दिल्ली: कोरोना काल में वकीलों का काम प्रभावित हुआ है, उन्हें अब पहले की तरह क्लाइंट नहीं मिल रहे हैं. लेकिन इस महामारी के दौर में उन्हीं कोर्ट कचहरियों में काम कर रहे वकील काम के बंद होने से परेशानियों से जूझ रहे हैं. रोहिनी कोर्ट के जूनियर एडवोकेट संजीव कुमार का कहना है कि वो 2.5 साल से प्रैक्टिस कर रहे हैं. एक पेरशानी नहीं है, जब किसी भी व्यक्ति के पास काम नहीं होगा तो खर्चे कैसे पूरे होंगे.
जो पैसे थे वो खर्च हो गए. कमरे का किराया, डेली नीड्स, सफर का किराया, बताने लायक चीज़ें तक नहीं हैं. दोस्तो से कर्ज़ लेकर गुज़ारा कर रहें हैं. स्थिति बेहत ज़्यादा खराब है. मैं एक अकेला वकील नहीं हूं. 70-80% वकील परेशान हैं. फाइनेंसियल हेल्प वकीलों को देनी चाहिए. मैं सरकार से एग्री करता हूं कि लॉकडाउन रहना चाहिए, लेकिन मुआफ़्ज़े के तौर पर एडवोकेट्स को सहायता मिलनी चाहिए.
वकील रोहित पाठक का कहना है कि वो 2-3 साल से प्रैक्टिस कर रहे हैं. पानीपत के रहने वाले हैं, कोरोना में जो क्लाइंट हैं वो भी नहीं आ रहे हैं. घर के खर्चे निकालना मुश्किल हो गया है. वर्चुअल में कनेक्शन की दिक्कतें आ रही हैं, जिसकी वजह से आम लोगों को तक दिक्कतें आती है तो पैसे भी नहीं मिल पाते हैं.
वहीं, वकील संजू का कहना है कि कोर्ट में काम नहीं हो रहा है. क्लाइंट्स नहीं आ रहे हैं. फीस लेना मुश्किल हो गया है, क्योंकि क्लाइंट्स कहते हैं कि कोर्ट बंद हैं. कहने के लिए काम हो रहा है. ऑनलाइन अकाउंट्स नहीं बन पा रहे हैं. सिस्टम में दिक्कत है. ई-फाइलिंग नहीं हो पा रही है.
वकील रीशू का कहना है कि मेरे घर में मैं, मेरी पत्नी और एक बेटी है. अगले महीने हमारा दूसरा बच्चा होने वाला है. मेरी पत्नी एक कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर टीचिंग करती थीं लेकिन इस लॉकडाउन में उनका कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया गया. जिस कारण आमदनी नहीं हो पा रही है. साथ ही ना ही मेरे केसेस से कुछ कमाई हो पा रही है. अगले महीने बच्चा होगा तो कैसे हम अपना खर्चा चलाएंगे. सिर्फ अर्जेंट मैटर्स लिए जा रहे हैं. और कोर्ट ही तय करते हैं की अर्जेंट क्या होता है. प्रॉपर रोडमैप होना चाहिए, प्रोटोकॉल बनाने चाहिए. मॉल खुल सकते हैं तो कोर्ट में आने से ही क्यों कोरोना होगा.
रोहिनी डिसट्रिक्ट कोर्ट के वकील कदम खरब ने कहा कि वो 2014 से प्रैक्टिस कर रहे है, डिस्ट्रिक्ट और हाई कोर्ट में केसेस देख रहे है. कोरोना जैसी बीमारी ऐसी है जो हमने क्या हमारे दादा पर दादाओं ने नहीं देखी होगी. कोर्ट मिड मार्च से बंद है. तब से लेकर आज तक काम ठप पड़े है. वर्चुअल हियरिंग शुरू हुई है लेकिन लो लेवल पर काम शुरू हुआ है. कोरोना की वजह से एडवोकेट्स कम्युनिटी पूरे देश मे बहुत बुरी तरह से त्रस्त है. हमारी कमाई क्लाइंट्स की हियरिंग के ज़रिए होती है. रिलीफ दिलाने पर पेमेंट होती है. कोई फिक्स्ड पेआउट नहीं होता. जब क्लाइंट्स ही नहीं हैं तो समस्यायें आ रहीं है. मैंने पूरे लॉकडाउन में एक पैसा नहीं कमाया है.
