Aditi Gupta Founder Of Menstrupedia: जिंदगी में कुछ भी आसान नहीं होता. आपकी सोच और आपका हौसला ही मुश्किल से मुश्किल काम को भी आसान बनादेता है. ऐसी ही सोच और जज्बे के बल पर अदिति गुप्ता (Aditi Gupta) ने अपने लिए एक अलग रास्ता चुना. उन्होंने नियम बदलने की कोशिश की, समाज को ऐसे विषय पर जगाने की कोशिश की जो बेहद जरूरी था, लेकिन जिस पर चर्चा हमेशा दबे शब्दों में होती रही. अदिति अपनी कोशिशों में कामयाब भी हुई.
उन्होंने लड़कियों और महिलाओं की माहवारी यानी मासिक धर्म या पीरियड्स (Menstrual Cycle) जैसे विषय को अपनी मेंस्ट्रुपीडिया कॉमिक (Menstrupedia Comic) के जरिए इतना सहज कर डाला कि भारत में टैबू माने जाने वाले इस विषय पर लोग खुलकर बात करने लगे. यही नहीं अदिति आंत्रप्रेन्योरशिप (Entrepreneurship) यानि उद्यमशीलता में नया कीर्तिमान स्थापित किया. बीबीसी की भारत की100 दमदार औरतों में अदिति का नाम भी उद्यमशीलता में ऊंची उड़ान सेक्शन में दर्ज है. फोर्ब्स इंडिया (Forbes India) 30 अंडर 30 साल 2014 की सूची में उनका नाम था. नारी शक्ति (Nari Shakti) की आज की हमारी कड़ी अपने काम का लोहा मनवाने वाली इसी युवा उद्यमी अदिति गुप्ता के नाम हैं.
अपनी आपबीती ने जगाया
अदिति गुप्ता झारखंड के गढ़वा जिले के एक मध्यवर्गीय रूढ़िवादी परिवार में पली-बढ़ीं. स्वाभाविक है कि हर आम लड़की तरह ही उन्हें भी मासिक धर्म को लेकर परिवार के कायदों को मानना पड़ा. शायद यही वजह रही कि उनके लिए ये मुद्दा इतना बड़ा हो गया कि उन्हें बिजनेस आइडिया भी आया तो वो भी माहवारी पर समाज को जागरूक करने से जुड़ा हुआ रहा. उन्हें 12 साल की उम्र में पहला पीरियड हुआ.लेकिन मासिक धर्म के बारे में सही जानकारी15 साल की उम्र में कक्षा 9 में आने पर ही हो पाई.
उनकी मां ने पीरियड्स में केवल ढाई दिन के बहाव के लॉजिक के चलते उन्हें ढाई मग पानी नहाने के लिए दिया. इस दौरान मां की तरफ से हिदायत दी गई कि वह परिवार के दूसरे सदस्यों के बेड पर न बैठें. उन्हें इन दिनों में पूजा घर में न जाने से लेकर अचार खाने -छूने तक की मनाही रहती. पूरे सात दिनों बाद अदिति को सिर से नहाने की इजाजत थी. कपड़े भी अलग से धोने और सुखाने पड़ते थे. इसके साथ ही पीरियड्स के बाद उस दौरान इस्तेमाल किए बिस्तर की चादर भी उन्हें धोनी पड़ती.
जब झिझकी थीं सेनिटरी पैड खरीदने में
एक इंटरव्यू में अदिति ने कहा कि उन्हें तब भी पीरियड्स को लेकर ये टैबू पसंद नहीं थे, लेकिन तब इसे लेकर तब उनके पास बायोलॉजिकल और लॉजिकल जानकारी नहीं थी. घर में मासिक धर्म पर बातें तो होतीं, लेकिन दबी-छुपी आवाजों में जैसे कि ये कोई बुरी बात हो. यही नहीं उनके स्कूल में बायोलॉजी की क्लास में टीचर ने चाइल्ड बर्थ का चैप्टर तक पढ़ाने से गुरेज किया. वह कहती हैं कि तब लड़कियां सेनिटरी पैड्स भी नहीं करती. पुराने हो चुके कपड़ों को पैड्स की तरह इस्तेमाल किया जाता. कामोबेस आज भी महिलाओं का एक बड़ा तबका कपड़े इस्तेमाल कर अपनी महावारी निपटा रहा है.
प्रारंभिक शिक्षा के बाद जब अदिति को एक दूसरे शहर के बोर्डिंग स्कूल में डाला गया तब उन्हें पता चला कि वह कपड़े की जगह सेनिटरी नैपकिन भी ले सकती हैं. जब वह घर में थी तो उन्हें बाजार में उपलब्ध सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं थी,क्योंकि उन्हें खरीदने से परिवार की गरिमा को ठेस पहुंचती थी. इस विषय को लेकर घर से ही अदिति के दिल-दिमाग में इतने टैबू भरे हुए थे कि पहली बार मेडिकल स्टोर से सेनिटरी नैपकिन खरीदने तक में झिझक हुई. पहली बार 15 साल की उम्र में उन्होंने सेनिटरी पैड का इस्तेमाल किया.
