नई दिल्लीः कैराना लोकसभा सीट पर बीजेपी के पूर्व सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह की हार हुई है. वैसे तो इस हार के कई कारण रहे हैं लेकिन इस हार से एक सवाल बीजेपी की रणनीति पर भी खड़ा हो रहा हैं. कैराना लोकसभा सीट पर बीजेपी की हार की एक वजह ये भी रही कि बीजेपी के अपने मतदाता भी बीजेपी से नाराज हो गए. जिस गुर्जर समाज को लेकर यह माना जा रहा था कि वह पूरी तरह से बीजेपी के साथ रहेगा वह भी बीजेपी से छिटक गया है जो चुनावी नतीजों से साफ नजर आ रहा है.


कैराना चुनाव में बीजेपी की हार और आरएलडी की जीत के ये मुख्य कारण माने जा सकते हैं जिन्होंने यूपी की योगी सरकार के ऊपर भी सवाल खड़े कर दिए हैं क्योंकि योगी आदित्यनाथ ने मृगांका सिंह के लिए प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ी थी.


1. कैराना उपचुनाव में पूरा विपक्ष एकजुट रहा. किसी भी बड़ी पार्टी ने उम्मीदवार नहीं खड़ा किया जिसका पूरा फायदा आरएलडी के उम्मीदवार को पूरी तरह मिला. जिसकी वजह से बीजेपी को एक मजबूत चुनौती मिली. साथ ही गन्ना किसानों की नाराजगी भी बीजेपी के ऊपर भारी पड़ी.


2.  पश्चिमी उत्तरप्रदेश के जाट वोटरों का चौधरी चरण सिंह के परिवार से पुराना नाता है. अपने छोटे चौधरी यानि अजित सिंह की राजनीति में कम होती हैसियत का अहसास उन्हें हो रहा था. इसलिए अजित सिंह को मजबूत करने और उनके बेटे जयंत चौधरी का कद बढ़ाने के लिए जाट सब भूल कर वापस आरएलडी के पास वापस लौटे.  आरएलडी के पक्ष में ज्यादा वोट पड़ने का ये एक बड़ा कारण रहा जिसका फायदा केंडिडेट तबस्सुम हसन को मिला.


3. समाजवादी पार्टी ने ना सिर्फ समर्थन किया बल्कि अपनी पार्टी की नेता तबस्सुम हसन को आरएलडी उम्मीदवार बनवाया. अखिलेश यादव के कहने पर ही एसपी नेता तबस्सुम हसन को आरएलडी का उम्मीदवार बनाया गया.  ये प्रयोग जाट और मुस्लिम वोटरों को साथ लाने के लिए किया गया. प्रयोग सफल रहा मुस्लिम वोटर ने आरएलडी को समर्थन दिया. अखिलेश यादव खुद चुनाव प्रचार करने नहीं गए लेकिन समाजवादी पार्टी नेताओं की फ़ौज तबस्सुम के प्रचार में रात दिन जुटी रही.


4.कैराना में आरएलडी उम्मीदवार का सपा औऱ कांग्रेस ने तो समर्थन किया लेकिन बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने समर्थन का ना तो खुलकर कोई एलान किया और ना ही कोई प्रचार किया. लेकिन बीएसपी ने आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन का कोई विरोध नही कर अपने वोटर्स को सीधा संदेश दे दिया. औऱ इस इस तरह बिना किसी प्रचार या एलान के भी मायावती ने दलित वोट आरएलडी के कैंडिडेट को ट्रांस्फर कर दिया.


5. बीजेपी की उम्मीदवार मृगांका सिंह को सहानुभूति वोट नही मिला है. कैराना चुनाव को समझने वाले लोगों के मुताबिक भी बीजेपी ने मृगांका सिंह को टिकट यही सोच कर दिया था कि उनको सहानुभूति का भी वोट मिल जाएगा. वह लोग भी साथ नहीं आए जिन्होंने पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान हुकुम सिंह के पक्ष में जमकर मतदान किया था. ऐसा माना जा रहा था कि मृगांका सिंह को सहानुभूति का वोट भी मिलेगा. क्योंकि मृगांका सिंह उसी सीट से चुनाव लड़ रहीं थी जहां से उनके पिता सांसद थे और सांसद रहते हुए ही उनकी मौत हो गई थी. खुद मृगांका सिंह ने भी माना था कि क्यों उनको जनता उनके पिता के नाम पर वोट भी देगी और जीत भी दिलाएगी. लेकिन बीजेपी का यह प्रयोग पूरी तरह फेल रहा.


कैराना में मिली इस सफलता को देखते हुए आने वाले चुनावों में भी महागठबंधन की तरफ से तरफ से इस तरह के प्रयोग देखने को जरूर मिलेंगे. देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी क्या इस तरह के प्रयोगों का सामना करने के लिए कोई नई रणनीति बना पाती है या एक बार फिर 2014 की तर्ज़ पर ही पीएम मोदी के चेहरे को ही केंद्र में रखकर रणनीति बनाएगी और जीत की उम्मीद करेगी.