एडवोकेट्स पढ़ी लिखी कम्युनिटी मानी जाती है. लीगल सिस्टम का पिलर माने जाते हैं, अब जब यहां यह दिक्कत होती है तो सरकार में से कोई भी आगे आकर कोई भी मदद नहीं करता है. 70-80% एडवोकेट्स कर्ज़ में डूबे हुए हैं.
मेरी पत्नी प्रोफ़ेसर हैं तो फिर भी मेरी स्थिति उतनी खराब नहीं है. लेकिन मेरे कई भाई ऐसे भी हैं जो परेशानियों से त्रस्त हैं. हमारी जो रजिस्टर्ड बॉडी है उससे बार कौंसिल ऑफ दिल्ली कहा जाता है. जिस कोर्ट में हम काम करते हैं वहां एक एसोसिएशन होती है, बार एसोसिएशन. BCD ने एक बारी 5000 रुपये तक ज़रूरतमंद एडवोकेटस को दिया. हमारे रोहिणी कोर्ट में भी 6000 रुपये तक दिया गया. हमारी यूनिटी ही हमारी स्ट्रेन्थ है. लेकिन यह भी अपने आप में उतना नहीं है कि सब की मदद हो पाए. कई एडवोकेट्स ने एक पोर्टल तैयार किया और ज़रूरतमंद एडवोकेट्स को ज़रूरत चीज़ें पहुंचाई.
एडवोकेट्स का प्रेसक्राइब्ड कंडक्ट होता है. एडवोकेट एक्ट के तहत एक एडवोकेट कोई और फाइनेंसियल एक्टिविटी नहीं कर सकते. हम लोगों को ऑफिसर्स ऑफ द कोर्ट कहा जाता है लेकिन हम ही आज परेशान हैं. कोर्ट्स को यदि खोला जाता है तो संक्रमण फैलने का खतरा बड़ जाता है. लेकिन यदि कोरोना अब जीवन का हिस्सा बन गया है और लंबे समय तक कही नही जाने वाला.
सरकार को एसओपीएस बनाने पड़ेंगे. उसी के साथ जो समय बीता उसमें जितने कर्ज़ में वकील डूबे हुए हैं वो कैसे रिकवर होगा? तो सरकार को कम से कम 20000 रुपये फाइनेंसियल असिस्टनस देनी चाहिए, खास कर की उन्हें जिन्हें 2 साल या उससे ज़्यादा हो चुके हैं प्रैक्टिस करते हुए.
रोहिणी कोर्ट बार एसोसिएशन, अध्यक्ष महावीर शर्मा का कहना है कि, एडवोकेट्स की किसी तरह की कोई सोशल सिक्योरिटी नहीं है. ना राज्य सरकार, ना केंद्रीय सरकार किसी ने मदद नहीं की है. लगभग 80% वकील कर्ज़े में हैं. एडवोकेट्स ने ही एक दूसरे की मदद की है. एसोसिएशन, बार काउंसिल या इंडिविजुअल स्तर पर एडवोकेट्स ने एक दूसरे की मदद की है. सब खुलता जा रहा है लेकिन कोर्ट अभी भी बंद हैं.
कुछ समय बाद वर्चुअल सिस्टम भी शुरू किया लेकिन वो भी कॉलेप्स हो चुका है, सिस्टम काम नहीं करता हैं. टेक्नोलॉजी नहीं है, सिस्टम तैयार नहीं किया गया है और हर वकील सक्षम भी नहीं है कि वह वर्चुअल हियरिंग अटेंड कर पाए. सभी को, चाहे फिर वह मज़दूर हो, किसान हों, ऑटो रिकशा ड्राइवर हों, लगभग सरकार ने सभी को मुआफ़ज़ा दे दिया है लेकिन एडवोकेट्स की ऐसी कोई मदद नहीं की गई है.
