा सके.
भारत की थलसेना के साथ साथ वायुसेना भी चीन के खिलाफ 20 ही साबित हो सकती है. क्योंकि भारतीय वायुसेना के पास इस वक्त चीन के मुकाबले कहीं ज्यादा मारक क्षमता वाले लड़ाकू विमान हैं. चीन का भारत से सटा इलाका यानि तिब्बत भारत की तरह समतल नहीं है. भारत के लड़ाकू विमान तेजपुर से ज्यादा पेलोड यानि बम और मिसाइल लेकर दुश्मन की सीमा में घुस सकते हैं. जबकि चीन के लड़ाकू विमान तिब्बत में बने एयरबेस और एयर स्ट्रिप से कम पेलोड लेकर उड़ान भर पाएंगे.
साथ ही ये बात भी कम लोग जानते हैं कि 62 के युद्ध में भले ही भारत को हार का सामना करना पड़ा हो लेकिन उसके बाद जितनी भी झड़पें भारत की चीन के साथ हुई उनमें भारतीय सेना चीन की पीएलए पर भारी ही पड़ी है. 62 के युद्ध के ठीक पांच साल बाद यानि 1967 में ही भारत ने सिक्किम के नाथूला और चोला दर्रों पर हुई लड़ाई में चीन को करारी हार का सामना करना पड़ा. इस लड़ाई में चीन के 400 सैनिक मारे गए थे जबकि भारत के 40 जवान शहीद हुए थे. ये इलाका उस डोलाम के बेहद करीब है जहां चीन से मौजूदा विवाद और गतिरोध चल रहा है.
इस ऑपरेशन का नाम था 'ऑप-चेकरबोर्ड'
1967 के बाद भी भारत ने एक बार फिर चीन के खिलाफ ऑपरेशन किया था. इस ऑपरेशन का नाम था 'ऑप-चेकरबोर्ड' लेकिन इस ऑपरेशन से पहले हम आपको एक बार फिर बताते हैं कि चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने भारत के थलसेनाध्यक्ष के बारेे में क्या कहा. चीन के एक कर्नल रैंक के प्रवक्ता ने सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत को 'एक व्यक्ति' कहकर संबोधित किया और उनके ढाई-फ्रंट वॉर पर चिढ़ाने के लहजे में कहा कि उन्हें 'इतिहास से सबक लेना चाहिए' और युद्ध को लेकर 'शोर शराबा' नहीं करना चाहिए.
दरअसल, हाल ही में जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि भारतीय सेना ढाई फ्रंट वॉर यानि चीन पाकिस्तान और आंतरिक सुरक्षा के लिए बिल्कुल तैयार है.
अब आपको बताते हैं ऑप-चेकरबोर्ड के बारे में और उस ऑपरेशन में जनरल बिपिन रावत का क्या रोल था. दरअसल, 1986-87 में भारतीय सेना नें अरूणाचल प्रदेश में चीन के खिलाफ ऑप-चेकरबोर्ड को लांच किया था. इस ऑपरेशन से चीनी सेना में हड़कंप मच गया था. माना जाता है कि इस ऑपरेशन के दौरान भी भारत और चीन के बीच भी फायरिंग हुई थी. उस दौरान बिपिन रावत सेना में कंपनी कमांडर के पद पर थे और ऑपरेशन चेकरबोर्ड में एक अहम भूमिका निभाई थी.