नई दिल्ली: तीन तलाक मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू कर दी. जजों ने कहा कि वो ये देखना चाहेंगे कि एक साथ 3 तलाक बोलना यानी तलाक ए बिद्दत इस्लाम का मौलिक हिस्सा है या नहीं. कोर्ट ने ये भी कहा कि वो मुस्लिम मर्दों को 4 शादी की इजाज़त पर फ़िलहाल सुनवाई नहीं करेगा.


गर्मी की छुट्टी में संविधान पीठ विशेष रूप से सुनवाई के लिए बैठी है. छुट्टी के बावजूद कार्रवाई देखने के लिए कोर्ट में काफी भीड़ जुटी. ठीक साढ़े 10 बजे पांचों जज- चीफ जस्टिस जे एस खेहर, कुरियन जोसफ, रोहिंटन नरीमन, यु यु ललित और एस अब्दुल नज़ीर अपनी कोर्ट में दाखिल हुए.

कुछ वकीलों ने सुनवाई का विरोध करते हुए इसे मजहबी मामले में गैरज़रूरी दखल बताया. कोर्ट ने सुनवाई रोकने से मना करते हुए कहा कि वो ये देखेगा कि 3 तलाक और हलाला इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं.

चीफ जस्टिस जे एस खेहर ने कहा, "अगर ये प्रावधान इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है तो ये धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में आएगा." साफ है कि महिलाओं के समानता और सम्मान के हक पर सुनवाई करने बैठी अदालत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को भी अहमियत दे रही है.

गौरतलब है कि इस मसले पर 2 जजों की बेंच ने 2015 में संज्ञान लिया था. उस बेंच ने तलाक ए बिद्दत, हलाला और मर्दों को एक साथ 4 पत्नी रखने की इजाज़त पर सुनवाई को ज़रूरी बताया था. लेकिन आज संविधान पीठ के सदस्य जस्टिस जोसफ ने कहा, "हम सिर्फ 3 तलाक पर सुनवाई करेंगे. हलाला इससे जुड़ा है, इसलिए ज़रूरत पड़ने पर इस पर भी सुनवाई होगी. बहुविवाह पर सुनवाई नहीं होगी."

कोर्ट ने सुनवाई के लिए कुल 6 दिन का वक़्त देने की बात कही है. कोर्ट ने कहा- 2 दिन 3 तलाक विरोधी बोलें, 2 दिन समर्थक. इसके बाद 1-1 दिन एक-दूसरे की बात का जवाब दें. कोर्ट ने वकीलों को आगाह किया वो दलीलों का दोहराव न करें. यानी एक पक्ष जो बातें रख चुका है, उन्हें दोबारा रख कर अदालत का समय बर्बाद न करें.

बहस की शुरुआत 3 तलाक पीड़िता शायरा बानो के वकील अमित सिंह चड्ढा ने की. उन्होंने कहा, "धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की भी सीमाएं हैं. कोर्ट को समानता और सम्मान से जीवन बिताने के अधिकार को ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए." उन्होंने आगे कहा, "3 तलाक धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. अनिवार्य हिस्सा उसे माना जाता है जिसके हटने से धर्म का स्वरूप ही बदल जाए. पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे मुस्लिम देश भी इसे बंद कर चुके हैं."

कोर्ट में मौजूद केंद्र की वकील पिंकी आनंद ने कहा कि 21 मुस्लिम देशों में तलाक ए बिद्दत खत्म किए जाने की बात सही है. इस पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने दखल देते हुए कहा, "हर देश में संसद ने कानून बना कर ऐसा किया है. भारत में कोर्ट इस पर सुनवाई कर रही है. मसला संसद के पास जाना चाहिए."

सुनवाई कुछ आगे चलने के बाद एक बार फिर ये मसला उठा. जमीयत उलेमा ए हिन्द के वकील राजू रामचंद्रन समेत कुछ और वकीलों ने मसला संसद के पास भेजने बात कही. उन्होंने कहा, "मौजूदा सरकार 3 तलाक खत्म करने की वकालत कर रही है. वो संसद में कानून क्यों नहीं लाती? अदालत के जरिए ये काम क्यों हो रहा है?"

इस पर कपिल सिब्बल ने फिर से अपनी मांग दोहराई. सरकार को घेरते हुए उन्होंने कहा, "सरकार को संसद में कानून लाने से कौन रोक रहा है?" चीफ जस्टिस ने हंसते हुए कहा, "शायद आप."

आज 3 तलाक के विरोध में मुस्लिम महिला आंदोलन के वकील आनंद ग्रोवर और बेबाक कलेक्टिव की वकील इंदिरा जयसिंह ने भी दलीलें रखीं. इंदिरा ने कहा, "पर्सनल लॉ में तलाक का हर प्रावधान मर्दों के पक्ष में है. इन्हें रद्द किया जाना चाहिए. तलाक कोर्ट के जरिए ही मिलना चाहिए. शरिया अदालतें बिना कानूनी मंजूरी के चल रही हैं. महिलाओं को इनसे मुक्त करना चाहिए."

केंद्र के वकील तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि सरकार लैंगिक समानता और महिलाओं के गरिमापूर्ण जीवन के पक्ष में है. सरकार का मानना है कि 3 तलाक से इनका हनन होता है. सोमवार को एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी विस्तार से केंद्र का पक्ष रखेंगे.

इस मामले में कुल 30 पक्ष हैं. इनमें 3 तलाक का विरोध कर रही पीड़ित महिलाओं के अलावा इसका समर्थन कर रहे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा हिंद जैसे संगठन शामिल हैं. केंद्र सरकार के साथ ही मुस्लिम महिला आंदोलन, ऑल इंडिया मुस्लिम वीमेन पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठन भी अपनी दलीलें रखेंगे.