Nari Shakti Avani Chaturvedi: "जब हौसलों को नापने का दौर आता है तो हम आसमान नापते हैं और जब इतिहास बनाने का वक्त आता है तो हम साहस का कीर्तिमान रचते हैं." ये पंक्तियां एयरफोर्स की फ्लाइट लेफ्टिनेंट अवनि चतुर्वेदी ( Avani Chaturvedi) पर सटीक बैठती है. उनका ही साहस था जो उन्होंने अकेले मिग-21 बाइसन (MiG-21 Bison ) विमान उड़ा डाला. अपनी इस उड़ान से उन्होंने साबित कर दिया कि नारी शक्ति (Nari Shakti) में किसी भी मिशन को फतेह करने की काबिलियत है. आज देश की अनगिनत लड़कियों के लिए प्रेरणा बन गई अवनि के सफर पर हम एक नजर डालेंगे.


जब रचा अवनि ने इतिहास


साल था 2018 और दिन था 22 फरवरी और इस वक्त ट्विटर ट्रेंड में अवनि चतुर्वेदी का नाम छाया था. उन्होंने काम ही ऐसा शानदार किया था कि देश का हर शख्स उनके बारे में जानने को उत्सुक था. तब अवनि ने गुजरात के जामनगर एयरबेस से मिग-21 बाइसन से अकेले उड़ान भरकर पहली बार में इसे मुक्कमल कर डाला. इसके साथ ही अवनि फ़ाइटर एयरक्राफ्ट उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला पायलट के रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गईं.


इस उड़ान से उन्होंने ये साबित कर दिया कि युद्ध जैसी स्थिति में वह सुखोई जैसे एयरक्राफ्ट भी आसानी से उड़ा सकती हैं. गौरतलब है कि साल 2016 में भारतीय वायुसेना ने अवनि के साथ ही भावना कांत और मोहना सिंह को भी इसके लिए चुना था. तीनों को फ़ाइटर पायलट की ट्रेनिंग दी गई थी. गौरतलब है कि 2016 से पहले भारतीय वासुसेना (Indian Airforce) में महिलाओं को फ़ाइटर प्लेन उड़ाने की परमिशन नहीं थी.


देश की सेवा लफ्जों में नहीं हो सकती बयां


मिग-21 बाइसन में एकल उड़ान भरने पर उस वक्त अवनि ने कहा था कि लड़ाकू विमान उड़ाने और अपने देश की सेवा करने जैसी कोई अन्य भावना नहीं है. इसे लफ्जों में बयां नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा था कि यह मेरे लिए जीवन भर की याद है. फाइटर पायलट अवनि ने एक इंटरव्यू में कहा, "मेरी पहली उड़ान 22 मिनट की थी और मुझे इसका हर एक मिनट याद है. ट्रेनर एयरक्राफ्ट फाइटर एयरक्राफ्ट से बहुत अलग होता है - फील अलग होता है." उन्होंने बताया, "यह बेहद साहसिक काम था और उतरने के बाद आपको ऐसा लगता है कि आपने कुछ अच्छा किया है और आपको संतोष की अनुभूति होती है."


अनुशासनप्रिय और शांत स्वभाव की शख्स


अवनि मध्यप्रदेश में रीवा के पास एक छोटे से कस्बे में पली बढ़ी. अपनी प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने हिंदी में ली. उनके पिता के मुताबिक बचपन से ही अवनि का स्वभाव बेहद शांत था. वह अनुशासन पसंद थी. वो कहते हैं न कि होनहार बीरवान के होत चिकने पात और अवनि के साथ ऐसा ही था.अवनि ने 10वीं और 12वीं में अपने स्कूल में टॉप किया. इसके बाद वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वनस्थली विद्यापीठ गईं.


यहीं से उन्हें उड़ान के प्रति लगाव हुआ. उनके बहुत सारे रिश्तेदार रक्षा सेवाओं (Defence Service) में हैं इसलिए उन्हें भी हमेशा से इस सेवा में जाने का चाव रहा. वह बताती हैं कि भारतीय वायुसेना में शामिल होने के बाद अन्य सभी कैडेटों की तरह उन्हें प्रशिक्षण मिला. वह कहती है कि ये उनकी अच्छी किस्मत थी कि उन्हें फाइटर पायलट की ट्रेनिंग करने का मौका मिला.


