Independence 20202: हमारा देश आजादी के 75 साल पूरे कर रहा है. जब हिंदुस्तान गुलाम था तब तक ब्रिटिश औपनिवेशिक ताकत देश की अकूत संपत्ति को अपने यहां लेकर जाती थी. भारत गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी से जूझ रहा था. दुनिया को इस बात का जरा भी इल्म नहीं था कि ऐसा देश जो आर्थिक रूप से दुनिया में बहुत पिछड़ चुका है, उसके यहां ऐसे दिमाग पाए जाते हैं जिनकी धमक विश्व के पटल पर गूंजेगी. एक ऐसे ही महान वैज्ञानिक थे डॉ. सीवी रमन जिन्होंने अपनी महान खोज का लोहा पूरी दुनिया को मनवाया. इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया. अपने इस आर्टिकल में हम उन्हीं के बारे में आपको बताएंगे- 


डॉ CV Raman


तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में 7 नवंबर 1988 को जन्मे डॉ. सीवी रमन का पूरा नाम चन्द्रशेखर वेंकटरमन था. उन्होंने 28 फरवरी 1928 को कोलकाता में एक ऐसी खोज की जिसे उन्हीं के नाम से 'रमन प्रभाव' कहा जाता है. उनकी इस खोज ने आजादी से पहले ही भारतीयों के दिमाग का लोहा मनवा दिया. 


'रमन प्रभाव' के बारे में -


महान वैज्ञानिक सीवी रमन द्वारा खोजा गया 'रमन प्रभाव' फोटोन कणों के लचीले वितरण के बारे में है. रमन प्रभाव के अनुसार, जब कोई एक रंग या वर्ण का प्रकाश द्रवों और ठोस से होकर गुजरता है तो उसमें आपतित प्रकाश के साथ बेहद कम तीव्रता का कुछ अन्य वर्णों का प्रकाश देखने में भी आता है. यह विज्ञान को बदल देने वाली खोज रही. इसी के चलते तमाम रासायनिक यौगिकों की रासायनिक संरचना निश्चित की गई. इस खोज ने विज्ञान का दृष्टिकोंण ही बदल डाला. उनकी इस खोज के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया था.


सी.वी.रमन की खोज को समर्पित है राष्ट्रीय विज्ञान दिवस-


28 फरवरी 1928 को कोलकाता में सी.वी रमन द्वारा की गई रमन प्रभाव की महान खोज की गई थी. इस तारीख को यादगार बनाते हुए और देश में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए 1987 से हर साल 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया. इस दिन सीवी रमन की महान खोज को याद करने के साथ-साथ विज्ञान को स्कूल स्तर से लेकर शीर्ष शैक्षिक स्तर और अलग-अलग विभागों सहित सरकार के स्तर तक बढ़ावा देने पर जोर दिया जाता है.


ये भी पढ़ेंः


Independence Day 2022: ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिला देने वाला 1857 का संग्राम, कहा इसे गदर गया पर ये था आजादी की पहली जंग का आगाज