जयपुरः कोरोना के लगातार बढ़ते खतरे के बीच ही अब राजस्थान कांग्रेस में सियासी मंथन होगा. इस मंथन से निकलने वाले अमृत का प्रसाद किन विधायकों को मंत्री पद तक पहुंचा देगा, ये तो आने वाले वक़्त में तय होगा लेकिन एक के बाद एक मंत्री और विधायक जिस तरह कोरोना संक्रमित हो रहे है ,उसे देखते हुए ये तो साफ है कि प्रदेश के नए प्रभारी महासचिव अजय माकन को कांग्रेसी गुटबाजी के साथ कोरोना के खतरे से भी निपटना होगा.


सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच जो तलवारें खिचीं थी उसको पूरे देश ने देखा. एक महीने से ज़्यादा वक्त तक राजस्थान की सरकार होटल और रिजोर्ट्स से चली और आख़िर में आलाकमान के दख़ल के बाद गहलोत और पायलट ने अपनी अपनी तलवारें म्यान में रखीं. तलवारें म्यान में भले ही पहुंच गईं हों लेकिन इसका ये मतलब क़तई नहीं निकाला जाना चाहिए कि युद्ध ख़त्म हो गया है. लड़ाई अभी जारी है और अजय माकन के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि कैसे हो युद्ध विराम.राजस्थान विधानसभा के 14 अगस्त से शुरु हुए सत्र के बाद से अब तक कई विधायक कोरोना संक्रमित हो चुके हैं. अब पूर्व मंत्री रमेश मीणा और परिवहन मंत्री प्रताप सिंह भी कोरोना पोज़िटिव आए हैं.



अजय माकन रविवार शाम को जयपुर आ गए और वो अब अगले कुछ दिन राजस्थान में रहकर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोलेंगे लेकिन राज्य के अन्य ज़िलों से बड़ी संख्या में जयपुर आ रहे नेताओं और कार्यकर्ताओं से मुलाक़ात का ये सिलसिला कही कोरोना का ख़तरा ज़्यादा ना बढ़ा दें, इस पर विचार जरूरी है.


माकन पर सियासी संतुलन बनाने की जिम्मेदारी

कोरोना के बचाव के साथ साथ अजय माकन के लिए सियासी संतुलन क़ायम करना एक बड़ी ज़िम्मेदारी है. गहलोत गुट के पास बिना सचिन ख़ेमे के समर्थन के बाद भी सरकार बचाने लायक संख्या है, ये बात अब कांग्रेस कहर छोटा-बड़ा नेता जानता है. इसलिए अजय माकन गहलोत गुट को लेकर कई भी भ्रम में नहीं होंगे, लेकिन सचिन पायलट ख़ेमा ये जरूर चाहेगा कि सियासी संकट के निपटारे के फ़ार्मूले में उनके गुट का ज़्यादा फ़ायदा कैसे हों. यानि सम्भावित मंत्रिमंडल विस्तार में सचिन समर्थक विधायक ज़्यादा से ज़्यादा कैसे आयें. बोर्ड, निगम में होने वाली नियुक्तियों में सचिन ख़ेमे के लोग ज़्यादा मौक़ा पा सकें. लेकिन ये सब कुछ इतना आसान नहीं होगा.


सीएम अशोक गहलोत के बारे में सब जानते है कि वो कभी दबाव की राजनीति नहीं करते इसलिए माकन को बहुत सोच- समझ कर अपनी रिपोर्ट आलाकमान तक पहुंचानी होगी. माकन भी जानते है कि दोनो गुटों का संतुष्ट करके सुलह का रास्ता निकालना इतना आसान नहीं होगा.


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