Fundamental Structure : भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई ऐसे ऐतिहासिक फैसलों के जरिए लोगों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की है. सुप्रीम कोर्ट को 'संविधान का संरक्षक' कहा जाता है. उसके ऊपर ही यह जिम्मेदारी है कि संवैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन पर वह लगाम लगाए. अक्सर इसी वजह से सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच ठन जाती है.


ऐसे में सुप्रीम कोर्ट अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके सरकार के उन फैसलों पर अंकुश लगाता है जो संविधान का उल्लंघन करते हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसा ही एक चर्चित फैसला सुनाया गया था 'केशवानंद भारती' मामले में. अपने इस आर्टिकल में हम आपको सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में सुनाए गए ऐतिहासिक फैसले के बारे में बताएंगे- 


क्या है मौलिक ढांचे का सिद्धांत-


मौलिक ढांचे का मतलब उन संवैधानिक प्रावधानों से है कि जो संविधान के मूल चरित्र को स्पष्ट करते हैं. मौलिक ढांचा भारत के राजनीतिक और लोकतांत्रिक आदर्शों से संबंधित है. इस सिद्धांत को 1973 के ऐतिहासिक केशवानंद भारती वाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था. जिसके तहत यह फैसला सुनाया गया था कि, संसद संविधान में ऐसा कोई संशोधन नहीं कर सकती जो उसके मौलिक ढांचे का उल्लंघन करता हो.


देशवासियों के अधिकारों की करता है रक्षा-


आधारभूत ढांचे के सिद्धांत ने संसद पर उन संवैधानिक प्रावधानों से छेड़छाड़ करने की शक्ति पर लगाम लगा दी जो चरित्र से मौलिक हैं. इससे लोगों के संवैधानिक अधिकारों की भी रक्षा की जा सकी.


संसद ने की थी सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को नाकाम करने की कोशिश-


केशवानंद भारती वाद में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सुनाए गए निर्णय को शून्य करने के उद्देश्य से संसद ने 42 वें संविधान संशोधन के जरिए अनुच्छेद 368 में खंड 4 और 5 जोड़ा. इसके द्वारा यह प्रावधान किया गया कि संसद द्वारा किए गए किसी भी संविधान संशोधन को किसी भी न्यायालय में, किसी भी आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती.


लेकिन एक बार फिर से 1980 में 'मिनर्वा मिल्स' मामले में उच्चतम न्यायालय ने संसद के इस प्रावधान को अवैध घोषित कर दिया. इसके बाद यह स्पष्ट हो गया कि संसद ऐसा कोई भी संशोधन नहीं कर सकती जो संविधान के मौलिक ढांचे का उल्लंघन करता है.


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