बचपन से ही तमन्ना आकाश नापने की


एक इंटरव्यू के दौरान अवनि ने बताया था कि वह जब वह बच्ची थी तो हमेशा आसमान की तरफ देखा करती थीं और हमेशा आकाश में उड़ने की ख्वाहिश उनके दिल में रहती थी. वह बताती हैं कि दरअसल,  हमेशा से वो एक अंतरिक्ष यात्री बनना चाहता था और कल्पना चावला उनकी आदर्श थीं. अवनि की बचपन की आदतों में अंतरिक्ष विज्ञान और एयरोस्पेस से संबंधित लेखों की सभी कटिंग रखना शुमार रहा. वह कहती है कि ऐसी ही एक कटिंग से जब उन्हें पता चला कि विंग कमांडर राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले वायु सेना के पायलट हैं.


तब उन्होंने ये सोचा कि यही आगे का रास्ता है. उन्होंने लगा कि अगर आप एयरफोर्स में हैं और तो आपको उड़ने का मौका मिलता है. इसके बाद उन्होंने बेहतरीन तरीके से उड़ान भरने का मन बना लिया.जब महिला फाइटर पायलटों के लिए ओपनिंग की बात आई, तो उनके मन में कोई शक नहीं था. अवनि को पता था कि उन्हें इसके लिए जाना है. उन्हें पता था कि यह ऐसा कुछ था जो केवल और केवल वायुसेना में जाकर ही संभव हो सकता था, क्योंकि आप अन्य तरह का विमान कहीं भी उड़ा सकते हैं, लेकिन लड़ाकू उड़ान केवल वायु सेना में रहने पर ही उड़ाया जा सकता है.


एयरफोर्स की ट्रेनिंग का अलग रोमांच


अवनि बताती हैं कि जहां तक ​​एएफए (वायु सेना अकादमी) का संबंध है, यह बहुत ही सुव्यवस्थित है. यहां पहले छह महीनों के लिए हमें बुनियादी सैन्य शिक्षा दी जाती है. इसमें शारीरिक गतिविधियां, दौड़ना, शिविर, परेड, पीटी और बहुत कुछ शामिल हैं. इसके बाद ही आपको विमान को छूने का मौका मिलता है. अवनि का कहना है कि शुरू में  छह महीने के लिए पिलाटस (Pilatus) उड़ाना शुरू करते हैं और फिर  प्रदर्शन के आधार पर पायलट्स को विमान उड़ाने के लिए तीन भागों में बांटा जाता है.


इनमें हेलीकॉप्टर, परिवहन और लड़ाकू विमान शामिल होते हैं. फाइटर स्ट्रीम चुनने के बाद फाइटर पायलट हकीमपेट (Hakimpet) जाते हैं और हाल (HAL) किरण (Mk-I) को उड़ाते हैं. अकादमी में डेढ़ साल के प्रशिक्षण के बाद कमीशन मिलता है. इसके बाद छह-आठ महीने बीदर और कलाईकुंडा में रहते हैं और ट्रेनर जेट उड़ाते हैं. ये हॉक एमके-132 होते हैं. उनका कहना है कि उनकी ट्रेनिंग बेहद सुव्यवस्थित रही. अवनि ने बताया कि उनके और उनके  (पुरुष) समकक्षों के लिए कोई वायुसेना में कोई अलग मानक नहीं थे. दोनों के लिए ही पाठ्यक्रम और उत्तीर्ण मानदंड बिल्कुल एक से थे.


आप कभी अकेले युद्ध में नहीं जाते


अवनि कहती हैं कि फाइटर पायलट का दैनिक जीवन उनके अन्य सहयोगियों से बहुत अलग नहीं होता है. यह दोनों के लिए ही उतना ही कठिन और आसान है. दस्ते में सामंजस्य इतना अच्छा है कि आप कभी भी खुद को अकेला महसूस नहीं करते हैं और जरूरत पड़ने पर हमेशा कोई न कोई आपको मदद देने के लिए तैयार रहता है.


वह बताती है कि उनके पेशे में रोजाना ज्ञान को बढ़ाने की गुंजाइश होती है और इसके लिए स्टडी करने की बहुत सी चीजें हैं. इसलिए उन्हें हर दिन स्टडी करनी होती है और लोगों के साथ इस पर चर्चा करनी होती. क्योंकि लड़ाकू उड़ान एक ऐसी चीज है, जिसे अलग-थलग करके नहीं उड़ाया सकता है. आप कभी अकेले युद्ध में नहीं जाते हैं. यह हमेशा एकता में होता है. 


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