कैसे आया मेंस्ट्रुपीडिया कॉमिक का आइडिया
अदिति गुप्ता नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन अहमदाबाद (National Institute of Design, Ahmedabad) से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट और न्यू मीडिया डिज़ाइन में पोस्ट-ग्रेजुएट हैं. यहीं उनकी मुलाकात अपने पति तुहिन पॉल (Tuhin Paul) से हुई थी. दोनों ने यहां मिलकर कई प्रोजेक्ट्स किए. इस दौरान उन्होंने देखा कि एजुकेटेड लोगों में भी मासिक धर्म के बारे में नाममात्र की जागरूकता है. पढ़े-लिखे होने के बाद भी कई लोग इस जुड़े मिथकों को फॉलो करते हैं. यहीं से मेंस्ट्रुपीडिया कॉमिक का कांस्पेट अदिति के दिमाग में आया.
इसके बाद ही मासिक धर्म के बारे में जागरूकता और शिक्षा की कमी ने उन्हें इस विषय पर एक साल तक शोध करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने डॉक्टरों और लड़कियों से जानकारी इकट्ठा की. तभी उनके दिमाग में तीन युवा लड़कियों और एक डॉक्टर के साथ एक कॉमिक बुक शुरू करने का विचार आया. उन्होंने एक वेबसाइट (www.talesofchange.in) पर कॉमिक बुक्स डालीं. नवंबर 2012 में, गुप्ता और उनके पति, पॉल ने इस विषय के बारे में अधिक ज्ञान और जागरूकता फैलाने के लिए मेंस्ट्रुपीडिया की शुरुआत की.
थीसिस प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुई
राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान, अहमदाबाद में मेंस्ट्रुपीडिया की शुरुआत एक थीसिस प्रोजेक्ट के तौर पर की गई. उनकी यह वेबसाइट प्री-टीन और टीनएजर्स को यौवन और कामुकता पर जानकारी देने वाले मंच के तौर पर विकसित हुई है. बेवसाइट के अलावा मेंस्ट्रुपीडिया कॉमिक भी है. ये कॉमिक केवल भारत में ही नहीं दुनिया में भी खासी लोकप्रिय है.
नए कांस्पेट की वजह से मेंस्ट्रुपीडिया कॉमिक (Menstrupedia Comic) की लोकप्रियता में खासी बढ़ोतरी हुई. यह कॉमिक मासिक धर्म, स्वच्छता और यौवन को लेकर सुलझी और सरल भाषा में जानकारी देती है. इसके साथ ही इस विषय से जुड़े मिथकों को तोड़ने में भी अहम भूमिका निभाती है. इस कॉमिक में पीरियड्स से जुड़े मिथकों को वैज्ञानिक नज़रिए से गलत साबित किया है और हर मुद्दे को खुलकर बताया गया है. इस कॉमिक को केवल महिलाओं ने ही नहीं बल्कि पुरुषों ने भी हाथों हाथ लिया है.
कई विदेशी भाषाओं में हुआ है अनुवाद
अदिति की वेबसाइट का मकसद डिजिटल मीडिया के जरिए मासिक धर्म जैसे जटिल मुद्दे पर संवेदनशील तरीके से आसान जानकारी मुहैया कराना है. वेबसाइट में कई कॉमिक किताबें, ब्लॉग, सवाल-जवाब सेक्शन और लर्न सेक्शन शामिल हैं. ये कॉमिक्स 14 भाषाओं में उपलब्ध हैं और 18 से अधिक देशों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. भारत की 8 रीजनल भाषाओं सहित अंग्रेजी और कई विदेशी भाषाओं में इस कॉमिक को ट्रांसलेट किया जा चुका है.
अदिति गुप्ता ने वर्तमान में इस विषय पर उत्तर भारत के पांच राज्यों के स्कूलों में इस्तेमाल होने वाली सामग्री तैयार की.इस कॉमिक्स को मेहसाणा, गांधीनगर, अहमदाबाद और रांची के स्कूलों में बांटा गया है. वहां लड़कियों, उनके माता-पिता और शिक्षकों ने कॉमिक को बेहद पसंद किया. मेनस्ट्रुपीडिया ने व्हिस्पर इंडिया के सहयोग से कई कैंपेन शुरू किए हैं. इनमें बॉलीवुड एक्ट्रेस श्रद्धा कपूर, परिणीति चोपड़ा, कल्कि कोचलिन, नेहा धूपिया, मंदिरा बेदी की मदद से चला "टच द अचार मूवमेंट (Touch the Pickle movement)" शामिल है.
मेनस्ट्रुपीडिया की वेबसाइट पर हर महीने एक लाख लोग विजिट करते हैं. इससे औरतों को रोजगार के मौके भी मिल रहे हैं. अदिति की कॉमिक बुक्स का इस्तेमाल लद्दाख में दो बौद्ध मठों के साथ ही मुंशी जगन्नाथ भगवान स्मृति संस्थान, वृत्ति, कान्हा जैसे गैर सरकारी संगठनों ने भी किया है. कैंपेन के दौरान जनता की तरफ से लिखे एक-एक लफ्ज अदिति को प्रेरणा देता है.
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