Sunderlal Bahuguna: हमारे देश के लोग प्राचीन समय से ही पर्यावरण को लेकर संवेदनशील रहे हैं. यह बात इससे भी पता चलती है कि हमारे देश में प्रकृति की पूजा होती रही है, लेकिन अंग्रेजों की गुलामी से आजादी के बाद होने वाले औद्योगिक विकास और अंधाधुंध निर्माण के चलते पर्यावरण को दरकिनार किया जाने लगा. पेड़ों की कटाई होने लगी और इसके चलते पर्यावरण प्रभावित होने लगा.


पहले से ही दुनिया में हो चुकी औद्योगिक क्रांति की वजह से पर्यावरण बुरी तरह से प्रभावित था. ऐसे में इसके संरक्षण के लिए देश के कई महान पर्यावरण प्रेमियों ने प्रयास किए. ऐसे ही एक पर्यावरण प्रेमी थे सुंदरलाल बहुगुणा, जिन्होंने चिपको आंदोलन के जरिए पर्यावरण और वृक्षों के महत्व को लेकर संदेश दिया. अपने इस आर्टिकल में हम सुंदरलाल बहुगुणा और पर्यावरण के प्रति उनके योगदान के बारे में आपको बताएंगे-


सुंदरलाल बहुगुणा: पर्यावरण संरक्षण के लिए आजीवन प्रयास करने वाले योद्धा-


पर्यावरणविद् और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड स्थित टिहरी जिले में भागीरथी नदी के किनारे बसे मरोड़ा गांव में हुआ था. वह एक गांधीवादी पर्यावरणविद् थे. उन्होंने महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों को अपनाकर शांतिपूर्ण तरीके से 'चिपको आंदोलन' का नेतृत्व किया और इसे सफल बनाया.


सुंदरलाल बहुगुणा हिमालय क्षेत्र में वनों के संरक्षण के लिए संघर्ष करते रहे. वन संरक्षण के उनके प्रयासों को तब बड़ी सफलता मिली जब इंदिरा गांधी ने उनके आग्रह पर हिमालय क्षेत्र के कुछ वन क्षेत्रों को संरक्षण प्रदान करवाने के लिए कानून पारित करवाया. उन्होंने पर्यावरण बचाने के प्रयासों के तहत कई आंदोलन किए.


चिपको आंदोलन-


1970 में 'चिपको आंदोलन' के जरिए वृक्ष काटने के विरोध मे लोगों ने वृक्षों से लिपटकर उनकी रक्षा की. इस आंदोलन में सुंदरलाल बहुगुणा की प्रमुख भूमिका थी. चिपको आंदोलन के चलते वह दुनियाभर में 'वृक्ष मित्र' के नाम से जाने गए.


पत्नी ने दिया थी चिपको आंदोलन का विचार-


चिपको आंदोलन का मूल विचार सुंदरलाल बहुगुणा की पत्नी विमला बहुगुणा का था. विमला बहुगुणा भी पर्यावरण प्रेमी हैं. उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए सुंदरलाल बहुगुणा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनका सहयोग किया.


टिहरी बांध के विरोध में आंदोलन- 


1980 से 2004 के बीच सुंदरलाल सुंदरलाल बहुगुण ने टिहरी बांध के निर्माण के लिए के विरोध में आंदोलन चलाया. उन्होंने लोगों को टिहरी बांध के चलते पर्यावरण पर होने वाले नकारात्मक प्रभावों के बारे में जागरुक किया.


सामाजिक कार्यों में भी रहे सक्रिय-


सुंरलाल बहुगुणा ने ना सिर्फ पर्यावरण बल्कि समाज कल्याण के लिए भी काम किए. उन्होंने दलितों को मंदिर में प्रवेश दिलाने के लिए भी आंदोलन चलाया. पर्यावरण और सामाजिक क्षेत्र में सुंदरलाल बहुगुणा के योगदान के लिए उन्हे सरकार के द्वारा 1981 में पद्मश्री और 2009 में पद्मविभूषण दिया गया. 2021 में इस महान पर्यावरण प्रेमी का निधन हो गया.


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