(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Independence Day 2022: गांधीजी ने बदला था आजादी की लड़ाई का स्वरूप, जानिए कैसे उनके करिश्माई नेतृत्व में एकजुट हुआ देश
आजादी की लड़ाई में वैसे तो हर मोर्चे पर उनकी प्रमुख भूमिका थी, लेकिन आंदोलन में एकजुटता और हर वर्ग को साथ लाने का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है.
Mahatma gandhi: हिंदुस्तान अपनी आजादी के 75वें साल का जश्न मना रहा है. ऐसे में हम आजादी की लड़ाई के नायकों और उनके योगदान को याद कर रहे हैं. महात्मा गांधी स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे बड़े अगुवा थे. द.अफ्रीका से भारत वापस आने के बाद एक बार जो वह आजादी की लड़ाई में सक्रिय हुए तो देश की आजादी तक वह लगातार अंग्रेजी हुकूमत का प्रतिरोध करते रहे.
आजादी की लड़ाई में वैसे तो हर मोर्चे पर उनकी प्रमुख भूमिका थी, लेकिन आंदोलन में एकजुटता और हर वर्ग को साथ लाने का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है. अपने इस आर्टिकल में हम उनके महान नेतृत्व के इसी पक्ष के बारे में आपको बताएंगे-
आजादी की लड़ाई में गांधीजी की सक्रियता से पहले की पृष्ठभूमि-
महात्मा गांधी के भारत आगमन से पहले भी देश में मजबूती से अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चल रहा था. 1905 में हुए बंगाल विभाजन के विरोध में सशक्त 'स्वदेशी आंदोलन', फिर 1914 में शुरू हुआ 'होमरूल लीग आंदोलन' इसका उदाहरण हैं. लेकिन इन आंदोलनों को छोड़ दें ऐसा कोई बड़ा जन आंदोलन देश में नहीं हुआ जो अंग्रेजी हुकूमत को चिंता में डाले.
इन दोनों आंदोलनों में भी हर वर्ग की भागीदारी नहीं थी. यही उस वक्त आजादी की लड़ाई की एक बड़ी कमजोरी थी. इस बीच 1907 में कांग्रेस का विभाजन,बाल गंगाधर तिलक को जेल जैसी घटनाओं ने भी आंदोलन को कमजोर किया था.
महात्मा गांधी के नेतृत्व में एकजुट हुआ देश-
महात्मा गांधी के नेतृत्व में पहले चंपारण सत्याग्रह और अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन जैसी छोटी-छोटी सफलताएं मिली. इन सफलताओं ने जहां उनके प्रति लोगों में विश्वास जगाया वहीं उनके सत्य और अहिंसा के प्रयोग पर भरोसा जताया.
जब तुर्की के मुद्दे पर हुए खिलाफत आंदोलन को महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन के साथ जोड़ दिया तो देश के मुसलमान भी अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में कूद पड़े. महात्मा गांधी के चलाए आंदोलन में हिंदू-मुसलमान, किसान-मजदूर,पुरुष-महिलायें,युवा और यहां तक कि बच्चे भी शामिल हो गए.
हर वर्ग,हर धर्म के लोग अंग्रेजी हुकूमत के साथ लड़ाई में महात्मा गांधी के आह्वान पर कूद पड़े. ना सिर्फ असहयोग आंदोलन बल्कि सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी महात्मा गांधी के नेतृत्व में लोग एकजुट हुए. अगर सीमित शब्दों में कहा जाए तो महात्मा गांधी ने बिखरे हुए आंदोलन को अपना नेतृत्व दिया, जिसके बलबूते यह पूरे देश का आंदोलन बन गया.