Nari Shakti West Bengal CM Mamata Banerjee: राजनीति की अपनी पहली ही पारी में अनुभवी कम्युनिस्ट नेता सोमनाथ चटर्जी (Communist Somnath Chatterjee) को साल 1984 में हार का स्वाद चखा देने वाली ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) एक फायर ब्रांड महिला नेता के तौर पर मशहूर है. ममता बनर्जी अपने तीखे तेवरों और बयानों के लिए भी जानी जाती है. भले ही उनके तीखे तेवरों, तेज तर्रार रवैये से लोगों को एतराज हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत की राजनीति में उनका खासा दबदबा है तो आज की नारी शक्ति (Nari Shakti) की कड़ी बंगाल की ममता दीदी के नाम है.


संघर्ष का दूसरा नाम ममता बनर्जी


पश्चिम बंगाल की राजधानी कलकत्ता (अब कोलकाता) में ममता बनर्जी प्रोमिलेश्वर बनर्जी और गायत्री देवी के घर एक मध्यमवर्गीय बंगाली हिंदू ब्राह्मण परिवार में 5 जनवरी 1955 में जन्मीं. उनके पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी इलाज न मिलने की वजह से अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए. तब ममता केवल 17 साल की थीं. कहा जाता है कि ममता के पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे. शायद यहीं वजह रही कि उनमें लीडरशिप के गुण उभर के सामने आए.


कम उम्र में पिता को खो देने वाली ममता ने कभी भी किसी परेशानी को अपनी शिक्षा की राह में रोड़ा नहीं बनने दिया. साल 1970 में ममता बनर्जी ने देशबंधु शिशु शिक्षालय से उच्च माध्यमिक बोर्ड परीक्षा पास की. इसके बाद जोगमाया देवी कॉलेज से  साल 1979 में उन्होंने इतिहास में स्नातक की डिग्री ली. पढ़ाई के मामले में वह यही नहीं रुकीं. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय (University of Calcutta) से इस्लामी इतिहास में मास्टर डिग्री हासिल की. वो अपने अध्ययन को लेकर इतनी संजीदा थी कि श्री शिक्षायतन कॉलेज से शिक्षा विषय में ग्रेजुएशन किया. कानून की जानकारी के लिए उन्होंने साल 1982 में जोगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज, कोलकाता से कानून की डिग्री भी ले डाली. 


15 साल में ही उतर पड़ी थीं राजनीति में


ममता बनर्जी का राजनीति के प्रति लगाव टीनएज से ही दिखने लगा था. जब वह जोगमाया देवी कॉलेज में पढ़ रही थी. उसी दौरान उन्होंने मात्र 15 साल की उम्र में कॉलेज में छात्र परिषद यूनियन बना डाली थी. यह कांग्रेस आई ( Congress-I) पार्टी की स्टूडेंट विंग थी. समाजवादी एकता केंद्र भारत -कम्युनिस्ट (Socialist Unity Centre of India-Communist) से संबद्ध अखिल भारतीय लोकतांत्रिक छात्र संगठन को हराया. इसके बाद वह पश्चिम बंगाल में कांग्रेस (आई) पार्टी में बनी रहीं. इस दौरान उन्होंने पार्टी के साथ ही अन्य स्थानीय राजनीतिक संगठनों में भी कई पदों पर काम किया. वर्तमान में ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (All India Trinamool Congress Party) की चीफ हैं.


कला प्रेमी भी हैं बंगाल की बाघिन


ममता केवल राजनीति में ही सक्रिय नहीं है बल्कि कला और साहित्य की तरफ उनका खासा झुकाव है. वह कविताएं लिखती हैं तो पेंटिंग भी उनका पसंदीदा शगल है. कहा जाता है कि वह तनाव कम करने के लिए पेंटिंग बनाती है. ममता दीदी को ऑयल पेंटिंग करना भाता है. बंगाल की बाघिन के तौर पर मशहूर ममता के व्यक्तित्व का एक पक्ष संवेदनशील कलाकार, गीतकार का भी है. एक जानकारी के मुताबिक ममता बनर्जी की बनाई 250 पेंटिग्स एक नीलामी में एक करोड़ से रुपये अधिक में बिकी थी. मां माटी और मानुष का नारा देने वाली ममता बनर्जी को पियानो बजाने का भी खासा शौक है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मतगणना से पहले उनका पियानो बजाता हुआ एक वीडियो वायरल हुआ था. 


