(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Sangrur: पंजाब के संगरूर में जर्मन कंपनी ने शुरू किया बायोगैस प्लांट, किसानों को मिलेगा पराली जलाने से छुटकारा
पराली कई हफ्तो तक जलते रहते है. इनका विषैला धुआँ दिल्ली NCR को चारों ओर से फैलता है. इसलिए पंजाब के संगरूर में एक जर्मन कम्पनी ने अपना एक बायोगैस प्लांट शुरू किया है.
Sangrur: दिल्ली में सर्दियों की आहट के साथ ही दम घोंटने वाली प्रदूषित हवा का असर शुरू हो जाता है. सरकारी प्रतिबंध के बावजूद, हर साल की तरह इस बार भी हरियाणा और पंजाब में बड़े पैमाने पर पराली जलाई जा रही है. किसानों की अपनी वाजिब वजहें हैं लिहाजा सरकार भी अधिक कड़ाई करने से बचती है. ऐसे में इस समस्या के हल के रूप में एक नई पहल पंजाब के संगरूर में शुरू हुई है. पंजाब के संगरूर में एक जर्मन कम्पनी ने अपना एक बायोगैस प्लांट शुरू किया है जो सिर्फ पराली की खपत पर आधारित है.
पराली का धुआं दिल्ली NCR में फैलता है
कुरुक्षेत्र से लेकर करनाल तक फैले खेतों में कई हफ्तों तक पराली जलती रहती है. यही हाल पूरे हरियाणा और पंजाब में नजर आता है. इनका विषैला धुआं दिल्ली NCR को घेरता है. दिल्ली में वायु प्रदूषण के संकट को देखते हुए देशभर में पराली जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. लेकिन किसानों का कहना है कि उनके पास पराली यानी धान की कटाई के बाद बचे हुए ठूंठ को काटने का कोई किफायती संसाधन नहीं है. ऐसे में संगरूर में कंप्रेस्ड बायोगैस प्लांट एक उम्मीद बन कर सामने आया है. विशाल CBG प्लांट में बड़े पैमाने पर पराली का कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल होता है.
कैसे काम करता है बायोगैस प्लांट?
बायो गैस प्लांट में पराली के भारी गट्ठरों को कन्वेयर बेल्ट में रख कर इस क्रशिंग मशीन के मदद से बुरादे के रूप में बदल लिया जाता है. फिर इस बुरादे को विशालकाय कंटेनरों में गोबर के पानी के साथ मिला कर रखा जाता है ताकि बैक्टीरिया के माध्यम से बायोगैस बनाई जा सके. इस तरह पराली से बायो गैस बनती है जिसे कंप्रेस्ड करके CNG की तरह शुद्ध ईंधन के रूप में ठीक उसी तरह इस्तेमाल किया जाता है जैसे CNG का उपयोग किया जाता है. ये बायोगैस दाम में CNG के बराबर होती है लेकिन बायोगैस होने के कारण ये CNG की तुलना अधिक एनवायरनमेंट फ्रेंडली होती है. इस प्लांट में बायोगैस बनने के बाद बचा हुआ अवशेष अच्छी खाद के रूप में इस्तेमाल होता है.
पराली के बदले किसानों को मिलते है पैसे
प्लांट में पराली को रखा जाता है. जो कि खेतों से ही रोल करके लाए गए गट्ठरों के रूप में यहाँ जमा करते हैं. गट्ठरों को खेतों में ही तैयार करने और प्लांट तक लाने की पूरी जिम्मेदारी प्लांट के मैनेजमेंट की ओर से उठाई जाती है. पराली के बदले किसानों को उचित भुगतान भी किया जाता है.
पराली जलाने के मामले में आई कमी
पंजाब और हरियाणा के किसान अक्टूबर और नवंबर में बड़ी संख्या में खेतों में पराली जलाते हैं.पंजाब, हरियाणा, दिल्ली NCR में 15 सितंबर से लेकर 16 अक्टूबर के बीच पराली जलाने के करीब 1695 मामले सामने आए. इसी दौरान पिछले साल ये मामले 3431 थे यानी पराली जलाने के मामलों में कमी जरूर आई है, संगरूर बायोगैस प्लांट इसकी एक प्रभावी वजह बनकर सामने आया है.
कंप्रेस्ड बायोगैस तैयार करने की क्षमता
इस बायोगैस प्लांट में 300 टन पराली से रोजाना 33 टन कंप्रेस्ड बायोगैस तैयार करने की क्षमता है. फिलहाल 702 टन पराली से 8 टन बायोगैस बनाई जाती है. बायो गैस प्लांट अपनी पूरी क्षमता में नहीं चल पा रहा है. वहीं पेट्रोलियम मंत्रालय का कहना है कि जल्द ही प्लांट से पूरी 33 टन गैस रोजाना की खरीद की जाएगी. प्लांट में अतिरिक्त गैस को स्टोर करने की सुविधा नहीं होती. ऐसे में अगर तैयार बायो गैस की पूरी खरीद नहीं की जाती तो अतिरिक्त गैस को हवा में ही ऊंचाई पर जला कर खत्म करना पड़ता है.
CNG की तरह हो सकता है उपयोग
पराली से बनी कंप्रेस्ड बायोगैस CNG की तरह गाड़ी चलाने, LPG की तरह खाना पकाने और इंडस्ट्री के इस्तेमाल में लाई जा सकेगी. फिलहाल प्लांट में बन रही CBG को इंडियन ऑयल के पंप के माध्यम बेचा जा रहा है. पराली से कंप्रेस्ड बायोगैस बनाने के बाद इसका वेस्ट भी खाद बनकर बाहर निकल रहा है. जो किसानों के लिए एक बेहतर खाद होगी और इसकी कीमत भी बाकी केमिकल खाद से 30 से 40 फीसदी कम होगी. करीब 23 एकड़ में बना ये प्लांट 600 से ज्यादा किसानों को रोजगार भी देगा.
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