Chandrashekhar Azad: 4 फरवरी 1922 को गोरखपुर के चौरी-चौरा की घटना के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया. आंदोलन को उस वक्त समाप्त किया गया, जब यह अपने चरम पर था और इसने अंग्रेजों की जड़ें हिला दी थीं. ऐसा आंदोलन जिसमें बच्चे-बूढ़े, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरूष, छात्र-नौजवान,मजदूर-किसान,हिंदू-मुसलमान हर कोई शामिल हुआ. लेकिन जब आंदोलन को वापस लिया गया तो देश में हर ओर निराशा छा गई.
महात्मा गांधी को जेल में डाल दिया गया और इस तरह से एक मजबूत और संगठित आंदोलन थम गया. इसी निराशा के दौर में देश में क्रांतिकारी गतिविधियों ने गति पकड़ी जिसकी अगुवाई हिंदुस्तान की आजादी के संग्राम के उस नायक ने की जिसे हम 'चन्द्रशेखर आज़ाद' के नाम से जानते हैं.
खुद को नाम दिया 'आज़ाद' -
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ. बहुत कम उम्र में ही वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए. इसी आंदोलन के दौरान जब उन्हें गिरफ्तार करके जज के सामने पेश किया गया तो वहां अपना नाम 'आज़ाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को उनका निवास बताया. उन्हें 15 कोड़े की सजा दी गई. हर बार कोड़ा मारे जाने पर वह 'महात्मा गांधी की जय' और 'वंदे मातरम्' का नारा लगाते. इस घटना के बाद से ही उन्हें 'आज़ाद' के नाम से जाना जाने लगा.
क्रांतिकारी गतिविधियों की अगुवाई की-
जब असहयोग आंदोलन वापस लिया गया था तब देश के हर नागरिक की तरह चन्द्रशेखर आज़ाद को भी बहुत दुख हुआ और राजनीतिक आंदोलन के निर्वात की स्थिति में उनका झुकाव क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर हुआ. उन्होंने क्रांति के बल पर ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया.
1924 में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की गई,जिसका उद्देश्य था ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकना और संघीय यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ इंडिया की स्थापना करना. इसी संगठन के तले 1925 में रामप्रसाद बिस्मिल एवं अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आज़ाद ने काकोरी कांड(अगस्त 1925) को अंजाम दिया.
जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने रामप्रसाद बिस्मिल,राजेन्द्र लाहिड़ी,अशफाकउल्ला खां और रोशन सिंह को फांसी की सजा दी लेकिन चन्द्रशेखर आज़ाद अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे और फरार हो गए. कई प्रमुख क्रांतिकारियों को फांसी दिए जाने के बाद हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन बिखर गया.
लेकिन एक बार फिर से चन्द्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में 1928 में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन दोबारा संगठित किया गया और दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में कई युवा क्रांतिकारियों के साथ बैठक कर इसी संगठन का नाम बदलकर 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' रख दिया गया.
सांडर्स की हत्या कर लिया लाला लाजपत राय का बदला-
'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' से भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी भी जुड़े हुए थे.1928 में जब साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लाठीचार्ज से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई तब हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों चन्द्रशेखर आज़ाद,भगत सिंह और राजगुरू ने लाठीचार्ज का आदेश देने वाले सहायक पुलिस कप्तान सांडर्स की 17 दिसंबर 1928 को हत्या कर दी.
जीते-जी नहीं लगे अंग्रेजों के हाथ-
उनके साथ क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने वाले तमाम क्रांतिकारी अलग-अलग समय में अंग्रजों के हाथ आते गए लेकिन चन्द्रशेखर आज़ाद उनके हाथ नहीं लगे.
दिसंबर 1929 में क्रांतिकारियों ने चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में दिल्ली के निकट वायसराय लॉर्ड इरविन की ट्रेन को जलाने का प्रयास किया.आगे कई महीनों तक पंजाब और उत्तर प्रदेश में क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया जाता रहा जिनमें कहीं ना कहीं चन्द्रशेखर आज़ाद की भी भूमिका रही.
उनका संकल्प था कि वे कभी ब्रिटिश के हाथ नहीं आयेंगे और मरते दम तक आज़ाद रहेंगे. 27 फरवरी, 1931 को जब अपनों की ही मुखबिरी के चलते इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में वह अंग्रेजी पुलिस से घिर गए.
काफी देर चली मुठभेंड़ के बाद उन्होंने आखिरी बची गोली खुद को मार ली. वह जीते-जी अंग्रेजों के हाथ ना लगने के अपने संकल्प को पूरा किया. वो आजाद जिए और आज़ाद रहकर ही इस दुनियां को अलविदा कहा.
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