यही नहीं वह कविताएं भी लिखती हैं. उनकी लिखी100 से अधिक किताबें प्रकाशित हुई. उन्होंने राजनीति को ध्यान में देखते हुए 'खेला होबे' जैसे शीर्षक से किताबें लिखी है. कोलकाता पुस्तक मेले में उनकी ये किताब खूब बिकी थी. समसामायिक विषयों को लेकर भी वो संजीदा रही हैं. कोरोना संकट पर भी ममता बनर्जी ने अपनी कलम चलाई है. उन्होंने इस गंभीर विषय पर पाले (Pale) शीर्षक से कविता लिखी और अंग्रेजी और बंगाली भाषा में इसे अपने फेसबुक अकाउंट पर शेयर किया. यही ममता अपने बिजी शेड्यूल के बाद भी रोजाना 5-6 किलोमीटर ट्रेडमिल वॉक करती हैं. वह कई  वॉकेथन और मार्चेस में भी शिरकत कर चुकीं हैं. 


फर्श से अर्थ तक का सफर


पश्चिम बंगाल के सीएम की कुर्सी पर बैठी ममता बनर्जी को देख शायद ही किसी को ये अंदाजा हो कि इस स्तर तक पहुंचने के लिए उन्होंने कितना संघर्ष किया है. ममता की जिंदगी का सफर फर्श से अर्श तक पहुंचने की एक बेहतरीन मिसाल है. छोटी उम्र में पिता को खो देने वाली बंगाल की इस प्रभावशाली महिला नेता ने पूरी तरह से राजनीति में आने से पहले कोलकाता की सड़कों पर रवीन्द्र संगीत भी पेश किया है. जिस राज्य की आज वह मुख्यमंत्री है कभी उसी राज्य की राजधानी कोलकाता में ट्रैफिक लाइट पर वह रविन्द्रनाथ टैगोर का रवीन्द्र संगीत लोगों को सुनाती थी. यहीं नहीं उन्होंने जीवन यापन के लिए एक सेल्स गर्ल का भी काम किया है. बनर्जी ने एक क्लर्क से, निजी ट्यूटर से लेकर प्राथमिक स्कूल शिक्षक के तौर पर भी काम किया है. 


उपलब्धियों का नाम है ममता


भारत की नहीं बल्कि वैश्विक राजनीति में ममता बनर्जी ने एक महिला नेता के तौर पर अलग पहचान कायम की है. उन्होंने अपना राजनीतिक सफर 1970 में एक युवा कांग्रेस कार्यकर्ता के तौर पर शुरू किया था. बेहद कम वक्त में वह अपनी मेहनत के बल पर महिला कांग्रेस की जनरल सेक्रेटरी के पद पहुंची. इसके बाद ममता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनका अगला पड़ाव ऑल इंडिया यूथ कांग्रेस रहा.


साल 1984 में उन्होंने सबसे युवा नेता के तौर पर संसद में एंट्री ली. तब ममता बनर्जी ने जादवपुर में अनुभवी कम्युनिस्ट सोमनाथ चटर्जी को हराकर 1984 में अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता था. हालांकि यहां वह 1989 में हार गईं और 1991 में फिर से जीतीं. उन्होंने 2009 के आम चुनावों तक इस सीट पर अपनी पकड़ बरकरार रखी.


ममता ने 1997 में कांग्रेस पार्टी ( Congress Party) के साथ मतभेदों के चलते इस पार्टी का दामन छोड़ दिया और इसी साल अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की. वह दो बार रेल मंत्री का पद संभाल चुकी हैं. कांग्रेस में रहते हुए बनर्जी ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय में जूनियर मिनिस्टर के तौर पर काम किया तो युवा मामले, खेल और महिला एवं बाल विकास के मंत्रालय भी संभाले. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद, ममता को राज्य में माओवादी (Maoist) खतरे से कुशलता से निपटने का श्रेय दिया जाता है.


ममता की पॉलिटिक्ल टाईम लाइन



  • 2021 ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार टीएमसी को जबरदस्त जीत दिलाई, लेकिन वह खुद नंदीग्राम निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के सुवेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) से हार गईं, जो कभी टीएमसी प्रमुख के करीबी थे.

  • 2016 दूसरे कार्यकाल के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनी. तब अकेले टीएमसी (TMC) ने वाम-कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ 211 सीटें जीतीं थीं.

  • 2012 ममता ने यूपीए से समर्थन वापस ले लिया.

  • 2011 पश्चिम बंगाल की 8 वीं मुख्यमंत्री बनी. तब टीएमसी-कांग्रेस गठबंधन ने 294 सीटों में से 227 सीटें जीतीं, जिससे राज्य में 34 साल से चला आ रहे वाम मोर्चा के शासन का अंत हुआ था.

  • 2009 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले, वह कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए में शामिल हुईं और जीतीं. ममता ने कोलकाता दक्षिण से अपनी लगातार पांचवीं जीत दर्ज की और उन्हें रेल मंत्री के रूप में कैबिनेट में शामिल किया गया. रेल मंत्री के रूप में यह उनका दूसरा कार्यकाल था.


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