Independence Day 2022: एक ऐसा नौजवान जो 18 साल की उम्र में हो गया देश के लिए शहीद, जानिए खुदीराम बोस के बारे में
बंगाल विभाजन के विरोध में अपनी 9वीं कक्षा की पढ़ाई छोड़ बहुत ही कम उम्र में खुदीराम बोस स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गए थे.
Khudiram Bose: हमारे देश को लंबे संघर्ष के बाद अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली. पूरा देश आजादी के 75वें साल का जश्न मना रहा है. आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में हम देश के लिए संघर्ष करने और हंसते-हंसते खुद को कुर्बान कर देने वाले नायकों को याद कर रहे हैं. ऐसे ही एक नायक हुए क्रांतिकारी खुदीराम बोस, जिनके बारे में हम अपने इस आर्टिकल में बताएंगे-
खुदीराम बोस के बारे में-
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल प्रांत के मिदनापुर में हुआ था. उनके पिता का नाम त्रैलोक्यनाथ बोस और मां लक्ष्मी प्रिया देवी थीं.बहुत ही कम उम्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंकने वाले खुदीराम बोस 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर में फांसी दे दी गई थी.
कैसे बने क्रांतिकारी-
बंगाल विभाजन के विरोध में अपनी 9वीं कक्षा की पढ़ाई छोड़ बहुत ही कम उम्र में खुदीराम बोस स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गए थे. इसी दौरान वह रिवोल्यूशनरी पार्टी से जुड़े और वंदे मातरम् लिखे पम्पलेट बांटने लगे. 1906 में एक प्रदर्शनी में 'सोनार बांग्ला' की प्रतियां बांटने के दौरान जब एक पुलिस वाले ने उन्हें पकड़ने की कोशिश कि तो उसे जोरदार मुक्का मारकर खुदीराम बोस वहां से भाग निकले. बाद में सरकार के द्वारा खुदीराम बोस पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया लेकिन गवाह ना मिलने के चलते उन्हें छोड़ दिया गया. वह 'युगांतर' नाम की क्रांतिकारी संस्था से जुड़े हुए थे,जिसने उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियां करने के लिए प्रेरित किया.
खुदीराम बोस की क्रांतिकारी गतिविधियां-
जब 1905 में वायसराय लॉर्ड कर्जन के द्वारा बंगाल विभाजन किया गया तो इसके विरोध में लोगों ने सड़कों पर उतरकर अपना रोष व्यक्त किया था. इस फैसले के विरोध में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई थी. इसमें हिस्सा लेने वाले क्रांतिकारियों को मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड ने बहुत क्रूर दंड दिए थे. बाद में पदोन्नति देकर किंग्सफोर्ड को मुजफ्फरपुर का सत्र न्यायाधीश बना दिया गया. युगांतर समिति ने किंग्सफोर्ड द्वारा भारतीयों पर ढहाए गए जुल्म का बदला लेने के लिए गुप्त बैठक की और फैसला किया कि खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी किंग्सफोर्ड को मारेंगे.
गलती से किंग्सफोर्ड की बजाय कैनेडी के परिवार पर गिरा बम-
खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड की गाड़ी समझकर बम फेंका, लेकिन उसमें भारतीय स्वतंतर्ता सेनानियों के प्रति हमदर्दी रखने वाले कैनेडी का परिवार था. बम गिरने से दो महिलाएं मारी गई. प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मार ली और खुदीराम बोस सिर्फ 18 साल की उम्र में फांसी के तख्ते पर चढ़ देश के लिए शहीद हो गए.