Independence Day 2022: बहिष्कार और अपमान के बाद भी महिला अधिकारों के लिए करते रहे संघर्ष, ऐसे थे ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
महिला शिक्षा के उनके प्रयासों के दौरान ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को बहुत विरोध का सामना करना पड़ा. युवा छात्रों ने उनका अपमान किया,यहां तक कि उनका सामाजिक बहिष्कार भी कर दिया गया.
Ishwarchandra Vidyasagar: शिक्षक,प्रसिद्ध विद्वान और महान समाज सुधारक ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के व्यक्तित्व में प्रगतिशील विचारों का समावेश था. वह उदार और मानवतावादी सोच के व्यक्ति थे. उनका जन्म 1820 ई. में बंगाल के मिदनापुर जिले के वीरसिंह में हुआ था. वह आजीवन समाज सुधार के काम में लगे रहे. वह महिला अधिकारों के लिए लड़े साथ ही जातिवाद के खिलाफ भी संघर्ष किया. अपने इस आर्टिकल में हम उनके योगदान के बारे में आपको बताएंगे-
जातिवाद के खिलाफ बुलंद की आवाज-
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर 1850 ई. में संस्कृत कॉलेज के प्रधानाचार्य बने. उन्होंने संस्कृत की शिक्षा प्राप्त करने में ब्राह्मणों के एकाधिकार को चुनौती दी. उन्होंने अन्य जातियों जिन्हें संस्कृत अध्ययन के सामाजिक अधिकार नहीं मिले हुए थे उनके लिए संघर्ष किया.
महिलाओं की शिक्षा के लिए चलाया आंदोलन-
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर पर पश्चिमी उदारवाद का असर था. वह महिलाओं के अधिकारों और समानता के पक्षधर थे. हमारे देश में महिलाओं की स्थिति बहुत ही दयनीय रही है. उन्हें शिक्षा प्राप्त करने से भी रोका जाता था. ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के प्रयासों के चलते कलकत्ता में बेथुन कॉलेज की स्थापना हुई. हालांकि महिला शिक्षा के उनके प्रयासों के दौरान ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को बहुत विरोध का सामना करना पड़ा. युवा छात्रों ने उनका अपमान किया,यहां तक कि उनका सामाजिक बहिष्कार भी कर दिया गया. लेकिन वो अपने इरादे से डिगे नहीं.
विधवा पुनर्विवाह के लिए भी चलाया आंदोलन-
विधवाओं की सामाजिक स्थिति बहुत ही बुरी थी. विधवा महिलाएं या तो अपने पति की चिता के साथ ही सती हो जाती थीं या फिर जीवित रहने पर बेहद दयनीय जीवन जीने को मजबूर थीं. ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने उनके उत्थान के लिए बेहद सशक्त आंदोलन चलाया. उन्हीं के प्रयासों से सरकार ने 1856 ई. में विधवा पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता दे दी. समाज में उदाहरण पेश करने के लिए उन्होंने अपने बेटे का विवाह एक विधवा से कराया.
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