बहुत सारे वकील रेंट पर रहते हैं, बच्चे स्कूलों में भर्ती हैं, उसकी फीस भी माफ नहीं की गई है. बेसिक सर्वाइवल की लड़ाई है. हमने लगभग 11000 रुपये ज़रूरतमंद एडवोकेट्स तक पहुंचाए हैं, लेकिन इसमें कितनी ही मदद हो पाएगी? एक सिस्टम होना चाहिए था जो कि सरकार ने तैयार बिल्कुल भी नहीं किया.
कोरोना से पहले दिल्ली सरकार ने 50 करोड़ रुपये की सोशल सिक्योरिटी एडवोकेट्स को देने की बात की थी, जो आज तक इम्पलीमेंट नहीं किया गया है. अगर वह इम्पलीमेंट हो गया होता तो कम से कम इतनी मुश्किल नहीं होती. बहुत पहले इम्पलीमेंट हो जाना चाहिए था लेकिन अभी तक नहीं हुआ.
एडवोकेट समुदाय ने आपस मे ही बुनियादी आवश्यकताएं किट बांटी गई, जिसको कैश की ज़रूरत थी उनको वेलफेयर फण्ड से कैश दिया गया. स्कूल की फीस के लिए भी पैसे दिए. वकीलों को पर्सनल लोन तक नहीं मिलते. लोन लेने जाए तो कहा जाता है कि हम सिर्फ सैलरी करार को लोन देते हैं, वकीलों को नहीं दे सकते.
वकीलों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है कि जैसे जी सकते हो जियो
हम चाहते हैं फिजिकल कोर्ट खुल जाए. राज्य और केंद्रीय सरकार वकीलों को आर्थिक मदद दें. 60% एडवोकेट्स के ऊपर पर्सनल लोन चढ़ा हुआ है. हमने दोनों सरकारों को कई चिट्ठियां लिखी लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली.
14 साल से प्रेक्टिस कर रहे वकील प्रदीप खतरी का कहना है कि जबसे यह समस्या पैदा हुई है तब से सिस्टम कॉलेप्स हो चुका है. आज के टाइम में दिल्ली में अभी 90000 से 1 लाख एडवोकेट्स एनरोलड हैं. उसमें से लगभग 80% लॉयर्स ऐसे हैं जिन्हें रोज़ कोर्ट आकर डेली प्रोसीडिंग्स करनी पड़ती है जिससे उनका गुज़ारा हो सके. कोरोना में वह ऐसा कर नहीं कर पा रहे हैं जिसकी वजह से वह बहुत ही मुश्किलों से जूझ रहे हैं.
केसेस मार्क नहीं हो रहे हैं, जुडिशल ऑफ़सर्स की दिक्कत है, क्लाइंट्स की दिक्कत है. सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं दी गई है. कोरोना काल मे लॉयर्स फॉर लॉयर्स शुरू किया गया है. मैं 14 साल से प्रैक्टिस कर रहा हूं, और उनकी परेशानियां समझ सकता हूं. जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो मुझे बहुत से वकीलों के फोन आये और हर किसी की कोई न कोई दिक्कत थी. तो हमने एक पोर्टल बनाने की कोशिश की जिससे हम घर बैठे हुए अपने एडवोकेट्स की मदद कर पाएं. उनकी बेसिक रिक्वायरमेंट्स को उनके घर तक पहुंचा सके. लेकिन जैसे जैसे लॉकडाउन बढ़ने लगा उसके बाद हमने पोर्टल से फॉर्म निकाला जो भी लॉयर ज़रूरतमंद हो तो उनके घर तक ज़रूरी सामान पहुंचाया गया जाएगा. फिर कुछ आमॉन्ट उनके खाते में ट्रांस्फर करवाया गया.
लॉयर्स की सोशल सेक्यूरिटी के लिए सरकार को कुछ ना कुछ करना चाहिए. हर फर्टेर्निटी को सरकार कुछ न कुछ बेनिफिट दे रही है, लेकिन हम ही हैं जिन्हें ऐसे कोई बेनिफिट इस मुश्किल घड़ी में नहीं दिए हैं.
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