नई दिल्ली: ब्रिटेन की अदालत से आज पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है. ब्रिटिश अदालत ने हैदराबाद के निजाम के करीब 306 करोड़ रुपये भारत को देने का फैसला किया है. ब्रिटेन की अदालत ने पाकिस्तान के दावों को खारिज किया है और कहा है कि इस धन पर निज़ाम के उत्तराधिकरियों और भारत का हक है. अदालत ने पाकिस्तान के दावों को खारिज कर इसे प्रक्रिया का दुरुपयोग बताया. अदालत ने कहा कि हैदराबाद निज़ाम के उत्तराधिकरियों और भारत का इस धन पर हक है.


लंदन की रॉयल कोर्ट्स ऑफ जस्टिस में दिये गये फैसले में जस्टिस मार्कस स्मिथ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ''सातवें निजाम को धन के अधिकार मिले थे और सातवें निजाम के उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाले जाह भाइयों तथा भारत को धन का अधिकार है.'' फैसले में कहा गया है कि किसी दूसरे देश से जुड़ी गतिविधि के सिद्धांत और गैरकानूनी होने के आधार पर प्रभावी नहीं होने के तर्क के आधार पर इस मामले के अदालत में विचारणीय नहीं होने की पाकिस्तान की दलीलें विफल हो जाती हैं.


भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से शुरू हुई खजाने की कहानी
निजाम के इस 306 करोड़ के खजाने की कहानी के तार देश की आजादी और भारत पाकिस्तान बंटवारे से जुड़े हुए हैं. ये कहानी शुरू होती है 1947 से जब देश का बंटवारा हो चुका था. सिर्फ 3 रियासतें (जम्मू कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़) छोड़कर तमाम रियासतों का भारत में विलय हो चुका था या कराया जा चुका था. लेकिन हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान अपनी रियासत को आजाद मुल्क बनाने की जुगत में थे. निजाम के पूरी कोशिश की कि वो हैदराबाद को अलग मुल्क बनवा लें लेकिन देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के कड़े रुख को देखते हुए वो सुरक्षित रास्ता भी तलाश रहे थे.


इसी तनाव के माहौल के बीच हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान ने 10 लाख 07,940 पाउंड लंदन के नैटवेस्ट बैंक में जमा करवा दिए. ये पैसे ब्रिटेन में पाकिस्तान के तत्कालीन उच्चायुक्त हबीब इब्राहिम रहमतुल्ला के खाते में जमा करवाए गए. उस समय हैदराबाद रियासत के निज़ाम मीर उस्मान अली खान दुनिया की सबसे अमीर शख्सियत थे. हैदराबाद में उनके महल और बाद में सरकार के बनाए म्यूजियम उसी वैभव की निशानियां हैं.


बेशकीमती हीरे को पेपरवेट की तरह इस्तेमाल करते थे निजाम
हैदराबाद के आखिरी निजाम की अमीरी के किस्से दूर-दूर तक मशहूर थे. कहा जाता है कि आखिरी निजाम के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा हीरा था, जिसका इस्तेमाल वो महज पेपरवेट के तौर पर करते थे. दावे हैदराबाद के निजाम के पास असली मोतियों का इतना बड़ा खजाना था कि अगर उन्हें सड़क पर बिछा दें तो कई किलोमीटर तक मोतियां बिछ जाएं.


साल 1940 में टाइम मैगजीन में छपा था निजाम का फोटो
हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान का जलवा ऐसा था कि 1940 के दशक में दुनिया की प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन के कवर पेज पर उनका फोटो छपा था. तब उनकी संपत्ति अरबों डॉलर में थी. इंग्लैंड की महारानी क्वीन एलिज़ाबेथ की शादी में हैदराबाद के निजाम ने उन्हें तोहफे के तौर पर ताज और नेकलेस दिया था.


निजाम की दौलत पर डोल गई पाकिस्तान की नीयत
निजाम की दौलत पर पाकिस्तान की नीयत डोल गई, इसकी वजह ये भी थी कि तब पाकिस्तान भी नया-नया बना था, उसे पैसों की कमी थी. लिहाजा निजाम के पैसे पर उसकी ऐसी गिद्ध नजरें पड़ीं कि बाद में वो उस पैसे पर अपना हक जताने लगा. 1948 में लंदन में पाकिस्तान के उच्चायुक्त निजाम की उस बड़ी रकम को निकाल नहीं पाए. बाद में आखिरी निज़ाम ने उस पैसे को वापस करने के लिए लिखा तो पाकिस्तान ने इनकार कर दिया. इसके बाद मामला ब्रिटेन की कोर्ट में पहुंच गया. पाकिस्तानी उच्चायुक्त बनाम सात अन्य का मामला बना, इन अन्य पक्षों में निजाम के वंशज, भारत सरकार और भारत के राष्ट्रपति भी शामिल हैं.